Mandi: डेढ़ करोड़ के स्वर्ण रथ पर विराजे देव बालाटीका चैली, हजाराें श्रद्धालुओं ने लिया आशीर्वाद

Edited By Vijay, Updated: 16 Oct, 2025 10:58 PM

deity sit on golden chariot worth rs 1 5 crore

सराज के आराध्य देव बालाटीका चैली का स्वर्ण रथ एक अद्वितीय धार्मिक विरासत है, जो देवता की महिमा और श्रद्धालुओं की आस्था को दर्शाता है। देवता के नवनिर्मित रथ की प्राण-प्रतिष्ठा वीरवार को पूरे विधि-विधान के साथ की गई।

थुनाग (ख्यालीराम): सराज के आराध्य देव बालाटीका चैली का स्वर्ण रथ एक अद्वितीय धार्मिक विरासत है, जो देवता की महिमा और श्रद्धालुओं की आस्था को दर्शाता है। देवता के नवनिर्मित रथ की प्राण-प्रतिष्ठा वीरवार को पूरे विधि-विधान के साथ की गई। देवता के स्वर्ण रथ निर्माण में 3 माह से अधिक समय लगा है। रथ को लगभग डेढ़ किलो वजनी सोने से जड़ित किया गया है, जिस पर करीब 1.5 करोड़ रुपए से अधिक की लागत आई है। स्वर्ण रथ की प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर समस्त हारियों के हारियानों समेत 50 से अधिक अन्य देवताओं की देयोठियों के 5000 से अधिक लोगों ने देवता के मंदिर स्थल पर पहुंचकर हाजिरी भरी और आराध्य से आशीर्वाद प्राप्त किया। 

बड़ा देव कमरूनाग के गूर देवी सिंह ठाकुर ने बताया कि जब-जब मानव देह और अन्य जीव-जंतुओं पर जानलेवा और घातक महामारी के तौर पर सामूहिक खतरा पनपा है, तब-तब प्रभु की कृपा दृष्टि से समस्त हारियों में किसी भी देह के लिए कोई कष्ट नहीं पहुंचा है। कारदार एवं देव कमेटी के अध्यक्ष लुदर सिंह ठाकुर ने बताया कि देवता की 5 मुख्य हारियों में 500 से अधिक हारियान परिवार आते हैं, जो कभी भी आराध्य के किसी भी आदेश को मानने के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। देवता के आदेशानुसार हारियानों ने नव रथ का निर्माण करवाया है।

देवता के सिद्धि मंत्र सुनकर पाई थी छुआछूत बीमारी से निजात
लुदर सिंह ठाकुर ने बताया कि करीब 18 दशक पूर्व गांव देहात में बड़ी गरीबी का दौर था और उस समय अधिकतर लोग रोज-रोटी के लिए उत्तरकाशी जैसे इलाकों के घनघोर जंगलों में घाल के लिए मजदूरी करने जाते थे। देवता के तत्कालीन गूर सूंका राम ठाकुर भी कार्य में शामिल थे लेकिन उसी दौरान देवभूमि में जानलेवा बीमारी पन्याले (अछूत महामारी) ने दस्तक दी, जिसकी चपेट में हजारों लोग आ गए। जब देवता की हारों में महामारी फैलने की सूचना प्राप्त हुई तो ग्रामीणों ने घाल के कार्य को गए गूर को एक पत्र भेजा और महामारी के खतरे को टालने बारे देवता से अरदास करने की गुहार लगाई। देवता के गूर ने भी उसी अंदाज में हारियानों के लिए पत्र लिखकर भेजा तथा आदेश किए कि समुचित हारियों को आने वाले रास्तों को कांटों की बाड़ से बंद कर दिया जाए और देवता की सिद्धि मंत्रों के इस पत्र को समस्त हारियानों को एकत्रित कर सबके सामने पढ़कर सुनाया जाए। इस बताई गई प्रक्रिया के बाद इलाके में महामारी का कोई प्रकोप नहीं हुआ।

बेटे को नहीं, पोते को मिलती है गूर की गद्दी
देवता को अपना गूर एक ही वंश से मान्य रहा है। अगर गूर की गद्दी पर दादा विराजित है तो उनके देहांत के बाद देवता उनकी अगली पीढ़ी में पुत्र की जगह पौत्र को ही अधिमान देते हैं। चेतन ठाकुर देवता के वर्तमान गूर हैं।

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