Edited By Kuldeep, Updated: 02 Jul, 2025 08:40 PM

तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने बुधवार को स्पष्ट किया कि उनका पुनर्जन्म होगा और यह प्राचीन बौद्ध संस्था उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहेगी।
धर्मशाला (नितिन): तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने बुधवार को स्पष्ट किया कि उनका पुनर्जन्म होगा और यह प्राचीन बौद्ध संस्था उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहेगी। यह बयान उन अटकलों पर विराम लगाता है जो तब शुरू हुई थीं जब उन्होंने संकेत दिया था कि वह अंतिम दलाईलामा हो सकते हैं। अपने 90वें जन्मदिन से पहले प्रार्थना सभाओं के दौरान उन्होंने कहा कि अगला दलाईलामा पारंपरिक बौद्ध रीति-रिवाजों के अनुसार ही खोजा और मान्यता प्राप्त किया जाएगा और चीन को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
हालांकि यह निर्णय चीन को नाराज कर सकता है, जो लगातार यह दावा करता रहा है कि दलाईलामा के उत्तराधिकारी की पहचान केवल वह ही कर सकता है। चीन यह भी कहता रहा है कि अगला अवतार केवल चीन के तिब्बती क्षेत्रों में ही पाया जाना चाहिए, जिससे चयन प्रक्रिया पर उसका नियंत्रण बना रहे। दलाईलामा जिनका नाम तेनजिन ग्यात्सो है, वह 1940 में 14वें अवतार के रूप में पहचाने गए थे। 1959 में ल्हासा में हुए तिब्बती विद्रोह के बाद जब चीनी सेना ने कार्रवाई की तो उन्होंने तिब्बत छोड़कर भारत के धर्मशाला में शरण ली। धर्मशाला में एक धार्मिक सभा में टैलीकास्ट किए गए एक रिकॉर्डिड बयान में दलाईलामा ने कहा कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान की प्रक्रिया केवल गदेन फोद्रंग ट्रस्ट के अधिकार क्षेत्र में आती है।
यह एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो उन्होंने 2015 में स्थापित की थी। यह संस्था दलाईलामा से संबंधित मामलों की देखरेख भी करती है। इसी बीच निर्वासित तिब्बती प्रधानमंत्री पेंपा सेरिंग ने भी प्रैस वार्ता कर चीन को चेतावनी दी कि वह इस पवित्र तिब्बती बौद्ध परंपरा में हस्तक्षेप न करे। उन्होंने कहा, “हम चीन की इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की मंशा की कड़ी निंदा करते हैं और इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
कैसे चुने जाते हैं दलाईलामा
तिब्बती बौद्ध परंपरा में यह विश्वास है कि दलाईलामा स्वयं यह तय कर सकते हैं कि वह अगले जन्म में किस शरीर में जन्म लेंगे। यह परंपरा 1587 से जारी है और अब तक 14 बार हो चुकी है। गौरतलब है कि दलाईलामा के उत्तराधिकारी को खोजने की प्रक्रिया केवल उनके निधन के बाद ही शुरू होती है। परंपरागत रूप से वरिष्ठ भिक्षु उनके उत्तराधिकारी की पहचान दिव्य संकेतों और दृष्टियों के आधार पर करते हैं।