जानिए आंचल ठाकुर का संघर्ष से कामयाबी तक का सफर, ऐसे बनीं अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग

Edited By Ekta, Updated: 04 Aug, 2019 04:53 PM

aanchal thakur

''मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है''। इस बात को साबित कर दिखाया है हिमाचल के मनाली के एक छोटे से गांव बुरूआ की आंचल ठाकुर ने। आंचल ठाकुर स्कीइंग में अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाली...

कुल्लू (दिलीप): 'मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है'। इस बात को साबित कर दिखाया है हिमाचल के मनाली के एक छोटे से गांव बुरूआ की आंचल ठाकुर ने। आंचल ठाकुर स्कीइंग में अंतरराष्ट्रीय पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई है। इस उपलब्धि के पीछे उसका कड़ा परिश्रम और संघर्ष भी रहा है। उसने नंगे पांव बर्फ पर अठखेलियां कर इस कामयाबी को हासिल किया है। आंचल ने भूख-प्यास सब कुछ भूलकर अपनी मेहनत पर ध्यान दिया। वह दूसरे बच्चों की तरह लकड़ी के तीन फट्टे जोड़कर बर्फ पर फिसलने के बचपन के आनंद को कभी नहीं भुला सकती। गांव के स्कूल सरस्वती विद्या मंदिर में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के दौरान वह कई बार स्कूल से छुट्टी के बाद सीधे घर नहीं आती थी, बल्कि बस्ते और किताबों की परवाह किए बगैर बर्फ की ढलानों की ओर चली जाती। देर शाम ही घर वापिस लौटती।  
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पिता ने दी स्कीइंग की ट्रैनिंग 

कई बार आंचल के पिता को उसे घर वापिस लाने के लिए खुद जाना पड़ता था। हालांकि उसके पिता भी साहसिक खेल स्कीइंग के काफी शौकीन रहे हैं जिसके चलते वह अपनी बेटी की जिद्द पर कदापि उसे फटकार नहीं लगाते थे। आंचल जब 8वीं कक्षा में हो चुकी थी और बिना बताए चुपके से एक दिन वह अपने पिता का स्कीइंग सैट लेकर बर्फ की ढलानों पर चली गई। चूंकि वह अभी स्कीइंग सैट को संभालने के काबिल नहीं थी जिसके कारण उसके पैरों और टांगों में अनेक जगहों पर चोटें आई। एक दिन उसके पिता ने उसे प्रशिक्षण देना शुरू किया। वह सर्दियों में समय निकालकर नित्य प्रति आंचल के साथ स्कीइंग सैट को उठाकर दूर-ढलानों तक जाते और उसे स्कीइंग की बारीकियां समझाते। आंचल का मकसद केवल स्कीइंग जैसे खतरनाक और साहसी खेल में महारत हासिल कर अपने परिवार, समाज व प्रदेश का गौरव बढ़ाना था। वह किसी से भी पीछे नहीं रहना चाहती थी। 
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13 साल की उम्र में यूरोपियन देशों में ली कोचिंग  

बर्फीली ढलानों पर अनेक जगहों से खिलाड़ी अपने करतब दिखाते अक्सर देखे जा सकते हैं। मन में हमेशा आगे निकलने की सोच को पाले आंचल इन खिलाड़ियों से अपने-आप में कहीं न कहीं स्पर्धा करती रहती। 1996 में जन्मी आंचल की प्रतिभा पर महज 13 साल की उम्र में जब भारतीय शीतकालीन खेल संघ की नजर पड़ी तो संघ ने उन्हें कोचिंग के लिए यूरोपियन देशों में भेजा। आंचल ने ऑस्ट्रिया, इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड में स्कीइंग की कोचिंग प्राप्त की। 5 साल की आयु में स्कीइंग शुरू करने वाली आंचल ने 10 साल की आयु में ही विभिन्न स्कीइंग प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था। वर्ष 2006 में मनाली में हिमालय स्की कप प्रतियोगिता में तीसरा स्थान अर्जित किया। 
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ऐसे हासिल हुई मंजिल 

2007 में विंटर स्पोर्टस कार्निवाल मनाली में पहले स्थान पर रही। 2008 में नारकण्डा में आयोजित कनिष्ठ चैम्पियनशिप में दूसरा स्थान अर्जित किया। 2009 में मनाली में आयोजित बसन्त जुनियर चैम्पियनशिप में पहले स्थान पर रही। 2011 में उत्तराखण्ड के औली में राष्ट्रीय प्रतियोगिता में दूसरा स्थान जबकि 2011 में जुनियर स्की ओपन चैम्पियनशिप मनाली में शीर्ष पर रही। जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग में 2014 में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता, औली में आयोजित जुनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता तथा 2014 में मनाली स्की कप तीनों में पहला स्थान अर्जित किया। 2017 में मनाली में सलालम राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्ड प्रतियोगिता तथा जांईट सलालम प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान पर रही। 
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इन देशों में जाकर हासिल की कामयाबी 

मनाली में 2019 में आयोजित वरिष्ठ राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्ड प्रतियोगिता में दूसरा, जांईट सलालम प्रतियोगिता में भी दूसरा तथा 2019 में ही उत्तराखण्ड के औली में सुपर-जी राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्ड प्रतियोगिता में दूसरे जबकि औली में पैरलैल स्लालम प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर आंकी गई। उतराखंड के औली में राष्ट्रीय स्की एवं स्नोबोर्डिंग प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ स्कीयर घोषित की गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं पर नजर डालें तो आंचल ने लेबनाॅन में वर्ष 2009 में आयोजित एशियन बाल स्की प्रतियोगिता, 2010 में इटली के एबिटोन में अंतर्राष्ट्रीय बाल चैम्पियनशिप, 2011 में कोरिया में एशियन बाल स्की प्रतियोगिता तथा 2011 में ही स्वीट्जरलैण्ड में एफआईएस रेस सेंट मोरिस में भाग लिया। ऑस्ट्रिया में 2012 में आयोजित प्रथम विंटर यूथ ऑलोम्पिक खेलों में भाग लिया। 
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सफर नहीं था आसान 

2013 में आस्ट्रिया में विश्व स्की चैम्पियनशिप, 2015 में अमेरिका के कोलाराडो में आयोजित विश्व स्की चैम्पियनशिप में भाग लेकर अंतिम दौड़ को सफलतापूर्वक पास किया। रूस के सोची में 2016 में जुनियन विश्व स्की मुकावले में भाग लिया। 2017 में स्वीट्जरलैण्ड के मोरिस में विश्व स्की चैम्पियनशिप में अंतिम रेस के लिए क्वालीफाई किया। जापान के सापोरो में 2017 में एशियन विंटर खेलों में भाग लिया। आंचल ने तुर्की में 2018 में आयोजित एफआईएस इण्टरनेशनल एल्पाईन स्कीइंग प्रतियोगिता में भारत के लिए आज तक का पहला कांस्य पदक अर्जित कर देश व प्रदेश का गौरव बढ़ाया। आंचल को उनकी उपलब्धियों पर उन्हें हिमाचल परशुराम पुरस्कार-2019 से अलंकृत किया गया। इससे पूर्व उन्हें अनेक अन्य पुरस्कार मिले हैं जिनमें हिमाचल गौरव पुरस्कार-2018, हिमाचल महिला आयोग पुरस्कार-2018, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ पुरस्कार, एडवेंचर स्पोर्टस एक्सपो एशिया पुरस्कार-2018, जी टीवी स्पोर्टस पुरस्कार-2018 तथा हिंदुस्तान टाईम्स ‘आउटस्टेण्डिग यूथ फोरम पुरस्कार-2015 शामिल हैं।
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