Himachal: एक बेजुबान ने दिखाया रास्ता, बाढ़ में फंसी 25 गायों की इस तरह बची जान, जानिए अनोखी कहानी

Edited By Jyoti M, Updated: 06 Sep, 2025 02:22 PM

25 cows trapped in flood were saved know the unique story

यह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की एक सच्ची और दिल को छू लेने वाली कहानी है, जहाँ एक साधारण कुत्ते ने नायकों का रूप धारण किया और इंसानों को प्रेरित कर 25 से अधिक गायों की जान बचाई। यह कहानी दर्शाती है कि कैसे दया, साहस और निस्वार्थ सेवा ने प्रकृति...

हिमाचल डेस्क। यह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की एक सच्ची और दिल को छू लेने वाली कहानी है, जहाँ एक साधारण कुत्ते ने नायकों का रूप धारण किया और इंसानों को प्रेरित कर 25 से अधिक गायों की जान बचाई। यह कहानी दर्शाती है कि कैसे दया, साहस और निस्वार्थ सेवा ने प्रकृति के कहर पर विजय पाई।

हिमाचल में दया की अनोखी कहानी

हिमाचल प्रदेश में जब पोंग बांध से पानी छोड़ा गया, तो ब्यास नदी की लहरें उग्र हो गईं और किनारों को तोड़ती हुई आगे बढ़ने लगीं। इस भयंकर उफान में, कांगड़ा जिले के रियाली पुल के पास एक छोटा सा टापू पूरी तरह से पानी से घिर गया। इस टापू पर लगभग 25-30 गायों का एक झुंड कई दिनों से फंसा हुआ था। भूखी और प्यासी, ये गायें धीरे-धीरे अपनी हिम्मत हार रही थीं, और उनके बचने की उम्मीद कम होती जा रही थी।

गाँव वालों को इस बात की कोई खबर नहीं थी, जब तक एक साधारण कुत्ते ने उन्हें रास्ता नहीं दिखाया। वह कुत्ता, जो बाद में इस कहानी का सबसे बड़ा हीरो बना, शाम करीब चार बजे गाँव के रमेश कालिया के पास पहुँचा। बारिश की तेज़ आवाज़ और नदी के शोर के बीच, वह लगातार भौंक रहा था, जैसे कुछ कहना चाहता हो। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी और साँसें तेज़ी से चल रही थीं। रमेश और गाँव वालों ने उसे कई बार हटाने की कोशिश की, लेकिन वह पीछे नहीं हटा। बल्कि, वह उन्हें अपनी ओर इशारा कर रहा था, मानो कह रहा हो, "जल्दी चलो, मेरा पीछा करो।"

कुत्ते का व्यवहार इतना असाधारण था कि रमेश ने उसका पीछा करने का फैसला किया। कुत्ता उन्हें लगभग 900 मीटर तक रास्ता दिखाता रहा और फिर अचानक रुक गया। सामने देखा तो ब्यास नदी के बीचो-बीच एक छोटा सा टापू था, जिसके चारों ओर पानी की भयंकर लहरें थीं और बीच में गायों का एक झुंड फंसा हुआ था। यह दृश्य देखकर सभी के दिल सहम गए। रमेश तुरंत गाँव वापस लौटे और सभी को यह खबर दी।

गाँव के लोग तुरंत हरकत में आए। किसी ने पेड़ों की टहनियां काटीं, तो किसी ने हरे पत्ते तोड़े। देखते ही देखते 24 क्विंटल से अधिक चारा जमा कर लिया गया। अब सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि इस उफनती नदी को पार करके टापू तक कौन जाएगा। तभी, नूर मुहम्मद, जो भारतीय सेना से सेवानिवृत्त थे, और उनके साथी संजीव अली आगे आए। उन्होंने नाव में चारा भरा और ठंडी, गुस्साई लहरों के बीच अपनी जान जोखिम में डालकर टापू की ओर निकल पड़े। काफी मशक्कत के बाद, वे टापू पर पहुँचे और जैसे ही चारा जमीन पर रखा, गायें उस पर टूट पड़ीं। वे लगभग सात दिनों से भूखी थीं।

असंभव को संभव बनाया

रात होने पर गाँव वालों की चिंता और बढ़ गई। अगली सुबह, रमेश ने फिर से कोशिश शुरू की। उन्होंने तहसीलदार से संपर्क किया, जिनकी मदद से पास के गाँव से कुशल तैराकों को बुलाया गया। पानी का बहाव 16-18 फीट ऊंचा था, लेकिन तैराकों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए रस्सियों की एक श्रृंखला बनाई। एक-एक करके, सभी गायों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।

यह अद्भुत बचाव अभियान पूरा होने के बाद, वह कुत्ता, जिसने सबसे पहले रास्ता दिखाया था, चुपचाप कहीं गायब हो गया। रमेश का कहना है कि वह पिछले तीन दिनों से उस कुत्ते को तलाश कर रहे हैं, लेकिन वह कहीं नहीं दिख रहा है। यह कहानी एक साधारण कुत्ते के असाधारण साहस और इंसानों की दयालुता का एक बेहतरीन उदाहरण है।

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