किसान और जवान को आमने-सामने खड़ा करने की सरकार गुनहगार : राजेंद्र राणा

Edited By Vijay, Updated: 27 Jan, 2021 05:27 PM

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किसानों के सब्र के बांध टूटने पर जो हुआ वह भी सही नहीं माना जा सकता है लेकिन किसानों के साथ लगातार 2 महीने से लोकतंत्र में जो सुलूक हुआ वह भी कतई सही नहीं माना जा सकता है। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष व सुजानपुर विधायक राजेंद्र राणा ने कही।

हमीरपुर (ब्यूरो): किसानों के सब्र के बांध टूटने पर जो हुआ वह भी सही नहीं माना जा सकता है लेकिन किसानों के साथ लगातार 2 महीने से लोकतंत्र में जो सुलूक हुआ वह भी कतई सही नहीं माना जा सकता है। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष व सुजानपुर विधायक राजेंद्र राणा ने कही। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का मौलिक अधिकार होता है लेकिन जहां हाकिम हो बेदर्द वहां फरियाद करना क्या? दुर्भाग्य यह है कि देश की हुकूमत ने सत्ता को व्यापार व बाजार बनाकर रख दिया है जिसके चलते बाजारी उसूलों पर नफे नुक्सान के आधार पर लोकतंत्र पर हांका जा रहा है। दिल्ली में जो कुछ हुआ उससे फिर सत्ता की साजिश की बू आ रही है।

पहले दो महीनों से किसानों को दिल्ली आने से रोका गया। परेड से पहले साफ हो गया था कि एक धड़ा दिल्ली आने की जिद पर वजिद है, ऐसे में सवाल उठता है कि पुलिस ने उस धड़े को लेकर क्या योजना बनाई थी। हालांकि यह सवाल गृह मंत्रालय की जवाबदेही का भी है लेकिन बजारू तर्ज पर चल रही हुकूमत ने इस सवाल को ही सिलेब्स से बाहर कर दिया है क्योंकि अब सरकार से सवाल पूछने को देश से सवाल पूछना बताया जाता है। उन्होंने कहा कि शिवराज पाटिल ऐसे आखिरी गृहमंत्री थे जिनसे सवाल किया जाता था। 26 जनवरी की हिंसक घटना की खबर बाद में आती है कि गृहमंत्री ने उच्च स्तरीय बैठक की है और दिल्ली में अतिरिक्त सुरक्षा बलों के तैनाती के आदेश दिए हैं।

उन्होंने कहा कि किसानों की परेड होने वाली थी। दिल्ली, हरियाण के पुलिस अधिकारी तमाम नेताओं के साथ संपर्क में थे, हालातों का जायजा ले रहे थे लेकिन सवाल यह है कि पहले ऐसी कोई खबर आई थी, इन सवालों के जवाब अटकलों से नहीं दिए जा सकते। अब किसानों के इस सवाल पर सरकार को सीधा पूछे जाना चाहिए। सवाल यह उठता है कि क्या देश का ध्यान किसानों की समस्या से हटाने के लिए लाल किला से आईटीओ की तरफ किसानों के एक धड़े को जान-बूझकर आने दिया, इस सवाल का जवाब भी देश चाहता है।

उन्होंने कहा कि लाल किले के साथ जो हुआ वह शर्मनाक है। इस ऐतिहासिक इमारत को क्षति जरूर पहुंची होगी लेकिन अब मुद्दा तिरंगे को लेकर बनाया जा रहा है। इस हिंसक झड़प में दिल्ली पुलिस के 80 जवान घायल हुए हैं। लाल किले का वीडियो बता रहा है कि जवान जान बचाने के लिए नीचे गिर रहे हैं। उसी पुलिस का जवान गाजीपुर बार्डर पर आंसू गैस के गोले दाग रहा है। सरकार कि घोर उदासीनता ने आज किसान और उनके बेटे जवान को आमने-सामने खड़ा कर दिया है। इस सारे प्रकरण में सत्ता को बचाने में लगी हुकूमत के राज में क्षति जवानों और किसानों की हुई है। 

उन्होंने कहा कि 26 जनवरी दोपहर के वक्त का एक ऐसा वीडियो भी सामने आ रहा है जिसमें पुलिस लाल किले के बाहर कुर्सियों पर बैठी नजर आ रही है तो सवाल उठता है कि कुछ लोगों को हिंसा में छूट सत्ता संरक्षण में मिली हुई थी। किसान आंदोलन के लिए हिंसा की घटना सीधा जाल में जाकर फंसने जैसी है क्योंकि किसान आंदोलन के 2 महीने गवाह बने हैं कि तमाम उकसावों के बावजूद भी किसान जत्थाबंदियों ने शांति और अमन का रास्ता नहीं छोड़ा है। उन्होंने कहा कि अब इस नई साजिश के लिए बेशक सरकार मूक बनी रहे लेकिन देश का नागरिक सरकार के घातक मंसूबों को समझ चुका है कि सरकार सत्ता के लिए देश के साथ कोई भी साजिश कर सकती है।

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