Himachal: बुढ़ापे में दवाई और घर खर्च को मोहताज HRTC पैंशनर्ज

Edited By Kuldeep, Updated: 03 Jun, 2025 06:18 PM

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सरकारी नौकरी में 35 से 40 साल नौकरी करने के बाद एचआरटीसी से सेवानिवृत्त हुए पैंशनर्ज आज पैंशन समय पर न मिलने के कारण दवाइयों और घर खर्च चलाने के लिए मोहताज हो गए हैं।

माह में 18 से 20 तारीख को मिल रही पैंशन, निगम 70 प्रतिशत पैंशनर्ज पैंशन पर निर्भर, बीमारी दोनों टांगें गंवा चुके पैंशनर ईश्वर सिंह, कई बार दवाई के लिए भी करना पड़ रहा इंतजार
शिमला (राजेश):
सरकारी नौकरी में 35 से 40 साल नौकरी करने के बाद एचआरटीसी से सेवानिवृत्त हुए पैंशनर्ज आज पैंशन समय पर न मिलने के कारण दवाइयों और घर खर्च चलाने के लिए मोहताज हो गए हैं। पैंशन समय से न मिलने से प्रदेश के 8500 पैंशनर परेशान हैं। कारण ये है कि निगम के करीब 70 प्रतिशत पैंशनर्ज ऐसे हैं जो पैंशन पर ही निर्भर हैं और विडंबना ये है कि मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री दो वर्षों में करीब 10 से 12 बार मिलने के बाद भी पैंशन माह की पहली तारीख को मिलने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है। पिछले कई महीनों से 16 से 21 तारीख के बीच मिल रही है।                                                        

निगम से सेवानिवृत्त हुए करीब 70 प्रतिशत विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त
पैंशनर्ज की परेशानी इसलिए भी है कि महंगाई के इस दौर में इन पैंशनरों के बच्चे निजी नौकरियों में हैं और निजी नौकरी में बच्चों व उनके परिवार का गुजारा ही मुश्किल होता है तो अन्य घर के खर्च कैसे होंगे। हिमाचल पथ परिवहन पैंशनर्ज कल्याण संगठन, हिमाचल पथ परिवहन कल्याण मंच का दावा है कि निगम से सेवानिवृत्त हुए करीब 70 प्रतिशत कर्मचारी मधुमेह, कैंसर, ह्दय, प्रोस्टेट, सहित कई बीमारियों से ग्रस्त हैं और इन बीमारियों से बचने के हर माह से 5 से 6 हजार की दवाई खरीदते हैं लेकिन जब समय से पैंशन ही नहीं मिलती तो दवाइयां कहां से खरीदें।

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घनाहट्टी के पैंशनर ईश्वर सिंह बीमारी में गंवा चुके टांगें, शूगर बीमारी से जूझ रहे
ऐसे तो प्रदेश भर में निगम से सेवानिवृत्त हुए हर एक पैंशनर की अपनी दुख की एक अलग कहानी है। लेकिन शिमला स्थित घनाहट्टी मेें रहने वाले निगम के पैंशनर्ज की ईश्वर सिंह भी समय से पैंशन न मिलने से आर्थिक समस्या से जूझ रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद ईश्वर सिंह की बीमारी के चलते दोनों टांगें चली गईं और शूगर यानी मधुमेह बीमारी से भी जूझ रहे हैं। वहीं एक आंख नजर भी खत्म हो गई है। उनका एक बेटा व बेटी है। बेटा निजी नौकरी करता है और अपने माता का सहारा है। वहीं आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए जो पैंशन मिलती है वह भी समय से नहीं मिलती है। ईश्वर सिंह कहना है कि उन्होंने सालों निगम की सेवा की है लेकिन आज वह जब मजबूर हैं और बीमार हैं तो निगम व सरकार पैंशन भी समय से नहीं दे पा रही है।                     

हिमकेयर में भी नहीं पैंशनर्ज को फ्री इलाज की सुविधा
सरकार ने हिमकेयर में अस्पतालों में इलाज के दौरान सरकारी कर्मचारियों व पैंशनर्ज को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधा भी बंद कर दी है। ऐसे में यदि किसी भी पैंशनर्ज ने इलाज करवाना हो तो उसे मौके पर हर दवाई और एक ऑप्रेशन में लगने वाले सामान के पैसे देने पड़ते हैं। ऐसे में पैंशनर्ज जाएं तो जाएं कहां।                                                                                                  

पैंशनरों की परेशानी उनकी ही जुबानी
पैंशनर देवराज ठाकुर का कहना है कि पैंशनरों के अन्य लाभ तो मिल ही नहीं रहे हैं लेकिन निगम समय से पैंशन भी नहीं दे रहे हैं। कभी 18 तो कभी माह की 22 तारीख को पैंशन मिल रही है। कई बार मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री से मिल चुके हैं लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।

पैंशनर राजेंद्र ठाकुर का कहना है कि एक सेवानिवृत्त कर्मचारी के लिए पैंशन उसका स्वाभिमान है और हर एक पैंशनर स्वाभिमान से जीना चाहता है। लेकिन पैंशन समय से न मिलने से पैंशनर्ज अपमानित होकर जीवन जी रहा है और दर-दर की ठोकरें खा रहा है। कभी निगम मुख्यालय तो कभी सचिवालय के चक्कर काट रहा है। सरकार पैंशन समय पर देने का समाधान करे।

पैंशनर भागमल का कहना है कि पैंशन समय से न मिलने से पैंशनरों को जीवन यापन मुश्किल हो गया है। वहीं सरकारी अस्पतालों में पैंशनरों को हिमकेयर के तहत मिलने वाली फ्री स्वास्थ्य सेवा भी बंद हो गई है। ऐसे में यदि पैंशनर्ज बीमार हो जाएं और किसी बीमारी के इलाज में ऑप्रेशन करवाना हो तो करीब 1 से 2 लाख जेब में रखने पड़ते हैं। सरकार को पैंशनरों के लिए फ्री सेवा बहाल करनी चाहिए।

पैंशनर किशोरी लाल का कहना है कि पैंशन के लिए हर माह इंतजार करना पड़ रहा है, पैंशन समय पर न मिलने से बैंकों की किस्तें भी समय पर नहीं जा रही हैं। वहीं उम्र के इस पड़ाव में जहां पैंशनर बीमारियों से घिरे हैं दवाई लेने के लिए भी पैंशन का इंतजार करना पड़ता है।

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