CM सुक्खू ने दिल्ली में उठाई हिमाचल की आवाज, 16वें वित्त आयोग से की न्यूनतम 10 हजार करोड़ वार्षिक आरडीजी की मांग

Edited By Vijay, Updated: 11 Sep, 2025 10:50 PM

cm sukhvinder singh sukhu

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश के लिए प्रति वर्ष न्यूनतम 10,000 करोड़ रुपए की राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) ग्रांट निर्धारित करने की मांग की है, साथ ही पहाड़ी राज्यों की तरफ वनों के संरक्षण करने के बदले वार्षिक 50,000 करोड़ रुपए का...

शिमला (कुलदीप): मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश के लिए प्रति वर्ष न्यूनतम 10,000 करोड़ रुपए की राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) ग्रांट निर्धारित करने की मांग की है, साथ ही पहाड़ी राज्यों की तरफ वनों के संरक्षण करने के बदले वार्षिक 50,000 करोड़ रुपए का एक अलग ग्रीन फंड सृजित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस फंड को किसी योजना के रूप में या फिर विशेष केंद्रीय सहायता के अंतर्गत पूंजी निवेश के लिए निर्धारित किया जा सकता है तथा वह इस विषय को लेकर प्रधानमंत्री से चर्चा करने के अलावा पत्र भी लिख चुके हैं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश जैसे आपदा प्रभावित राज्य के लिए विशेष केंद्रीय सहायता की मांग को भी फिर से दोहराया। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने नई दिल्ली में 16वें वित्तायोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया से भेंटकर इन विषयों को उठाया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश की वित्तीय स्थिति से संबंधित विषयों पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की। उन्होंने वित्तायोग से जंगल और पर्यावरण से जुड़े मानकों को अधिक महत्व देने का आग्रह किया है। 

3 वर्षाें से प्राकृतिक आपदाओं से बुरी तरह से प्रभावित हुआ हिमाचल
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमाचल प्रदेश पिछले 3 वर्षाें से प्राकृतिक आपदाओं से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसमें अनगिनत बहुमूल्य जानें गई हैं। इस अवधि में प्रदेश को 15,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुक्सान हुआ है। उन्होंने अवगत करवाया कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी जुलाई, 2025 में यह टिप्पणी की थी कि राजस्व अर्जित करने के लिए पर्यावरण और प्रकृति से समझौता नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे पूरे प्रदेश को भारी नुक्सान झेलना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी राज्य होने के कारण हिमाचल प्रदेश की राजस्व वृद्धि की अपनी सीमाएं हैं। इसके बावजूद सरकार को संवैधानिक दायित्वों के तहत आवश्यक जन सेवाएं देनी पड़ती हैं। प्रदेश का 67 फीसदी से अधिक क्षेत्र वन भूमि होने के कारण राज्य के पास सीमित विकल्प बचे हैं।

आपदा जोखिम सूचकांक नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता
मुख्यमंत्री ने कहा कि 15वें वित्त आयोग की तरफ से तैयार की गई आपदा जोखिम सूचकांक (डीआरआई) को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है, क्योंकि आपदा की दृष्टि से हिमालयी क्षेत्र की शेष भारत से तुलना नहीं की जा सकती। एक समान प्रारूप में तैयार किया गया सूचकांक भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटने, जंगल की आग और ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) जैसी आपदाओं को शामिल नहीं करता, जबकि हाल के वर्षों में इन खतरों की आवृत्ति और प्रभाव पर्वतीय क्षेत्रों में काफी बढ़ा है।

15वें वित्तायोग से आपदा के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं मिले
मुख्यमंत्री ने कहा कि कम डीआरआई होने के कारण हिमाचल प्रदेश को 15वें वित्तायोग से आपदा राहत के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं मिले, जबकि प्रदेश में आपदाओं को असर कहीं अधिक रहा। उन्होंने पहाड़ी राज्यों के लिए विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अलग से डीआरआई तैयार करने का आग्रह किया। इसके आधार पर पहाड़ी राज्यों के लिए अलग फंड बनाया जाए और उससे नए डीआरआई के अनुसार राज्यों में वितरित किया जाए। उन्होंने कहा कि 16वां वित्तायोग अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, इसलिए हिमाचल प्रदेश की तरफ से उठाई गई मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाए, ताकि प्रदेश की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा सके। वित्तायोग अध्यक्ष डा. अरविंद पनगढ़िया ने आश्वासन दिया कि उनकी मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाएगा।

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