Edited By Kuldeep, Updated: 31 Dec, 2024 09:49 PM
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्थानांतरण नीति के प्रावधानों में मनमाने तरीके से छूट देने को गैर-कानूनी ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि स्थानांतरण नीति के प्रावधानों को किसी विशेष कर्मी को समायोजित करने के लिए सिर्फ इसलिए शिथिल नहीं किया जा सकता क्योंकि...
शिमला (मनोहर): हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्थानांतरण नीति के प्रावधानों में मनमाने तरीके से छूट देने को गैर-कानूनी ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि स्थानांतरण नीति के प्रावधानों को किसी विशेष कर्मी को समायोजित करने के लिए सिर्फ इसलिए शिथिल नहीं किया जा सकता क्योंकि सर्वोच्च प्राधिकारी के पास शिथिलता की शक्ति का प्रयोग करने का विवेक है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से प्रावधानों में छूट देने की शक्ति का उद्देश्य ही कानून में गलत हो जाएगा क्योंकि जब विवेकाधिकार निहित होता है तो इसका प्रयोग अत्यधिक सावधानी और सतर्कता के साथ किया जाना चाहिए न कि मनमाने और तर्कहीन तरीके से।
न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने प्रार्थी शशि बाला की याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि निजी प्रतिवादी का बतौर डिप्टी रेंजर उसके गृह क्षेत्र में स्थानांतरण कानून की नजर में उचित नहीं है और न ही उच्चतम प्रशासनिक प्राधिकारी द्वारा छूट देने की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। कोर्ट ने प्रतिवादियों को आदेश दिए कि वे याचिकाकर्त्ता को तीन साल की सामान्य अवधि के लिए उसकी वर्तमान नियुक्ति के स्थान पर सेवा जारी रखने की अनुमति दें।
मामले के अनुसार याचिकाकर्त्ता को उसके अनुरोध पर वन प्रभाग ऊना के अंतर्गत वन खंड ऊना, रेंज ऊना में स्थानान्तरण के माध्यम से तैनात किया गया था। उसकी शिकायत थी कि निजी प्रतिवादी को समायोजित करने के लिए उसे निजी प्रतिवादी के स्थान पर अभियोजन ड्यूटी के लिए डीएफओ ऊना के कार्यालय में स्थानांतरित और तैनात किया गया है। सरकार ने बिना यह समझे कि निजी प्रतिवादी जिला ऊना का निवासी है, इसलिए उसे स्थानांतरण नीति के अनुसार उसके गृह क्षेत्र में तैनात नहीं किया जा सकता है। हालांकि सरकार को इस प्रावधान में छूट देने की शक्ति प्रदान की गई है जिसके अनुसार व्यापक मार्गदर्शक सिद्धांतों के किसी भी प्रावधान को संबंधित विभाग के प्रभारी मंत्री के माध्यम से प्राप्त मुख्यमंत्री की पूर्व स्वीकृति से छूट दी जा सकती है।
कोर्ट ने कहा कि जब स्थानांतरण नीति में प्रावधान है कि कुछ श्रेणी के अधिकारियों/कर्मचारियों को उनके गृह जिले/मंडल/रेंज में तैनात नहीं किया जा सकता है तो इसका एक उद्देश्य है। तर्क यह है कि अधिकारियों/कर्मचारियों पर पक्षपात या भाई-भतीजावाद या अनुचित दबाव के किसी भी मामले से बचने के लिए उन्हें उनके गृह संभाग या गृह सर्किल या जिले या गृह उप-संभाग या गृह रेंज या बीट आदि में तैनात नहीं किया जाना चाहिए, जैसा कि नीति में उल्लेख किया गया है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान में छूट देने की शक्ति का मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता है।