Edited By Vijay, Updated: 16 Nov, 2024 11:54 AM
शांघड़ कोठी के आराध्य गढ़पति देवता शंगचूल महादेव करीब 25 वर्षों बाद क्षेत्र की परिक्रमा के लिए निकले हैं। भव्य शोभायात्रा के साथ कोठी शांघड़ के पटाहरा गांव से देवता को पूरे लाव-लश्कर के साथ....
सैंज (बुद्धि सिंह): शांघड़ कोठी के आराध्य गढ़पति देवता शंगचूल महादेव करीब 25 वर्षों बाद क्षेत्र की परिक्रमा के लिए निकले हैं। भव्य शोभायात्रा के साथ कोठी शांघड़ के पटाहरा गांव से देवता को पूरे लाव-लश्कर के साथ देवलुओं ने परिक्रमा के लिए निकाला, जिसके तहत पहला पड़ाव सुचैहण पंचायत में हुआ। सुचैहण के नरवाली गांव में पहुंचने पर देवता शंगचूल तथा स्थानीय देवता श्रीनाग का भव्य मिलन हुआ। देवताओं की अनुमति से दूसरे दिन भी सुचैहण पंचायत में ही देवता संग सभी देवलू रुके तथा देव परंपरा के अनुसार अगले पड़ाव के लिए कोठी बनोगी के देहुरी गांव जाएंगे। बता दें कि देव प्रथा के अनुसार फेरे का आयोजन देवता के आदेशों पर ही किया जाता है, जिसमें सुचैहण व देहुरी के साथ-साथ सैंजघाटी के धाऊगी, रोआड़, कनौन, रैला, शैंशर, बागीक्षयाड़ी, बनाऊगी, मैल, मझाण व शाकटी सहित विभिन्न स्थानों में जाएंगे।
ये देवता भी भरेंगे हाजिरी
देव रीति-रिवाज के अनुसार देवता शंगचूल के साथ जहां शांघड़ कोठी के विभिन्न गांवों से सभी देवलू हाजिरी देंगे, वहीं शंगचूल देवता के स्वामित्व व अधिकार क्षेत्र में आने वाले शांघड़ कोठी के देवता सरूनाग, देवता नारायण, थाण, शांघड़ी, चत्रखंड, वीर व भंभू आदि देवी-देवता भी इस परिक्रमा के दौरान अपनी हाजिरी के साथ-साथ गढ़पति देवता के आदेश पर देवलुओं को समय-समय पर देववाणी के तहत फरमान सुनाते हैं।
13 स्थानों में अलग-अलग देवी-देवताओं से होगा मिलन
देवता की कारदार सुधा शर्मा, प्रमुख पालसरा सत्य प्रकाश ठाकुर, पुजारी जगदीश शर्मा, गूर मोहन लाल शर्मा, पालसरा तारा सिंह, किशन सिंह, उत्तम सिंह, दीपक, भंडारी सुरेन्द्र नेगी, बजंतरी सूरत, डाबे राम, चुनी लाल व रामसरन आदि ने बताया कि इस परिक्रमा में लगभग 13 स्थानों में अलग-अलग देवी-देवताओं से मिलन होगा, जिसमें देवता के आदेशानुसार ही सभी परंपराओं का निर्वहन किया जाएगा।
देवलुओं ने देवता के सम्मान में किया लोकनृत्य
प्रमुख पालसरा ने बताया कि इस परिक्रमा के दौरान बजंतरी सहित देवता के सभी कारकून व हरियान अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते हैं तथा परिक्रमा के दौरान अगर देवता की इजाजत न हो तो एक स्थान पर एक से अधिक दिन भी देवलुओं को ठहराव करना पड़ता है। उधर, सुचैहण पहुंचने पर परिक्रमा के दूसरे दिन देवलुओं ने देवता के सम्मान में लोकनृत्य का आयोजन किया।
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