Edited By Jyoti M, Updated: 13 Apr, 2025 03:18 PM

शिकारी देवी-कमरुदेव पर्वत श्रृंखला के आंचल में स्थित वन निरीक्षण चौकी जाच्छ-काण्ढा से लेकर चरखड़ी रोहाड़ा और खनीऊड़ी व शिवा देओरा तक की पहाड़ियां रहस्यमयी और मंत्रमुग्ध कर देने वाली हैं। देवदार के हरे-भरे वनों से आच्छादित यह क्षेत्र बहुत ही...
सुंदरनगर, (सोढी): शिकारी देवी-कमरुदेव पर्वत श्रृंखला के आंचल में स्थित वन निरीक्षण चौकी जाच्छ-काण्ढा से लेकर चरखड़ी रोहाड़ा और खनीऊड़ी व शिवा देओरा तक की पहाड़ियां रहस्यमयी और मंत्रमुग्ध कर देने वाली हैं। देवदार के हरे-भरे वनों से आच्छादित यह क्षेत्र बहुत ही खूबसूरत है। यहां पर रीढ़ाधार, छोलगढ़, झौरगढ़, भयाणागढ़, टिक्करगढ़, भज्योगगढ़, मदनगढ़, चराण्डीगढ़ व अनेक प्राचीन मंदिर शांति, आराम और शोध के स्थल है। यहां की ताजी आबोहवा में श्रद्धालु और पर्यटक तरोताजा महसूस करते है।
पांगणा उप तहसील मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर करसोग-सुंदरनगर मार्ग पर स्थित जाच्छ वन निरीक्षण चौकी से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित बह गांव बहुत ही मनोहारी है। देवदार के घने जंगल मदनगढ़ के आगोश में बसा बह गांव लक्ष्मी- नारायण और भीमाकाली के मंदिरों के लिए अधिक जाना जाता है। दोनों मंदिरों की वास्तुकला और काष्ट कला श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। दोनों देवताओं का बह, जाच्छ, दशाहल, चड़ाओग, बिखारी, गोडन, मशोबरा सहित अनेक गांव में व्यापक प्रभाव और अत्यधिक आस्था है।
इन मंदिरों की स्थापना के विषय में एक किंवदंती के आधार पर बह निवासी कांशीराम ठाकुर का कहना है कि सदियों पहले रामपुर रियासत के मझयोल गांव से यहां आकर बसे मूल पुरुष रेलाराम ठाकुर ने इन दोनों देवी-देवताओं की बह में स्थापना की थी। दोनों मंदिरों के श्री विग्रह लोगों द्वारा उपासित होकर सर्व सिद्धि प्रदान करने लगे। इन मंदिरों के ऐश्वर्य की गरिमा दूर-दूर तक फैली। एकदम शांत सुरम्य नैसर्गिक वातावरण के सम्मोहन से परिपूर्ण मंदिर परिसर में लंकडा वीर की प्रस्तर प्रतिमा पूज्य है। यहां से शिकारी देवी, रेश्टाधार और शिमला की पर्वत श्रृंखला का नजारा श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है।
हर महीने की संक्रांति व वर्ष भर आयोजित होने वाले मुंडन व अन्य संस्कार के अवसर पर यहां का शांत वातावरण श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। वर्ष भर दूर-दूर से श्रद्धालु भक्तजन यहां आकर श्रद्धापूर्वक यथाविधि पूजा-अर्चना कर सदैव संतान, सुख, सौभाग्य और संपन्नता की मनौती मांगते और सफलता पर भेंट अर्पित करते हैं। मंदिर की प्रबंधन कमेटी के प्रधान नरेंद्र कुमार व राज्य पुरातत्व चेतना सम्मान से सम्मानित डा. जगदीश शर्मा का कहना है कि अगर सरकार यहां विकास पर ध्यान दे तो इस क्षेत्र को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।