Edited By Kuldeep, Updated: 19 Jul, 2025 05:32 PM

मंडी जिले के सुकेत क्षेत्र में स्थित पांगणा गांव न केवल अपने प्राचीन इतिहास और वैदिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां का प्राचीन शिवद्वाला भक्तों के बीच गहरी आस्था का केंद्र बना हुआ है।
संतान सुख से वर्षा की कामना तक, शिवद्वाला की अद्भुत कहानियां और प्रथाएं
सुंदरनगर (सोढी): मंडी जिले के सुकेत क्षेत्र में स्थित पांगणा गांव न केवल अपने प्राचीन इतिहास और वैदिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां का प्राचीन शिवद्वाला भक्तों के बीच गहरी आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की एक अद्भुत विशेषता श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती है, यह दिन में 3 बार अपना स्वरूप और रंग बदलता है।
अलौकिक रंग परिवर्तन का रहस्य
मंदिर के पुजारी भूपेंद्र शर्मा के अनुसार, पांगणा के शिवद्वाला में स्थापित यह पार्थिव शिवलिंग दिन के विभिन्न पहरों में अपना वर्ण (रंग) बदलता है। सुबह के समय शिवलिंग का रंग हल्का रक्त (लाल) होता है। दोपहर होते-होते यह पूर्ण रक्त वर्ण का हो जाता है, और शाम के समय यह कृष्ण वर्ण (काला) में परिवर्तित हो जाता है। सदियों से हो रहा यह परिवर्तन भक्तों के लिए गहन आस्था का विषय है।
इतिहास व व्यवसायी धनिया की कहानी
इस शिवद्वाला का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व चरखड़ी गांव के एक प्रसिद्ध व्यवसायी धनिया ने करवाया था। धनिया का व्यापार शिमला से दिल्ली तक फैला हुआ था और वे अपार धन-संपत्ति के स्वामी थे, किंतु उन्हें संतान सुख की कमी खल रही थी। उन्होंने इस मंदिर में भगवान शिव से संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। कृतज्ञ धनिया ने शिवद्वाला का भव्य पुनर्निर्माण करवाया, जिसके बाद उनके वंश का विस्तार हुआ और सुख-समृद्धि कई पीढ़ियों तक बनी रही।
धार्मिक परंपराएं और अनुष्ठान
शिवद्वाला में कई महत्वपूर्ण धार्मिक परंपराएं निभाई जाती हैं। महाशिवरात्रि के दिन धनिया के परिजन पांगणा के इस शिवद्वाला में शिव के पार्थिव विग्रह "चंदो" को बनाकर लाते हैं, जिसका महारात्रि में विशेष पूजन और प्रतिष्ठा होती है। यह करसोग-सुकेत क्षेत्र का एकमात्र मंदिर है, जहां हर महीने की शिवरात्रि को रात भर पूजन-अर्चन और जागरण होता है। धनिया के परिवार के सदस्य नियमित रूप से मंदिर के दैनिक पूजन-अनुष्ठान के लिए धनराशि और पूजा सामग्री भी प्रदान करते हैं।
स्थापत्य कला और "गड्डू ढालने" की अनूठी प्रथा
सतलुज शिखर शैली में निर्मित इस मंदिर की स्थापत्य कला में पश्चिमी हिमालय की शैव परंपरा की झलक मिलती है। मंदिर के मुख्य द्वार और गोपुरम पर गंगा-यमुना, विष्णु, भैरवनाथ और शिव की पत्थर की मूर्तियां सुसज्जित हैं। आंगन में एक प्रस्तर नंदी बैल भी स्थापित है। गर्भगृह में शिवलिंग के अतिरिक्त गणेश, नंदी पर आरूढ़ गौरी-शिव और किसी कन्या की हत्या रूपी एक प्रतिमा भी है। सुकेत संस्कृति साहित्य और जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डा. हिमेंद्र बाली बताते हैं कि अकाल की स्थिति में वर्षा के लिए यहां एक अनूठी प्रथा, "गड्डू ढालने" का पालन किया जाता है। इस अनुष्ठान में मंदिर के पास की शिव बावड़ी से लोटों में जल लाकर तब तक शिवलिंग पर निरंतर अभिषेक किया जाता है, जब तक अभिषिक्त जल की धारा समीप स्थित शिकारी देवी की चरण गंगा (पांगणा सरिता) तक नहीं पहुंच जाती।
माना जाता है कि इससे शिव की कृपा से वर्षा होती है। संस्कृति मर्मज्ञ डा. जगदीश शर्मा का कहना है कि कालांतर में स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय चंद्रमणि महाजन ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया था। पांगणा का यह शिवद्वाला और सुकेत की गौरवशाली देव संस्कृति की यह अमूल्य धरोहर पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करने हेतु दस्तावेजीकरण और विशेष देखरेख की आवश्यकता है, ताकि अतीत की यह समृद्ध विरासत जीवित रह सके।