Kullu: शाक्टी में देव परंपराओं का निर्वहन कर अपने देवालय रैला धलियारा रवाना हुईं माता आशापुरी

Edited By Kuldeep, Updated: 11 Nov, 2024 06:04 PM

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रूपी रैला क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी माता आशापुरी सैंज घाटी के अति दुर्गम क्षेत्र शाक्टी के तीर्थ स्थल हंसपुरी कुंड की तीर्थ यात्रा पूर्ण कर सोमवार को रैला धलियारा स्थित देवालय की ओर प्रस्थान कर गईं।

सैंज (बुद्धि सिंह): रूपी रैला क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी माता आशापुरी सैंज घाटी के अति दुर्गम क्षेत्र शाक्टी के तीर्थ स्थल हंसपुरी कुंड की तीर्थ यात्रा पूर्ण कर सोमवार को रैला धलियारा स्थित देवालय की ओर प्रस्थान कर गईं। इससे पूर्व देव परंपरा के अनुसार शाक्टी के आराध्य देव ब्रह्मा द्वारा माता आशापुरी को तीर्थ का पवित्र जल प्रदान किया गया। देव ब्रह्मा के देवालय में लगातार 2 दिनों तक लगे देव दरबार में परम्पराओं का निर्वहन किया गया जिसमें माता आशापुरी के नवनियुक्त चेला गुर की शुद्धि व परीक्षा को मुख्य परम्परा के रूप में निभाया गया। इस दौरान 10 वर्षों के बाद माता आशापुरी और देव ब्रह्मा के ऐतिहासिक देव मिलन पर शाक्टी में आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। माता आशापुरी के साथ शाक्टी पहुंचे सैंकड़ों हारियान व श्रद्धालु इस भव्य देव मिलन के गवाह बने तथा देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया।

ब्रह्मा के दरबार में नवाया शीश, माता आशापुरी का भव्य स्वागत
माता आशापुरी की रथ यात्रा में शामिल सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने शाक्टी में ब्रह्मा के दरबार में शीश नवाया। शाक्टी निवासियों ने भी माता आशापुरी का शाक्टी पहुंचने पर देव परम्परा के अनुसार फूलमालाओं व धूप दीयों से स्वागत किया। नाग देवता के गुर राज्यपाल सिंह व स्थानीय पंचायत समिति सदस्य धर्मपाल ठाकुर ने बताया कि माता आशापुरी की शाक्टी यात्रा क्षेत्रवासियों के लिए सौभाग्यशाली मानी जाती है। देव ब्रह्मा और माता आशापुरी का मिलन क्षेत्र के लिए खुशहाली व समृद्धि का प्रतीक होता है। इससे पहले माता आशापुरी की रथयात्रा वर्ष 2014 में शाक्टी पहुंची थी।

रथ के नवस्वरूप व गुर चयन पर माता करती हैं तीर्थ यात्रा
माता आशापुरी की शाक्टी तीर्थ यात्रा विशेष परिस्थितियों में होती है। देव परम्पराओं के अनुरूप यात्रा को पूर्ण करना अनिवार्य है। इसके अलावा माता के विशेष आदेश पर भी यात्रा की जाती है। माता आशापुरी के कारदार कली राम व टिकम राम ने बताया कि जब भी माता के देवरथ को नया स्वरूप दिया जाता है या फिर माता के नए गुर-चेला का चयन होता है तो माता शाक्टी की तीर्थयात्रा करती हैं। कुछ समय पूर्व माता के रथ को नया स्वरूप दिया गया है तथा जयदेव शर्मा को माता ने अपना चेला चुना है।

100 किलोमीटर पैदल यात्रा एक सप्ताह में होती है पूर्ण
माता आशापुरी की तीर्थ रथयात्रा 100 किलोमीटर से अधिक पैदल सफर के बाद पूर्ण होती है। पुजारी संजीव शर्मा ने बताया कि रैला धलियारा स्थित माता के देवालय से शुरू शाक्टी रथयात्रा के लिए एक तरफ करीब 60 किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है। सैंकड़ों लोगों के साथ ढोल-नगाड़ों व वाद्य यंत्रों की धुनों के बीच रथयात्रा कई गांवों व देवालयों से होकर गुजरती है। यात्रा के प्रस्थान व आगमन के बीच दो पड़ाव रहते हैं जिसमे पहला पड़ाव मनु महाराज के शैंशर देवालय तथा दूसरा पड़ाव ढूखरू नारायण के मझाण गांव में स्थित देवालय में होता है। माता के कारदार कली राम ने बताया कि यात्रा करीब एक सप्ताह में पूर्ण हो जाती है। बीते वीरवार को माता की तीर्थ रथयात्रा शुरू हुई थी और शाक्टी ब्रह्मा दरबार में देव परम्पराओं के निर्वहन के बाद सोमवार को यात्रा वापस देवालय की ओर लौटी है।

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