Edited By Kuldeep, Updated: 28 Jun, 2025 10:11 PM

प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास करियर में आगे बढ़ने का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार का हनन कर कर्मचारी के किसी इस्तीफे या एनओसी के लिए अनुरोध को मनमाने ढंग से अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास करियर में आगे बढ़ने का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार का हनन कर कर्मचारी के किसी इस्तीफे या एनओसी के लिए अनुरोध को मनमाने ढंग से अस्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने एक डॉक्टर को उच्च शिक्षा पाने के लिए एनओसी से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने कानून की यह स्थिति दोहराई। कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग का संस्थागत आवश्यकता के आधार पर एनओसी जारी करने या इस्तीफा स्वीकार करने से इंकार करना अनुचित था। इसलिए कोर्ट ने प्रतिवादियों को आदेश दिए कि वे याचिकाकर्त्ता को एनओसी जारी करें और बिना वेतन के असाधारण छुट्टी प्रदान करें। कोर्ट ने कोर्स पूरा करने के बाद याचिकाकर्त्ता को 5 साल तक सुपर स्पैशलिस्ट के रूप में राज्य की सेवा करने के लिए अपना लिखित वचन प्रस्तुत करने का आदेश भी दिया।
न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने याचिकाकर्त्ता संजय कुमार की याचिका को स्वीकारते हुए यह आदेश जारी किए। प्रार्थी पंडित जवाहर लाल नेहरू राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल चम्बा में जनरल मैडीसन में सहायक प्रोफैसर के रूप में कार्यरत हैं। वह 29 मार्च 2025 को आयोजित नीट सुपर स्पैशलिटी प्रवेश परीक्षा में शामिल हुआ था। अप्रैल 2025 में मैरिट सूची घोषित की गई, जिसमें उसे स्थान मिला। काऊंसलिंग के दूसरे दौर के दौरान उसे 3 वर्षीय डीएनबी-एसएस-कार्डियोलॉजी कोर्स के लिए अखिल भारतीय कोटा सीट आबंटित की गई।
12 जून 2025 को याचिकाकर्त्ता ने विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) मांगा गया। जब विभाग ने उनके अनुरोध पर कोई निर्णय नहीं लिया तो आबंटित सीट खोने से बचने के लिए 14 जून 2025 को अपना इस्तीफा दे दिया। एनओसी देने या उनके इस्तीफे को स्वीकार करने में प्रतिवादी अधिकारियों की ओर से देरी होने पर याचिकाकर्त्ता ने रिट याचिका दायर की। याचिकाकर्त्ता का कहना था कि एक वैध परीक्षा प्रक्रिया के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए चुने जाने के बावजूद, प्रतिवादियों ने अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए उनके आवेदन पर समय पर कोई निर्णय नहीं लिया।
राज्य सरकार का यह तर्क था कि याचिकाकर्त्ता के अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने और उनके इस्तीफे को स्वीकार करने के अनुरोध को मैडीकल कॉलेज और बड़े पैमाने पर जनता के हित में खारिज कर दिया गया था। यदि याचिकाकर्त्ता को इस समय कार्यमुक्त किया जाता है तो यह संकाय की कमी के कारण चिकित्सा संस्थान के कामकाज को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा। यह भी तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्त्ता को छुट्टी देने से राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम संकाय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होगी।