Himachal: मंडी का प्रसिद्ध मंदिर जहां एक महीने तक चढ़ाया जाएगा अढाई क्विंटल मक्खन

Edited By Jyoti M, Updated: 29 Jan, 2025 03:01 PM

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हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहाँ कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जिससे कई मान्यताएँ और परंपराएँ जुड़ी हुई हैं। एक ऐसा ही रहस्यमय और प्रसिद्ध मंदिर मंडी शहर में स्थित बाबा भूतनाथ मंदिर है। यह मंदिर अपनी प्राचीन...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जिससे कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। एक ऐसा ही रहस्यमय और प्रसिद्ध मंदिर मंडी शहर में स्थित बाबा भूतनाथ मंदिर है। यह मंदिर अपनी प्राचीन परंपराओं के लिए जाना जाता है, अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव से एक माह पूर्व से बाबा भूतनाथ मंदिर में प्राचीन समय से मक्खन चढ़ाने की परंपरा को कायम रखते हुए हर रोज अलग-अलग रूपों का शृंगार किया जाता है।

इस बार भी तारा रात्रि (सोमवार रात्रि) 11 बजे से लेकर सुबह चार बजे तक बाबा भूतनाथ का 21 किलो मक्खन के साथ विशेष शृंगार किया। स्वयंभू शिवलिंग का मक्खन से शृंगार होते ही महाशिवरात्रि के कारज शुरू हो गए हैं। अब एक महीने तक हर रोज शिवलिंग पर अलग-अगल रूपों को उकेरा जाएगा। दो से अढाई क्विंटल मक्खन इस अवधि में शिवलिंग पर चढ़ाया जाएगा।

बाबा भूतनाथ मंदिर के पुजारी महंत दयानंद सरस्वती ने बताया कि प्राचीन परंपरा का निर्वाह करते हुए मंडी के आराध्य देव बाबा भूतनाथ में शिवलिंग का शृंगार मक्खन के लेप से किया जाता है। शिवरात्रि के एक दिन पहले इस लेप को निकाला जाएगा। मान्यता है कि वैदिक काल से यह परंपरा चली आ रही हैं। मंदिर के महंत देवानंद सरस्वती के अनुसार हर शाम जब वह साधना में होते हैं। इस दौरान उन्हें जिस भी देवी-देवता का स्वरूप दिखता है, उसे मक्खन के शिवलिंग में उकेर देते हैं। इस तरह यहां श्रद्धालुओं को देश भर में पूजे जाने वाले प्रमुख देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं। 

मंदिर में एक और दिलचस्प बात है कि इस दौरान शिवलिंग पर पानी नहीं चढ़ाया जाता। यह परंपरा 30 दिनों तक लगातार चलती रहती है। हालांकि, यह परंपरा धार्मिक आस्था से जुड़ी हुई है। बाबा भूतनाथ मंदिर की यह परंपरा सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यहां आने वाले भक्तों का विश्वास और श्रद्धा इस परंपरा को कायम रखे हुए हैं। मंदिर में इस तरह की परंपराएं उन लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनती हैं जो अपनी श्रद्धा और विश्वास को लेकर सही मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं।

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