धार्मिक स्थल बूढ़ाकेदार में किया था पांडवों ने स्नान, जानिए क्या है मान्यता

Edited By Ekta, Updated: 12 Jun, 2019 01:57 PM

the pandav had bath in the religious place budhakedar

सराज के धार्मिक स्थल बूढ़ाकेदार में आज से निर्जला एकादशी के स्नान की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जानकारी के अनुसार शिव की तपोस्थली बूढ़ाकेदार में ज्येष्ठ माह के 29 और 30 प्रविष्टे को धार्मिक पर्व मनाया जाता है। पुजारी जोत राम शर्मा ने बताया कि...

गोहर (ख्याली राम): सराज के धार्मिक स्थल बूढ़ाकेदार में आज से निर्जला एकादशी के स्नान की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जानकारी के अनुसार शिव की तपोस्थली बूढ़ाकेदार में ज्येष्ठ माह के 29 और 30 प्रविष्टे को धार्मिक पर्व मनाया जाता है। पुजारी जोत राम शर्मा ने बताया कि उत्तराखंड के पंच केदारों के बाद सराज घाटी के जंजैहली क्षेत्र में स्थित बूढ़ाकेदार तीर्थ का भी अपना विशेष महत्व है। बुधवार 12 जून को यहां निर्जला एकादशी का स्नान होगा। बूढ़ाकेदार में देवी-देवता भी आकर स्नान करके अपने आप को पवित्र करते हैं। तीर्थ यात्रियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुलिस प्रशासन की तरफ से पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। 

बूढ़ाकेदार तीर्थ सनातन धर्म सभा के प्रधान हिमा राम शास्त्री ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की तरफ से प्राथमिक उपचार के लिए एक कर्मचारी नियुक्त किया गया है। हर वर्ष यहां प्रदेश सहित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली से भी तीर्थयात्री स्नान करने पहुंचते हैं। बर्फीला क्षेत्र होने के कारण नवम्बर से अप्रैल तक यात्री यहां नहीं पहुंच पाते हैं और बाकी शेष महीने यहां पर लोगों का तांता लगा रहता है। माता शिकारी देवी योगिनी शक्तिपीठ के आंचल में स्थित बूढ़ाकेदार में भगवान शिव अपनी तपोभूमि पर शिवलिंग रूप में गुफा में विराजमान हैं।

यह है मान्यता

जब पांडवों व कौरवों के मध्य युद्ध हुआ तो इसमें पांडवों पर उनके अनेक निकट संबंधियों की हत्या का दोष लगा था। दोष निवारण के लिए भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को कहा कि आप शिव के नंदी की विधिवत पूजा करो, इससे आपको हत्या के दोष से मुक्ति मिलेगी। इस उद्देश्य से पांडव खोजते हुए बूढ़ाकेदार नामक इस स्थान पर पहुंचे तो जैसे ही शिव ने पांडवों को देखा तो वे वहां से लुप्त हो गए व नंदी भी अपना सूक्ष्म रूप धारण करके वहां से भूमिगत हो गया। इसके बाद पांडवों ने यहीं पर स्नान करके हत्या के दोष से मुक्ति पाई थी।

चारधाम की यात्रा के बाद यहां स्नान जरूरी

बूढ़ाकेदार तीर्थ में आज भी लगभग 18 फुट गहरा कुआं मौजूद है, जिसके तल में संचित जल से गौमय की गंध आती है। जो चारधाम तीर्थयात्रा करते हैं, उनके लिए अंत में इस तीर्थ की यात्रा करना अनिवार्य माना जाता है अन्यथा उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। यहां शिव व काली के उपासक साधना करके अपने ईष्ट की सिद्धि सरलता से प्राप्त कर लेते हैं, वहीं अगर बूढ़ाकेदार तीर्थ में स्नान के बाद माता शिकारी के दर्शन किए जाएं तो माता उन पर काफी खुश हो जाती हैं।

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