सावधान! हिमाचल में 62% बच्चों के दांतों में सड़न, कहीं आपके बच्चे भी तो नहीं हो रहे शिकार... जानिए वजह

Edited By Jyoti M, Updated: 10 Sep, 2025 10:10 AM

caution 62 children in himachal have tooth decay know the reason

तीन से पाँच साल की उम्र के 62% बच्चों के दांतों में सड़न पाई गई है। हिमाचल प्रदेश डेंटल कॉलेज और अस्पताल की एक टीम ने शिमला ज़िले में 1,224 बच्चों पर एक स्टडी की, जिसमें यह बात सामने आई। जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है, यह समस्या और भी गंभीर होती...

हिमाचल डेस्क। तीन से पाँच साल की उम्र के 62% बच्चों के दांतों में सड़न पाई गई है। हिमाचल प्रदेश डेंटल कॉलेज और अस्पताल की एक टीम ने शिमला ज़िले में 1,224 बच्चों पर एक स्टडी की, जिसमें यह बात सामने आई। जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है, यह समस्या और भी गंभीर होती जाती है। इस स्टडी के मुताबिक, तीन साल की उम्र के 57% बच्चों के दाँतों में, चार साल की उम्र के 65% बच्चों के दाँतों में, और पाँच साल की उम्र के 70% बच्चों के दाँतों में सड़न की समस्या देखी गई। ये आँकड़े साफ़ दिखाते हैं कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति और भी ख़राब हो सकती है।

दांतों की सड़न को वैज्ञानिक भाषा में अर्ली चाइल्डहुड कैरीज़ (ECC) कहते हैं। जब बच्चे बार-बार मीठी चीज़ें, जैसे चॉकलेट, बिस्कुट, पैक्ड जूस और दूसरे स्नैक्स खाते हैं, तो दाँतों पर मौजूद बैक्टीरिया इन चीज़ों को तोड़कर एसिड बनाते हैं। ये एसिड धीरे-धीरे दाँतों की ऊपरी परत (एनामेल) को कमज़ोर कर देते हैं और कैविटी बन जाती है।

दाँतों की सड़न का असर और वजह

दाँतों की सड़न का असर सिर्फ़ दाँतों तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि यह बच्चों की पूरी सेहत पर पड़ता है। जब बच्चों के दाँतों में दर्द होता है, तो वे ठीक से खा नहीं पाते, जिससे उनके शरीर को ज़रूरी पोषण नहीं मिल पाता। लगातार दर्द और इन्फ़ेक्शन की वजह से उनकी नींद भी ख़राब होती है। कई बार तो उन्हें अस्पताल तक ले जाना पड़ जाता है। दूध के दाँतों की यह समस्या भविष्य में आने वाले पक्के दाँतों को भी नुक़सान पहुँचा सकती है। इसका मतलब है कि जो समस्या अभी छोटी लग रही है, वह आगे चलकर एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन सकती है।

चौंकाने वाले तथ्य

इस स्टडी में एक हैरान करने वाली बात सामने आई कि ग़रीब परिवारों के बच्चों के मुक़ाबले आर्थिक रूप से बेहतर परिवारों के बच्चों में दाँतों की सड़न की समस्या ज़्यादा थी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इन बच्चों को ज़्यादा मीठी और पैक्ड चीज़ें खाने को मिलती हैं। जो बच्चे दिन भर बार-बार स्नैक्स खाते रहते थे, उनमें दाँतों की सड़न की दर ज़्यादा थी। इस स्टडी में यह भी पता चला कि ज़्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के दाँतों की देखभाल को लेकर ज़्यादा जागरूक नहीं हैं। सिर्फ़ 8% माता-पिता को ही यह जानकारी थी कि बच्चे के दाँतों की पहली जाँच एक साल की उम्र तक करा लेनी चाहिए।

बोतल से दूध पीने से ज़्यादा ख़तरा

लंबे समय तक या रात में बोतल से दूध पीने वाले बच्चों में भी दाँतों की सड़न की समस्या ज़्यादा देखने को मिली। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दूध में मौजूद शक्कर रात भर दाँतों पर जमी रहती है, जिससे बैक्टीरिया को काम करने का मौक़ा मिलता रहता है। इसलिए छोटे बच्चों में नियमित रूप से ब्रश करने की आदत डालना बहुत ज़रूरी है।

यह अध्ययन हिमाचल प्रदेश डेंटल कॉलेज एवं अस्पताल, शिमला के बाल एवं निवारक दंत चिकित्सा विभाग की टीम ने किया, जिसमें प्रोफ़ेसर डॉ. सीमा ठाकुर, सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. रीतिका शर्मा, डॉ. पारुल सिंघल और डॉ. दीपक चौहान शामिल थे।

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