इस शिवलिंग में विराजमान हैं शिव, भोलेनाथ के वरदान से भक्तों की हर मुराद होती है पूरी(Video)

Edited By Ekta, Updated: 12 Aug, 2019 05:05 PM

देवभूमि हिमाचल में यूं तो अनेक मंदिर हैं लेकिन शिव मंदिरों में से ऊना जिला के तलमेहड़ा गांव में शिवालिक की पहाड़ियों पर स्थित धौम्येश्वर मंदिर स्थापित है जो कि सदाशिव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर किसी धाम से कम नहीं हैं। ये अद्भुत मंदिर है,...

ऊना (अमित): देवभूमि हिमाचल में यूं तो अनेक मंदिर हैं लेकिन शिव मंदिरों में से ऊना जिला के तलमेहड़ा गांव में शिवालिक की पहाड़ियों पर स्थित धौम्येश्वर मंदिर स्थापित है जो कि सदाशिव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर किसी धाम से कम नहीं हैं। ये अद्भुत मंदिर है, जहां शिवलिंग में साक्षात शिव विराजमान रहते हैं। जो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
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सावन के अंतिम सोमवार को देश-प्रदेश के सभी शिवधामों में भोले के भक्तों का जमावड़ा लगा रहा। दूध-लस्सी के स्नान के साथ भोले बाबा की पसंदीदा चीजें भांग, धतूरा, बेल पत्र उन्हें अर्पित किए गए और तरह-तरह के मिठे पकवानों से भी शिव परिवार का मुंह मीठा करवाया। कुछ ऐसा ही नजारा धौम्येश्वर महादेव में भी नजर आया। भोले की सेवा और स्नान के लिए भक्त बड़ी बेसब्री से इंतजार करते नजर आए। 
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सदाशिव महादेव की मान्यता ऊना या हिमाचल में ही नहीं बल्कि प्रदेश के बाहर भी उतनी ही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों के पुरोहित धौम्य ऋषि ने इसी स्थान पर भगवान शिव को आराधना को थी और भगवान ने धौम्य ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर धौम्य ऋषि द्वारा स्थापित शिव लिंग की सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी करने का वरदान दिया था। महाशिवरात्रि और सावन के माह के अलावा रोजाना दूर-दराज से श्रद्धालु धौम्येश्वर शिव मंदिर में पहुंचते हैं।
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सावन माह के अंतिम सोमवार को भी धौम्येश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं का खूब जमघट लगा और श्रद्धालुओं ने श्रद्धा भाव से भगवान शिव की पूजा अर्चना की। इस मंदिर का निर्माण 50 के दशक में हुआ था। मंदिर चारों ओर से जंगल से घिरा हुआ है। मंदिर से न केवल जिला का ही नजारा दिखता है बल्कि धौलाधार की पहाडिय़ां भी दिखाई देती है, जो कि अलग ही नजारा है। मान्यता है कि करीब 5500 वर्ष पहले महाभारत काल में पांडवों के पुरोहित श्री धौम्य ऋषि ने तीर्थ यात्रा करते हुए इसी ध्यूंसर नामक पर्वत पर शिव की तपस्या की थी।
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भगवान शिव ने प्रसन्न होकर दर्शन देते हुए वर मांगने को कहा था जिस पर ऋषि ने वर मांगा कि इस पूरे क्षेत्र में आकर धौम्येश्वर शिव की पूजा करने वाले की मनोकामनाएं पूरी होगी। मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव तथास्तु कह कर अंर्तध्यान हो गए थे। इसके बाद से जो भी श्रद्धालु मंदिर पहुंच कर सच्चे मन से मन्नत मांगता है, तो उस भक्त की मुराद पूरी होती है। मंदिर को धौम्येश्वर शिवलिंग, ध्यूंसर महादेव और सदाशिव के नाम से पुकारा जाता है। मंदिर ट्रस्ट के प्रधान प्रवीण शर्मा के मुताबिक 1937 में मद्रास के एक सैशन जज स्वामी ओंकारा नंद गिरी को स्वप्र में भगवान शिव ने दर्शन देते हुए कहा कि पांडवों के अज्ञातवास के समय उनके पुरोहित धौम्य ऋर्षि द्वारा स्वयंभू शिवलिंग अर्चना थी। शिवलिंग की खोज कर पूजा अर्चना करें।
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स्वामी ओंकारा नंद गिरी ने स्वप्र के आधार पर शिवलिंग को काफी जगह खोजा, लेकिन नहीं मिला। घूमते-घूमते सन् 1947 में स्वामी ओंकारानंद जी सोहारी पहुंच गए। सोहारी स्थित सनातन उच्च विद्यालय के प्रधानाचार्य शिव प्रसाद शर्मा डबराल के सहयोग से स्वामी ओंकारा नंद गिरी जी शिवलिंग के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि सबसे पहले आठ बाय 8 फीट का पहला मंदिर बनाया था, जोकि अब एक विशाल रूप धारण कर चूका है। यूं तो पूरा वर्ष देशभर के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु धौम्येश्वर मंदिर में भगवान शिव के दर्शनों के लिए पहुंचते है लेकिन महाशिवरात्रि और सावन माह में श्रद्धालुओं की श्रद्धा और आस्था का खूब जमघट मंदिर में लगता है।

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