समय पर लेते लॉकडाऊन का फैसला तो आज हालत इतनी भयावह न होती : राजेंद्र राणा

Edited By Vijay, Updated: 29 Mar, 2020 05:22 PM

mla rajender rana in hamirpur

राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने कहा कि जनवरी में कोरोना की आहट मिलते ही अगर केंद्र सरकार ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए देश की हवाई सीमाओं को सील किया होता तो आज देश के हालत इतने चिंताजनक व भयावह नहीं होते। उन्होंने कहा कि...

हमीरपुर (ब्यूरो): राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने कहा कि जनवरी में कोरोना की आहट मिलते ही अगर केंद्र सरकार ने स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए देश की हवाई सीमाओं को सील किया होता तो आज देश के हालत इतने चिंताजनक व भयावह नहीं होते। उन्होंने कहा कि देश में कोरोना जैसे खतरनाक वायरस के पहुंचने का सबसे बड़ा सोर्स विदेशों से आने वाले लोग साबित हुए हैं। विदेशों से लगातार आ रही महामारी की सूचनाओं को सरकार अगर समझने में चूक न करती तो सबसे पहले एहतियाती तौर पर एयरपोर्टों पर ही इस वायरस की रोकथाम के लिए प्रयास हो सकते थे लेकिन विदेशों से लगातार चली आवाजाही के कारण इस वायरस को फैलने में मदद मिली।

अचानक उठाए कदम से माइग्रेट लेबर की हालत खराब

सरकार का देर से लिया गया फैसला दुरुस्त माना जा सकता है लेकिन अब अचानक उठाए इस कदम के बाद देश में चारों तरफ अफरा-तफरी मची हुई है और इस अफरा-तफरी में सबसे ज्यादा खराब हालत माइग्रेट लेबर की है। उन्होंने कहा कि कोरोना कफ्र्यू व वायरस ने देश में सत्तासीन वाइसरायों की पोल खोल कर रख दी है लेकिन अब इस महामारी के साथ देश में आर्थिक एमरजैंसी का भी नया खतरा मंडराने लगा है। इस खतरे को देखते हुए सरकार को अभी से प्लान बनाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आपदा व आने वाली आर्थिक एमरजैंसी के खतरे के बीच देश में असुरक्षा का माहौल बन रहा है, जिससे भी पार पाना सरकार के लिए चुनौती होगा क्योंकि अभी तक कुछ निश्चित नहीं है कि खतरनाक स्टेज थ्री में पहुंच रहे कोरोना वायरस का कहर अभी और कितने महीनों तक जारी रहेगा।

देश में 60 फीसदी से ज्यादा लोग गरीब

उधर, महामारी के बीच सरकार के अपने सरकारी रिलीफ पैकेज ने साबित कर दिया है कि देश में 60 फीसदी से ज्यादा लोग गरीब हैं जबकि अब तक सरकार द्वारा जारी आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 100 में से सिर्फ 23 प्रतिशत गरीब सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हैं। देश में 23 करोड़ राशन कार्ड होल्डर हैं, जिनका चूल्हा भी सरकारी राशन के दम पर चलता है यानि इस देश में करीब 100 करोड़ लोगों को सरकारी राशन का इंतजार रहता है। देश में 90 फीसदी लोगों को पेड लीव नहीं मिलती है यानि काम नहीं तो पैसा नहीं, पैसा नहीं तो फाकाकशी निश्चित है।

देश में आर्थिक एमरजैंसी से सरकार को मिल सकती है चुनौती

कोरोना महामारी के बाद अब आर्थिक संकट से जूझ रहे देश में आर्थिक एमरजैंसी से सरकार को चुनौती मिल सकती है, जिसका असर समूचे देश पर होगा। ज्यादा बेहतर होता कि अच्छी तैयारी के साथ लॉकडाउन का फैसला लिया होता। भूखमरी के खौफ से हजारों किलोमीटर पैदल चलकर हजारों का हुजूम घरों की ओर लौट रहा है, ऐसे में सोशल डिस्टैंसिंग पूरी तरह बेमानी साबित होगा।

सरकार अभी भी पूरी तरह कन्फ्यूज

उन्होंने कहा कि एनएच-24 जो दिल्ली से यूपी की तरफ जाता है, वहां आज हजारों का हुजूम 400 से 800 किलोमीटर पैदल सफर करते हुए गांवों की ओर लौट रहा है। सवाल यह है कि सरकार द्वारा लॉकडाऊन के फैसले के 1 हफ्ता बीत जाने पर भी कामगारों को गांव तक भेजने के लिए यूपी सरकार और केन्द्र सरकार का सामंजस्य क्यों नहीं बन पाया जबकि कोरोना महामारी का संकट तीसरे खतरनाक चरण में प्रवेश कर रहा है और सरकार अभी भी पूरी तरह कन्फ्यूज नजर आ रही है।

देशवासियों के हित में सही और स्टीक फैसले ले सरकार

उन्होंने कहा कि देश में जारी लॉकडाऊन के कारण गरीबों में भूखमरी का खौफ फैल रहा है। बेहतर होगा कि कोरोना जैसी राष्ट्रीय आपदा पर केन्द्र और राज्य सरकारें पूरा तालमेल बनाते हुए इस महामारी से बचाव के रास्ते अपनाएं। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश की राजनीति एकजुट होकर देशवासियों की मदद में आगे आए। उन्होंने कहा कि जनता से ही राजनीति है, राजनीति से जनता नहीं। इसलिए सब मिलजुल कर सबका सहयोग लेते हुए सरकार देशवासियों के हित में सही और स्टीक फैसले ले।

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