Edited By Rahul Singh, Updated: 24 Aug, 2024 12:16 PM
आज की तारीख में बेशक बीड़ बिलिंग घाटी ने पैराग्लाइडिंग के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली हो लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब बिलिंग के टेक ऑफ प्वाइंट को भेड़ पालक केवल चारागाह के तौर पर इस्तेमाल करते थे। सबसे पहले वर्ष 1982 में सितम्बर...
बैजनाथ, (विकास बावा): आज की तारीख में बेशक बीड़ बिलिंग घाटी ने पैराग्लाइडिंग के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली हो लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब बिलिंग के टेक ऑफ प्वाइंट को भेड़ पालक केवल चारागाह के तौर पर इस्तेमाल करते थे। सबसे पहले वर्ष 1982 में सितम्बर महीने में इसराईल के नील और अमेरिका के कीट ने हँडग्लाइडिंग के माध्यम से उड़ान भरी थी। उड़ान भरने के बाद जब लैंडिंग स्थल पर उतरने लगे तो लोगों ने यह समझा कि आसमान से कोई उड़ान तस्त्रियां जमीन पर उतर रही हैं।
हालांकि सड़क सुविधा न होने की वजह से इन पायलटों को स्थानीय चाय विक्रेता चाचू ने गुनेहड़ गांव से बिलिंग तक पहुंचाया था। उसके बाद लगातार मानवीय परिंदों से यह घाटी गुलजार रही है। आगामी नवम्बर माह में होने वाले पैराग्लाइडिंग विश्व कप के दौरान हिमाचल के एकमात्र ट्राइक पैरामोटर पायलट राहुल गढ़वाल भी आसमान में अठखेलियां करते नजर आएंगे।
अमूमन पहाड़ से छलांग लगाकर पैराग्लाइडर पायलट नीचे समतल मैदान पर उतरते हैं लेकिन मोटर संचालित पैराग्लाइडिंग के माध्यम से वह लैंडिंग स्थल से उड़ान भरेंगे और टेक ऑफ प्वाइंट पर उतरेंगे। राहुल गढ़वाल ने बताया कि इटली से उन्होंने हवा में उड़ने वाली यह मशीन खरीदी है जिसे वह अपनी पीठ पर बांध लेते हैं और उस पर लगे पंखे की तेज हवा से वह आसमान में जितनी देर चाहें, उड़ान भर सकते हैं क्योंकि यह पैराग्लाइडर ईंधन संचालित है इसलिए हवा के विपरीत रुख में भी उड़ान भर लेता है।