Edited By Kuldeep, Updated: 15 Oct, 2024 05:20 PM
कुल्लू जिला देवी-देवताओं, परंपराओं, तप और यश के लिए प्रसिद्ध है। जिला कुल्लू के निरमंड क्षेत्र को काशी भी कहा जाता है। माता अम्बिका निरमंड में विराजमान हैं और उनके 4 बेटे और 7 बेटियां अलग-अलग स्थानों में स्थापित हैं जो क्षेत्रवासियों की रक्षा का...
कुल्लू (गौरीशंकर): कुल्लू जिला देवी-देवताओं, परंपराओं, तप और यश के लिए प्रसिद्ध है। जिला कुल्लू के निरमंड क्षेत्र को काशी भी कहा जाता है। माता अम्बिका निरमंड में विराजमान हैं और उनके 4 बेटे और 7 बेटियां अलग-अलग स्थानों में स्थापित हैं जो क्षेत्रवासियों की रक्षा का जिम्मा संभाले हुए हैं। कहा जाता है कि माता अम्बिका के 4 बेटों को निरमंड क्षेत्र में चार चम्भू के नाम से जाना जाता है। इनकी महादेव के रूप में पूजा की जाती है। कहा जाता है कि क्षेत्र में जब किसी आपदा या बुरी शक्तियों का प्रभाव पड़ने वाला होता है तो देवता चम्भू अपने-अपने क्षेत्र में लोगों की रक्षा करते हैं।
देवता चम्भू देउगी के कारदार राम दास का कहना है कि चम्भू देवताओं की कहानी बड़ी रोचक है। क्षेत्र में एक माण मरैछ नाम का दैत्य हुआ करता था जो लोगों को बहुत परेशान करता था। उसे हर रोज दूध पीने की आदत थी और जब उसे दूध नहीं मिला तो उसने महिलाओं को अपना दूध पिलाने के लिए परेशान करना शुरू किया जिससे महिलाएं बहुत परेशान हो गईं। महिलाएं माता अम्बिका की शरण में पहुंची और दैत्य से छुटकारा पाने की प्रार्थना की। ऐसे में माता ने अपने बडे़ पुत्र चम्भू को दैत्य से महिलाओं को छुटकारा दिलाने के लिए आदेश दिए और देवता ने दैत्य को पराजित कर महिलाओं की रक्षा की। उसके बाद माता ने अपने चारों बेटों को क्षेत्र में अलग-अलग घाटियों के लोगों की रक्षा का जिम्मा सौंपा।
इन स्थानों पर भेजा चम्भुओं को
माता ने अपने चार पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ पुत्र उरटू को देउगी में स्थान दिया, जहां उन्हें देवता साहेब चम्भू देयोगी के नाम से जाना जाने लगा। उनसे छोटे बेटे को रन्दल में स्थापित किया, जहां उन्हें देवता रन्दल चम्भू के नाम से जाना जाता है। तीसरे देवता को चम्भू कशोली में बसाया और चौथे बेटे को अपने चरणों में जहां माता निरमंड में हैं और ठीक इसके नीचे ढरोपा में चम्भू विराजमान हैं जिन्हें भूतेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
शक्ति के कई प्रमाण
देउगी के सबसे बडे़ चम्भू देवता के कारदार राम दास वर्ष 1986 से देवता के कारदार हैं। उससे पहले उनके पिता लेद राम व दादा कारदार थे और पीढ़ी-दर-पीढ़ी कारदार रहे हैं। ऐसे में देवता की शक्ति के कई प्रमाण हैं। हालांकि देवता के प्रमाण को इस तरह से प्रचारित नहीं किया जाता है लेकिन कुछ प्रमाण उन्होंने महसूस किए हैं जिससे देवता चम्भू की शक्ति को साक्षात महसूस किया जा सकता है।
रोचक किस्सा : जब डाक्टर भी हैरान रह गए
कारदार राम दास के अनुसार कुछ वर्षों पूर्व उनके क्षेत्र की एक महिला शिमला में रहती थी और उसकी किसी दूसरे क्षेत्र की महिला से दोस्ती हो गई जो कारोबारी थी। इस बीच ऐसा समय आया जब उस महिला का कारोबार पूरी तरह ठप्प हो गया। जब उस महिला ने निरमंड क्षेत्र की महिला से बात सांझा की तो उसने उसे देवता चम्भू से आग्रह करने की बात कही। महिला ने वैसा ही किया और निरमंड मंदिर आने की इच्छा जताई। लेकिन जब कारोबार ठीक हुआ तो महिला देवता के प्रति मांगी गई मन्नत को भूल गई। ऐसे में महिला का पति अचानक बीमार पड़ गया और डाक्टरों ने किडनी खराब बताकर उसे किडनी बदलने का सुझाव दिया जिसे लेकर दोनों दुखी थे।
महिला ने पति के लिए अपनी किडनी देने का फैसला लिया और डाक्टर ने ऑप्रेशन की तिथि भी निर्धारित की। जब ऑप्रेशन को 4 दिन बचे थे तो महिला को सपने में एक छोटे ने इशारा करते हुए कहा कि ये देख देवता चम्भू...। इतना कहकर लड़का भाग गया। महिला को एकदम देवता से किया वायदा याद आ गया। तब महिला ने अपने मन में एक प्रण लिया कि अगर देवता शक्तिशाली हैं तो हमारा ऑप्रेशन सफल होना चाहिए। उसके बाद जब ऑप्रेशन के लिए डाक्टर के पास पहुंचे तो चैकअप किया तो दोनों किडनी पूरी तरह से ठीक पाई गईं जिसे देखकर डाक्टर भी हैरान रह गए और उन्हें ऑप्रेशन करने की जरूरत नहीं पड़ी। महिला अपने पति के साथ देवता चम्भू के दियोगी मंदिर में पहुंची थी।
दशहरा उत्सव में आते हैं तीन चम्भू
चार चम्भू देवताओं में से तीन चम्भू कुल्लू दशहरा उत्सव में भाग लेते हैं जिसमें दियोगी चम्भू, रन्दल चम्भू और कशोली चम्भू शामिल हैं। तीनों देवता करीब 250 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर ढालपुर पहंचे हैं जबकि सबसे छोटे भूतेश्वर महादेव चम्भू देवता अपनी मां की सेवा में लीन हैं।