Chamba: अपने पिता द्वारा वर्ष 1960 में शुरू की गए घराट को आज भी चला रहे हैं गांव चुराड़ी निवासी बृजलाल

Edited By Jyoti M, Updated: 22 Mar, 2025 12:57 PM

brijlal a resident of churari village is still running the mill

नदी नालों के प्रवाह से जलधारा की शक्ति का प्रयोग करके घराट द्वारा आटा पीसने की तकनीक एक ओर जहां पर्यावरण के लिए अनुकूल है वहीं इससे ऊर्जा की भी बचत होती है यही नहीं कम तापमान में पिसाई होने के कारण घराट से पिसे हुए आटे की पौष्टिक गुणवत्ता भी कायम...

चंबा। नदी नालों के प्रवाह से जलधारा की शक्ति का प्रयोग करके घराट द्वारा आटा पीसने की तकनीक एक ओर जहां पर्यावरण के लिए अनुकूल है वहीं इससे ऊर्जा की भी बचत होती है यही नहीं कम तापमान में पिसाई होने के कारण घराट से पिसे हुए आटे की पौष्टिक गुणवत्ता भी कायम रहती थी। लेकिन बदलते दौर में विज्ञान और तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से आज आटा पीसने के लिए घराट का इस्तेमाल न के बराबर है तथा अधिकतर लोग विभिन्न प्रकार की घरेलू व वाणिज्यिक विद्युत चलित आटा चक्कियों से ही अनाज की पिसवाई करवाते हैं लेकिन फिर भी कुछ एक स्थानों पर आज भी लोग घराट द्वारा पिसे हुए आटे को स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक और गुणकारी मानते हैं तथा विभिन्न प्रकार के अनाजों की पिसवाई के लिए घराटों को अधिक महत्व देते हैं।

अतीत में जिला चंबा के अनेक स्थानों पर अनाज पिसाई के लिए अधिकतर घराटों का ही इस्तेमाल होता था मगर बदलते दौर में विभिन्न कारणों से जिला में घराटों की संख्या में भारी कमी आई है। बावजूद इसके विकास खंड मैहला की ग्राम पंचायत मैहला के गांव चुराड़ी निवासी बृजलाल लगभग 65 वर्ष पूर्व उनके पिता स्वर्गीय मट्टू राम द्वारा वर्ष 1960 में शुरू किए गए घराट को आज भी चला रहे हैं तथा साथ लगती ग्राम पंचायतों की लगभग 10 हजार की आबादी के लिए विभिन्न किस्मों के अनाज की पिसाई कर रहे हैं।

बृजलाल ने बताया कि उनके घराट पर ग्राम पंचायत बंदला, बागड़ी बांग्ला तथा मैहला इत्यादि ग्राम पंचायतों के लोग आकर मक्की, गेहूं, चावल, चना दाल तथा हल्दी इत्यादि की पिसाई करवाते हैं। घराट में प्रतिदिन तीन किवंटल तक गेहूं तथा दो किवंटल तक मक्की की पिसाई की जाती है। घराट में पिसा आटा मिलों में पिसे आटे की तुलना में अधिक पौष्टिक होता था, क्योंकि इसमें अनाज का पूरा छिलका और रेशा सुरक्षित रहता था। बृजलाल बताते हैं कि उनके पिता द्वारा शुरू किया गया यह घराट आज भी उनके जीवन यापन का माध्यम है तथा इससे उनके परिवार का गुजारा हो रहा है। इस प्रकार ग्राम पंचायत मैहला के गांव चुराड़ी में 65 वर्ष पूर्व बना घराट आज भी प्राचीन तकनीक और जलशक्ति के उपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण पेश कर रहा है।

घराट में आटा पिसवाई के लिए आए स्थानीय निवासी दीक्षा ठाकुर, संदीप कुमार, संत राम, सुभाष कुमार बुधिया राम, बूटा राम, राजेंद्र कुमार, परस राम, मनो राम, तिलक, करम चंद, पृथ्वी चंद, कमल तथा विकास ने बताया कि उनका परिवार पिछले कई दशकों से इसी घराट से विभिन्न प्रकार के अनाज की पिसवाई करवाते हैं। उन्होंने बताया कि हालांकि क्षेत्र में अब जगह-जगह विद्युत चलित आटा चक्कियां उपलब्ध हैं बावजूद इसके अभी भी वे तथा अनेक क्षेत्रवासी केवल घराट का पिसा हुआ आटा खाना ही पसंद करते हैं। उन्होंने बताया कि शीतल पिसाई के कारण घराट के आटे में सभी पौष्टिक गुण मौजूद रहते हैं जिस कारण यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक है।

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