Himachal: कम उम्र में दिल की धड़कन रुकने का रहस्य खुला, वैज्ञानिकों ने किया खुलासा

Edited By Jyoti M, Updated: 03 Dec, 2025 03:41 PM

himachal the mystery of heart stopping at an early age has been revealed

हाल के दिनों में यह चौंकाने वाली खबरें अक्सर सुनने को मिलती हैं कि पूरी तरह फिट दिख रहे युवा भी अचानक कार्डियक अरेस्ट या हार्ट अटैक का शिकार हो रहे हैं। यह सवाल हमेशा परेशान करता है कि आखिर इतनी कम उम्र में दिल की धड़कन कैसे रुक सकती है। अब भारतीय...

हिमाचल डेस्क। हाल के दिनों में यह चौंकाने वाली खबरें अक्सर सुनने को मिलती हैं कि पूरी तरह फिट दिख रहे युवा भी अचानक कार्डियक अरेस्ट या हार्ट अटैक का शिकार हो रहे हैं। यह सवाल हमेशा परेशान करता है कि आखिर इतनी कम उम्र में दिल की धड़कन कैसे रुक सकती है। अब भारतीय वैज्ञानिकों ने इस गहन रहस्य से पर्दा उठाने की दिशा में एक बड़ी सफलता हासिल की है।

बेंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन (InStem) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे 'दोषपूर्ण' जीन की पहचान की है, जो युवाओं में कार्डियोमायोपैथी नामक खतरनाक दिल की बीमारी का कारण बन सकता है, और यही बीमारी अचानक होने वाली मौत के पीछे की मुख्य वजह है।

वैज्ञानिकों को क्या मिला नया सुराग?

डॉ. धंदापानी पेरुंडुरई के नेतृत्व में रिसर्च टीम ने भारत के कार्डियोमायोपैथी के शिकार 20,000 से अधिक मरीजों के जीनोम का व्यापक अध्ययन किया। इस गहन विश्लेषण में ट्यू ब्युलिन टायरोसिन लाइगेस (Tubulin Tyrosine Ligase - TTL) नामक एक जीन केंद्र में आया। इस जीन में होने वाला बदलाव (म्यूटेशन) दिल के लिए अत्यंत घातक साबित हो रहा है।

कार्डियोमायोपैथी में दिल की मांसपेशियां मोटी और कड़ी हो जाती हैं, जिससे हृदय की खून पंप करने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है। नतीजतन, दिल की धड़कनें अनियमित हो जाती हैं, जो अचानक कार्डियक अरेस्ट की स्थिति पैदा कर सकती है।

हार्ट अटैक का बनता 'जेनेटिक' कारण

रिसर्च में पता चला कि जिन मरीजों में यह गंभीर बीमारी थी, उनके TTL जीन में एक विशिष्ट परिवर्तन देखा गया। सामान्य और स्वस्थ जीन में जहां ग्लाइसिन नामक अमीनो एसिड मौजूद होता है, वहीं इसकी जगह पर सेरीन नामक दूसरा अमीनो एसिड आ जाता है। यह छोटा सा बदलाव ही पूरे हृदय तंत्र के लिए विध्वंसक साबित हो रहा है।

यह म्यूटेशन निम्न कारणों से ट्रिगर हो सकता है:

पर्यावरण प्रदूषण का बढ़ता स्तर।

सूर्य की तेज अल्ट्रावायलेट (UV) किरणों के संपर्क में आना।

सबसे महत्वपूर्ण, यह माता-पिता से आनुवंशिक रूप में भी मिल सकता है।

डॉ. पेरुंडुरई ने चेतावनी दी है, "यह म्यूटेशन, खासकर तेज कसरत या अत्यधिक शारीरिक तनाव के दौरान, अचानक घातक सिद्ध हो सकता है।"

रिसर्च का दिलचस्प तरीका: 'मिनी हार्ट' की मदद

इस बीमारी की जटिलता को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने एक अभिनव तरीका अपनाया। उन्होंने स्टेम सेल तकनीक का इस्तेमाल किया:

बीमार मरीजों के ब्लड सेल्स लिए गए।

इन सेल्स को लैब में स्टेम सेल्स में परिवर्तित किया गया।

फिर इन्हें विशेष रूप से धड़कने वाले हृदय कोशिकाओं (बीटिंग कार्डियक सेल्स) में विकसित किया गया।

यहां तक कि उन्होंने दिल की कार्यप्रणाली को बारीकी से समझने के लिए 3D 'मिनी हार्ट' (ऑर्गेनॉइड) संरचनाएं भी तैयार कीं।

प्रयोग में जब वैज्ञानिकों ने सामान्य (स्वस्थ) हृदय कोशिकाओं में से ग्लाइसिन को हटाकर सेरीन डाला, तो वे स्वस्थ कोशिकाएं भी तुरंत ही बीमार कोशिकाओं की तरह अनियमित रूप से धड़कने लगीं। इससे यह निर्णायक रूप से स्थापित हो गया कि यह मामूली जीन परिवर्तन ही दिल की बीमारी का मुख्य कारण है।

क्या इस म्यूटेशन को रोका जा सकता है?

हालांकि इस आनुवंशिक बदलाव को पूरी तरह रोकना अभी मुश्किल है, लेकिन जल्दी पता लगाकर इसके जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

डॉ. पेरुंडुरई की महत्वपूर्ण सलाह है:

खासतौर पर जिनके परिवार में हृदय रोगों का इतिहास रहा है, उन्हें हर 5 साल में एक बार जेनेटिक टेस्टिंग जरूर करानी चाहिए।

यह शुरुआती चरण में बीमारी के संकेतों को पकड़ने में मदद करेगा, जिससे जीवनशैली में बदलाव कर जोखिम को नियंत्रित किया जा सके।

यह शोध उन लाखों युवाओं के लिए एक बड़ी उम्मीद है, जिन्हें इस छिपी हुई आनुवंशिक खामी के कारण अपनी जान गंवानी पड़ती है।

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