Himachal: 365 वर्षों के बाद अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव की शोभा बढ़ाने पहुंचे देवता कूई कंडा नाग, आस्था का उमड़ा सैलाब

Edited By Vijay, Updated: 03 Oct, 2025 03:07 PM

after 365 years the deity kui kanda nag arrived at international kullu dussehra

अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव इस बार एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना। जिला के बाह्य सराज के तांदी से देवता कूई कंडा नाग ने पूरे 365 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद उत्सव में भाग लेकर इसकी शोभा बढ़ाई है।

कुल्लू (धनी राम): अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव इस बार एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना। जिला के बाह्य सराज के तांदी से देवता कूई कंडा नाग ने पूरे 365 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद उत्सव में भाग लेकर इसकी शोभा बढ़ाई है। देवता अपने लाव-लश्कर और हारियानों के साथ सैंकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर ढालपुर पहुंचे, जहां उनका आगमन श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बन गया।

देवलुओं के अनुसार देवता कूई कंडा नाग ने इससे पहले सन् 1660 में राजा जगत सिंह के समय रघुनाथ जी के सम्मान में दशहरा उत्सव में भाग लिया था, लेकिन इसके बाद एक अप्रिय घटना के कारण देवता ने उत्सव से दूरी बना ली थी। अब 365 साल बाद देवता ने स्वयं अपने कारकूनों और हारियानों को दशहरा में शामिल होने का सख्त आदेश दिया था। इसी देव-आदेश का पालन करते हुए देवलुओं ने अठारह करड़ू की सौह (परंपरा) का निर्वहन करते हुए ढालपुर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

कूई के फूल से पूरी होती है मनोकामना
देवता कूई कंडा नाग को माता बूढ़ी नागिन का ज्येष्ठ पुत्र माना जाता है। इनसे जुड़ी एक गहरी मान्यता है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से उनके मंदिर में दर्शन करे, तो देवता उसे कूई के फूल के रूप में दर्शन देते हैं। यह फूल दिखना इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भक्त की पूजा सफल हुई और उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। हालांकि, मान्यता यह भी है कि जब तक मनोकामना पूरी न हो जाए, तब तक इस देव संकेत को गुप्त रखना अनिवार्य है, अन्यथा इसका शुभ फल प्राप्त नहीं होता।

क्या कहते हैं कारदार
देवता कूई कंडा नाग के कारदार कमलेश रावत ने इस ऐतिहासिक वापसी की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि देवता ने 365 वर्ष बाद कुल्लू दशहरा उत्सव में भाग लिया है। सन् 1660 में जब राजा ने उन्हें जबरदस्ती महल में लाने का प्रयास किया था, तो देवता नाराज हो गए थे। इतने वर्षों बाद अब देवता ने स्वयं देवलुओं और हारियानों को उत्सव में भाग लेने का आदेश दिया है, जिसका हम सभी ने पालन किया है। देवता की वापसी से कुल्लू दशहरा की रौनक और भी बढ़ गई है और यह पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।

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