Edited By Vijay, Updated: 13 Nov, 2024 04:28 PM
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सुक्खू सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। प्रदेश हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सरकार के छह मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) को हटाने के आदेश दिए हैं....
शिमला (योगराज): हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सुक्खू सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। प्रदेश हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सरकार के छह मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) को हटाने के आदेश दिए हैं और इसके साथ ही सीपीएस एक्ट, 2006 को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इन सभी सीपीएस को दी गई सुविधाओं और विशेषाधिकारों को तुरंत प्रभाव से वापिस लेने का आदेश दिया है। यह निर्णय प्रदेश सरकार के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
कोर्ट का फैसला और आदेश
यह फैसला हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की डबल बैंच ने सुनाया, जिसमें जज विवेक सिंह ठाकुर और बिपिन चंद्र नेगी शामिल थे। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि सीपीएस एक्ट, 2006 को संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं पाया गया और इसे रद्द किया जाता है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को यह भी आदेश दिया कि मुख्य संसदीय सचिवों को दी जाने वाली सभी सरकारी सुविधाएं और अन्य लाभों को तुरंत वापिस लिया जाए।
क्या है सीपीएस एक्ट, 2006 और इसके प्रभाव
सीपीएस एक्ट, 2006 का उद्देश्य मुख्य संसदीय सचिवों को सरकार का कार्यभार बांटने और प्रशासनिक कार्यों में सहयोग प्रदान करना था। इसके अंतर्गत सीपीएस को कैबिनेट मंत्रियों के समकक्ष सुविधाएं दी जाती थीं, जिसमें सरकारी वाहन, कार्यालय, स्टाफ और अन्य लाभ शामिल थे। हालांकि, लंबे समय से इस एक्ट की वैधता पर सवाल उठाए जा रहे थे और विपक्ष ने इस पर आलोचना की थी कि इस कानून के माध्यम से सरकार अपने समर्थकों को राजनीतिक लाभ प्रदान कर रही है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और विपक्ष का आक्रमण
कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश की राजनीतिक स्थिति गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे "सुक्खू सरकार के गलत फैसलों का नतीजा करार दिया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और कई विधायकों ने इस फैसले पर खुशी जताई और इसे प्रदेश की जनता के हित में बताया। उन्होंने कहा कि इससे साबित होता है कि कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान गलत फैसले लिए हैं और सत्ता का दुरुपयोग किया है। दूसरी ओर कांग्रेस सरकार ने इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की है। सरकार के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि वे इस फैसले का गहनता से अध्ययन करेंगे और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट में अपील करने पर विचार करेंगे।
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