अब भी वक्त है! "मिट सकता है पूरा हिमाचल''.. सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, "सरकार से मांगा जवाब"

Edited By Jyoti M, Updated: 02 Aug, 2025 11:34 AM

the whole of himachal can be wiped out  supreme court expressed concern

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश की बिगड़ती पर्यावरणीय स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो "पूरा हिमाचल प्रदेश नक्शे से गायब हो जाएगा।" कोर्ट ने जोर देकर कहा कि राजस्व अर्जित करना...

हिमाचल डेस्क। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश की बिगड़ती पर्यावरणीय स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो "पूरा हिमाचल प्रदेश नक्शे से गायब हो जाएगा।" कोर्ट ने जोर देकर कहा कि राजस्व अर्जित करना ही सब कुछ नहीं है और पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं हो सकता। इस गंभीर मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को नोटिस भेजकर चार हफ्तों के भीतर उन कदमों की जानकारी मांगी है जो राज्य सरकार ने पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिए उठाए हैं।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अब समय आ गया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार इस मामले को गंभीरता से ले और जल्द से जल्द सही दिशा में आवश्यक कार्रवाई करे। पीठ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हिमाचल प्रदेश पर स्पष्ट रूप से दिख रहा है, और यह चिंताजनक है।

मानवीय गतिविधियों को बताया जिम्मेदार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले कुछ सालों में हिमाचल में आई गंभीर आपदाओं के लिए सिर्फ प्रकृति को दोष देना सही नहीं है। इन आपदाओं के पीछे गंभीर पारिस्थितिकीय असंतुलन है, जिसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं। कोर्ट ने कहा कि पहाड़ों और मिट्टी के लगातार खिसकने और भूस्खलन जैसी घटनाओं के लिए इंसान ही जिम्मेदार हैं। बेतरतीब निर्माण और पेड़ों की कटाई जैसी गतिविधियों ने स्थिति को और भी बदतर बना दिया है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है।

केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी तय की है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र का यह दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि राज्य में पारिस्थितिक असंतुलन और न बिगड़े। हालांकि बहुत नुकसान हो चुका है, लेकिन कहावत है कि "कुछ न होने से कुछ होना बेहतर है।" इसका मतलब यह है कि अभी भी समय है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर स्थिति को सुधारने के लिए कदम उठाएं।

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