Edited By Kuldeep, Updated: 09 Sep, 2025 10:07 PM

आईजीएमसी शिमला ने बाल शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करते हुए पहली बार 5 माह के शिशु में बाएं हेमिडियाफ्राम इवेंट्रेशन का थोरैकोस्कोपिक रिपेयर सफलतापूर्वक किया गया।
शिमला (संतोष): आईजीएमसी शिमला ने बाल शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करते हुए पहली बार 5 माह के शिशु में बाएं हेमिडियाफ्राम इवेंट्रेशन का थोरैकोस्कोपिक रिपेयर सफलतापूर्वक किया गया। यह शिशु जो रिपन अस्पताल शिमला में प्री-टर्म जन्मा था (जन्म के समय वजन 2.8 किलोग्राम) और जिसे आरएच असंगति थी, को आईजीएमसी शिमला के शिशु रोग विभाग में टैकीप्निया और ऑक्सीजन की कमी की समस्या के कारण भेजा गया। डा. प्रवीण भारद्वाज की देखरेख में इस बच्चे का 2 बार पीआईसीयू में सीने के संक्रमण और सांस लेने में कठिनाई के कारण इलाज किया गया, जिसके बाद डायफ्राम इवेंट्रेशन का निदान हुआ।
5 माह की आयु में इस शिशु का थोरैकोस्कोपिक रिपेयर किया गया। यह शल्य क्रिया आईजीएमसी शिमला में पहली बार बाल शल्य चिकित्सा टीम द्वारा की गई, जिसमें डा. राजकुमार, डा. कमल कांत शर्मा, डा. नवीन ठाकुर, आरके नेगी, डा. मंजीत, डा. प्रदीप और डा. राम लोक शामिल थे। इतने छोटे शिशु में यह न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया अत्यंत चुनौतीपूर्ण होती है, क्योंकि सीमित ऑप्रेटिव स्पेस, फेफड़े का फूलना और डायफ्राम की लगातार गति कठिनाई उत्पन्न करती है।
इस जटिल शल्य क्रिया को सफल बनाने में एनैस्थीसिया विभाग का अहम योगदान रहा। टीम का नेतृत्व डा. एस. सोढ़ी ने किया और इसमें डा. दारा सिंह नेगी, डा. मनोज पंवार, डा. राधिका, डा. महक, डा. सृष्टि और डा. शिवानी शामिल रहीं। ओटी स्टाफ में नर्स सपना, ओटी असिस्टैंट कामेश्वर और वैशाली ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया। ऑप्रेशन के बाद शिशु की देखभाल बाल शल्य चिकित्सा नर्सिंग टीम ने वार्ड सिस्टर रीता के मार्गदर्शन में की, जिसमें श्यामा, स्मृति, सविता, तेजस्विनी, रंजना, शालू और लता सम्मिलित रहीं, जब तक कि शिशु को सुरक्षित रूप से छुट्टी नहीं दे दी गई।
इस उपलब्धि पर बाल शल्य चिकित्सा टीम के प्रमुख डा. राजकुमार ने कहा कि डायफ्राम से जुड़ी बीमारियों का यदि समय पर निदान और विशेषज्ञ प्रबंधन किया जाए तो बार-बार होने वाले निमोनिया और टैकीप्निया से मृत्यु को रोका जा सकता है।