वैज्ञानिकों को मात देकर कुल्लू की महिला ने खेती में किया ‘महाप्रयोग’

Edited By Vijay, Updated: 04 Nov, 2018 11:13 PM

woman of kullu did great experiment in farming

प्रतिकूल मौसम में फलों और सब्जियों को उगाने की तकनीक पर इन दिनों शोध किया जा रहा है। सेब की नई प्रजातियों को जहां गर्म इलाके में उगाने की कवायद चली है, वहीं कुल्लू की एक महिला ने अपने 15 वर्ष के शोध के परिणामस्वरूप बेमौसमी गेहूं की फसल को उगाने में...

कुल्लू: प्रतिकूल मौसम में फलों और सब्जियों को उगाने की तकनीक पर इन दिनों शोध किया जा रहा है। सेब की नई प्रजातियों को जहां गर्म इलाके में उगाने की कवायद चली है, वहीं कुल्लू की एक महिला ने अपने 15 वर्ष के शोध के परिणामस्वरूप बेमौसमी गेहूं की फसल को उगाने में कामयाबी हासिल की है। दिलचस्प पहलू यह है कि उसने अपने नाम के साथ ही इसका नाम भी संतोषी गेहूं 1972 रखा है। संतोष शर्मा ने इस प्रयोग को भलाण-2 के डोला सिंह ठाकुर के खेतों में किया है।

गेहूं के बीज के सामने आए आशातीत परिणाम
एक बीघा जमीन में जब गेहूं के इस बीज को बोया गया तो इसके आशातीत परिणाम सामने आए। 14 जून को इस बीज की बिजाई की गई थी। 30 सितम्बर तक फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो गई। अब इसकी थ्रैसिंग का काम शुरू हो गया है। गांव के अन्य किसान इस फसल को देखने के लिए आ रहे हैं। अब कृषि महकमा इसे लेकर अपनी तैयारी करने जा रहा है। विभाग अब अन्य किसानों को भी इस बारे में प्रेरित करने जा रहा है। विभाग के अधिकारियों को भी इसकी भनक लग गई है।

किसी अचंभे से कम नहीं आंक रहे किसान
संतोष शर्मा ने इसकी जानकारी परियोजना निदेशक आतमा कृषि विभाग कुल्लू के डा. के.सी. शर्मा को भी दी है। कृषि विश्वविद्यालय झीड़ी अब किसानों के लिए इस बारे में कैंप लगाने जा रहा है। झीड़ी में ही यह कैंप 12 से 17 नवम्बर तक लग रहा है। किसानों को इस बारे में जानकारी दी गई है। घाटी के किसान भी इस प्रयोग को किसी अचंभे से कम नहीं आंक रहे हैं। संतोष शर्मा का कहना है कि इस फसल को आसानी से एक साल में 3 बार खेतों में उगाया जा सकता है।

कई समस्याओं को हल करेगी बेमौसमी गेहूं
बकौल संतोष शर्मा उन्होंने इसका प्रयोग ठंडे क्षेत्र में किया है। पहली बार तो प्रयोग सफल नहीं रहा लेकिन अब प्रयोग में आशातीत सफलता हासिल हुई है। जो गेहूं तैयार हुई है, उसका दाना आम गेहूं के मुकाबले बड़ा है और भूसे की भी कमी नहीं है। इस प्रकार बेमौसमी गेहूं कई तरह की समस्याओं को दूर करेगी। उनका कहना है कि इस गेहूं में किसी भी प्रकार की बीमारियां नहीं लगती हैं। पूरी तरह से ऑर्गैनिक सिस्टम पर आधारित है। रासायनिक खाद से कोसों की दूरी बनाने वाली इस गेहूं के इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियों का भी खात्मा निश्चित है, साथ ही पक्षी भी इस फसल को नुक्सान नहीं पहुंचाते हैं।

जंगली जानवरों से बचेंगे अब खेत  
मक्की की खेती को जंगली जानवर खा जाते हैं, साथ ही स्थानीय लोगों पर भी वे इन दिनों हमला करते हैं। इससे भी निजात मिलेगी। जिस समय खेतों में मक्की की खेती होती है, उस समय गेहूं की फसल तैयार होने से वह पूरी तरह से जंगली जानवरों और पक्षियों से बच जाएगी, साथ ही संतोष शर्मा मक्की का भी तोड़ निकालने के जोड़ में लगी हैं। उनका कहना है कि उनका अगला लक्ष्य मक्की का बीज भी तैयार करना है। उनका कहना है कि मक्की के बीच में जहां दालों को लगाया जाता है, वहीं गेहूं के बीच में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है। इससे किसानों के संशय का भी निदान हो सकेगा।

अब विभाग लगाएगा बेमौसमी गेहूं का कैंप
कृषि विश्वविद्यालय झीड़ी इस तकनीक को कैश करने जा रहा है। इसी माह के दूसरे सप्ताह में एक शिविर लगाया जा रहा है। इसमें किसानों को संतोष शर्मा द्वारा ईजाद की गई तकनीक से रू-ब-रू करवाया जाएगा। संतोष शर्मा का कहना है कि उन्होंने खेतों में इस गेहूं की बुआई से पहले गेहूं के बीज को एक दिन के लिए भिगोकर रखा था। उसके बाद इसके बीज को खेतों में डाला गया। बिना किसी खाद से यह फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हुई है। उनका कहना है कि शुरू में उन्होंने इस बीज को नाभा पंजाब से लाया था। फिर इसकी बुआई के लिए उपयुक्त समय को ढूंढकर यह कामयाबी हासिल की है।

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