खतरे में ज्वाला जी मंदिर का 150 साल पुराना मौलसरी वृक्ष, लड़ रहा अस्तित्व की लड़ाई (Video)

Edited By Simpy Khanna, Updated: 25 Sep, 2019 03:46 PM

विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ ज्वाला जी मंदिर के प्रांगण में स्तिथ 150 साल पुराने प्राचीन मौलसरी वृक्ष का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। मौलसरी वृक्ष की जड़ों में इन दिनों खोखलापन आ गया है, जो पेड़ को धीरे धीरे सूखा रहा है।मंदिर के पुजारियों ने इस पेड़ के उचित...

ज्वालामुखी (पंकज शर्मा) :  विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ ज्वाला जी मंदिर के प्रांगण में स्तिथ 150 साल पुराने प्राचीन मौलसरी वृक्ष का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। मौलसरी वृक्ष की जड़ों में इन दिनों खोखलापन आ गया है, जो पेड़ को धीरे धीरे सूखा रहा है।मंदिर के पुजारियों ने इस पेड़ के उचित रख-रखाब व इसकी जांच की मांग मंदिर प्रसाशन से की है।
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पुजारियों का कहना है कि मंदिर प्रशासन को इस पेड़ की जांच कृषि विश्वविद्यायल पालमपुर के चिकित्सकों से करवानी चाहिए, ताकि इस पेड़ को खत्म होने से बचाया जा सके। उन्होंने कहा कि पेड़ के प्रति लोगों की काफी आस्था है और मंदिर में हज़ारों श्रद्धालु यहां जब उनकी मनोकामनाएं पूरी होती है तो इस पेड़ में डोरियां ओर धागे बांधते है, ऐसे में इस पेड़ को बचाना प्रसाशन की सबसे प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।
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ज्वालाजी मंदिर के पुजारी अनिवेन्द्र ने कहा कि इस तरह के पेड़ बहुत कम देखने को मिलते है। उन्होंने कहा कि इन पेड़ों को कल्प वृक्ष कहा जाता है। इनमें पीपल, बड़, अर्जुन, कनयार, मौलसरी, नीम ओर पारिजात वृक्ष शामिल है, जिन्हें कल्प वृक्ष कहा जाता है। उन्होंने कहा ज्वाला जी मंदिर में ये मौलसरी वृक्ष पूर्वजों द्वारा आज से 150 वर्ष पहले स्थापित किया था, लेकिन आज ये पेड़ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
 

वृक्ष के नीचे लगती है भजनों की मंडली

धूप या बारिश में बचाब करने के लिए ये मौलसरी वृक्ष श्रद्धालुओं सहित यहां के पुजारियों के लिए किसी छाते से कम नहीं है। वहीं इस मौलसरी वृक्ष के नीचे भजन मंडली का पूरा पंडाल बैठता है। एसडीएम ज्वालामुखी अंकुश शर्मा ने बताया कि इस प्राचीन मौलसरी वृक्ष को लेकर एसडीएम ज्वालाजी व मंदिर का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे अंकुश शर्मा ने कहा कि धीरे धीरे पेड़ सुख रहा है तो पालपपुर स्तिथ कृषि विश्वविद्यालय से चिकित्सक को बुलाकर इस वृक्ष की जांच करवाई जाएगी, ताकि इसके अस्तित्व को बचाया जा सके। 
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