Edited By Kuldeep, Updated: 09 Jul, 2025 11:26 PM

हाल ही में सराज के विभिन्न क्षेत्रों में आपदा के कारण लोग मटर की फसल के लिए जगलों और खेतों में खरपतवार नाशक दवाई ग्लाइसिल के छिड़काव को भी मान रहे हैं।
थुनाग (ख्यालीराम): हाल ही में सराज के विभिन्न क्षेत्रों में आपदा के कारण लोग मटर की फसल के लिए जगलों और खेतों में खरपतवार नाशक दवाई ग्लाइसिल के छिड़काव को भी मान रहे हैं। लोगों का कहना है कि इस कीटनाश के छिड़काव से जिससे भूमि की ताकत कमजोर होती जा रही है और भूस्खलन हो रहा है। बता दें कि यहां पर बड़े पैमाने पर मटर की खेती की जाती है जिसके लिए लोग जंगलों की भूमि को चुनते हैं। कुथाह के लोहारू राम शर्मा ने दास्तां बयां करते हुए कहा कि वह परिवार के साथ घर में थे। पीछे से बड़े जोर की आवाज सुनाई दी और पूरा परिवार जल्दी से बाहर निकल गया। भूस्खलन से आए मलबे ने उनके आशियाने को देखते ही देखते पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया। मौत मात्र 2 मिनट में छू कर निकल गई जिसमें 4 लोगों की जिंदगी तबाह होने से बच गई। सराज के लोग अब राहत और पुनर्वास की उम्मीद में सरकार की ओर देख रहे हैं, लेकिन उनकी आंखों में अनिश्चितता और दर्द साफ दिखाई देता है।
पाई-पाई जोड़कर बनाए आशियाने चढ़ गए आपदा की भेंट
जूड़ गांव की भैरवू देवी की कहानी दिल दहला देती है। पाई-पाई जोड़कर बनाया गया उनका मकान आपदा की भेंट चढ़ गया। भैरवू के लिए यह मकान सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि उनकी मेहनत और सपनों का प्रतीक था। इसके साथ ही नोक सिंह की जिंदगी भी उजड़ गई। 2 मंजिला मकान, जिसमें उनकी दुकान थी, पूरी तरह बह गया। कर्ज लेकर बनाया घर, जमीन, और आजीविका सब कुछ खत्म। नोक सिंह सड़क पर आ गए हैं, और उनकी हिम्मत टूट चुकी है। उन्होंने रुंधे गले से कहा कि कर्ज लिया था घर बनाने को, अब न घर बचा, न हौसला।
मैंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा जलजला देखा : सूरत
रूशाड़ गांव के 96 वर्षीय सूरत राम ने बताया कि मेरे सामने की पहाड़ी उस रात बह गई जिससे पांडवशिला तक सब कुछ तबाह हो गया। मैंने अपने जीवन में पहली बार ऐसा जलजला देखा। इसी गांव के 83 वर्षीय सूरत नाम की चिंता भविष्य को लेकर है। उन्होंने कहा कि हम तो जीवन के अंतिम पड़ाव में हैं, लेकिन हमारी अगली पीढ़ी कैसे जिएगी? सारे खेत बह गए, कुछ नहीं बचा। इनकी बातों में भविष्य के प्रति अनिश्चितता और डर साफ झलकता है।
सब सूना और खंडहर सा है थुनाग बस स्टैंड : डागी राम
थुनाग बस स्टैंड पर चाय की दुकान चलाने वाले डागी राम भी सदमे में हैं। इनका कहना है कि जमीन से किसान की अर्थव्यवस्था चलती थी, लेकिन अब सब चौपट हो गया। बाजार आना भी डरावना लगता है। सब सूना और खंडहर सा है। आपदा ने न सिर्फ उनकी आजीविका छीनी, बल्कि उनके मन में डर भी भर दिया। थुनाग में कारपेंटर पूर्ण चंद के अनुसार यह आपदा सिर्फ मकानों और खेतों को नहीं बहा ले गई, बल्कि लोगों के सपनों, हिम्मत और भविष्य को भी अपने साथ ले गई।