Hamirpur: प्राकृतिक खेती में मिसाल बना गांव हरनेड़, किसान पूरी तरह कर रहे प्राकृतिक खेती

Edited By Jyoti M, Updated: 02 Nov, 2024 12:03 PM

hamirpur village harned becomes an example in natural farming

रासायनिक खाद के अंधाधुंध प्रयोग और अत्यंत जहरीले कीटनाशकों के छिड़काव से जहां हमारे खेत-खलिहानों, हवा और पानी में लगातार जहर घुल रहा है, वहीं यह जहर हमारे खान-पान तथा शरीर में भी प्रवेश कर रहा है।

हमीरपुर। रासायनिक खाद के अंधाधुंध प्रयोग और अत्यंत जहरीले कीटनाशकों के छिड़काव से जहां हमारे खेत-खलिहानों, हवा और पानी में लगातार जहर घुल रहा है, वहीं यह जहर हमारे खान-पान तथा शरीर में भी प्रवेश कर रहा है। इससे हमारे शरीर और आसपास के वातावरण में कई गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। कैंसर और कई अन्य जानलेवा बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। यही नहीं, जमीन की उर्वरा भी प्रभावित हो रही है।

हमारे आम जनजीवन तथा पर्यावरण में इन सभी दुष्प्रभावों को देखते हुए मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दे रही है और प्रदेश के अधिक से अधिक किसानों को इसके लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित कर रही है। प्राकृतिक खेती शुरू करने के लिए प्रदेश सरकार ने सिर्फ अनुदान का ही प्रावधान नहीं किया है, बल्कि इस खेती से उगाई जाने वाली फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य भी घोषित किया है जोकि रासायनिक खेती से पैदा की गई फसलों के मुकाबले कहीं अधिक है।

प्रदेश सरकार के इन प्रयासों के परिणामस्वरूप आज कई किसान प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। हमीरपुर की ग्राम पंचायत बफड़ीं के गांव हरनेड़ के तो सभी किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाने का संकल्प लिया है और अब यह गांव एक आदर्श गांव के रूप में उभरने लगा है। कृषि विभाग की आतमा परियोजना हमीरपुर के परियोजना निदेशक डॉ. नितिन कुमार शर्मा ने बताया कि गांव हरनेड़ के सभी 62 किसान परिवारों की लगभग 264 बीघा भूमि को ‘प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना’ के तहत प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाने के लिए शुरुआती चरण में 26 किसानों को 2-2 दिन का प्रशिक्षण प्रदान किया गया।

इसके बाद गांव के प्रगतिशील किसानों को प्रशिक्षण के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर भी भेजा गया तथा उन्हें देसी नस्ल की गाय खरीदने के लिए सब्सिडी प्रदान की गई। अब गांव के 59 किसान परिवार लगभग 218 बीघा भूमि पर पूरी तरह प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। अब वे हर सीजन में केवल एक-एक ही फसल उगाने के बजाय एक साथ कई फसलें उगा रहे हैं। गांव के प्रगतिशील किसान ललित कालिया ने बताया कि आतमा परियोजना के अधिकारियों की प्रेरणा से उन्होंने पालमपुर में प्रशिक्षण प्राप्त किया और सबसे पहले 4 कनाल जमीन पर प्राकृतिक खेती शुरू की।

अब वह अपनी पूरी जमीन पर प्राकृतिक खेती ही कर रहे हैं तथा किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद या केमिकलयुक्त कीटनाशक का प्रयोग नहीं कर रहे हैं। वह प्राकृतिक खेती के लिए बीजामृत, जीवामृत, द्रेकास्त्र, अग्निस्त्र और अन्य सामग्री स्वयं घर पर ही तैयार कर रहे हैं।  खरीफ सीजन में वह मक्की के साथ-साथ कोदरा, मंढल और कौंगणी जैसे मोटे अनाज, दलहनी फसलें जैसे-कुल्थ, माश और रौंगी, तिलहनी फसल के रूप में तिल और कचालू, अरबी, अदरक तथा हल्दी उगा रहे हैं। रबी सीजन में वह गेहूं के साथ सरसों, चना और मटर इत्यादि भी लगा रहे हैं।

गांववासी अब जहरमुक्त खेती के साथ-साथ कई ऐसे पौष्टिक मोटे अनाज व अन्य पारंपरिक फसलों के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं जोकि लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थीं। अब तो प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती से तैयार फसलों के लिए अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है जोकि सामान्य दामों से काफी ज्यादा है।

अभी खत्म हो रहे खरीफ सीजन की मक्की को गांव हरनेड़ के किसानों ने 30 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा, जबकि पहले मक्की को सामान्यतः प्रति किलो 18 से 20 रुपये तक ही दाम मिलता था। इस प्रकार, जिला हमीरपुर का यह छोटा सा गांव हरनेड़ प्राकृतिक खेती में एक आदर्श गांव बनकर उभर रहा है। प्रदेश सरकार के प्रोत्साहन के कारण ही यह संभव हो पाया है।

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