एक ऐसा मंदिर जिसमें 2 धर्मों के लोग करते हैं एक ही मूर्ति की पूजा

Edited By Updated: 13 Jan, 2017 09:49 PM

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बर्फ में कैद जनजातीय लाहौल के त्रिलोकीनाथ मंदिर में 2 धर्मों के लोग एक ही मूर्ति की बड़े ही सद्भाव से पूजा करते आ रहे हैं।

मनाली: बर्फ में कैद जनजातीय लाहौल के त्रिलोकीनाथ मंदिर में 2 धर्मों के लोग एक ही मूर्ति की बड़े ही सद्भाव से पूजा करते आ रहे हैं। जहां विश्व भर में धर्म के नाम पर मार-काट मची हुई है, वहीं त्रिलोकीनाथ मंदिर सदियों से 2 धर्मों के लोगों में भाईचारे को बढ़ावा देता आ रहा है। इस मंदिर की एक अन्य खास बात है कि इसके अंदरूनी मुख्य द्वार के दोनों छोर पर बने 2 स्तम्भ मनुष्य के पाप-पुण्य का फैसला करते हैं। मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति को अपने पाप और पुण्य के बारे में जानना हो वह इन संकरे शिला स्तंभों के मध्य से गुजर सकता है। यदि मनुष्य ने पाप किया होगा तो भले ही वह दुबला-पतला ही क्यों न हो वह इनके पार नहीं जा पाता, वहीं यदि किसी मनुष्य ने पुण्य कमाया हो तो भले ही उसका शरीर विशालकाय क्यों न हो वह इन स्तंभों के पार चला जाता है। 

हिंदू शिव तो बौद्ध पूजते हैं अवलोकतेश्वर को
लोगों का मानना है कि यह देश का ऐसा एकमात्र मंदिर है जहां पर हिंदू और बौद्ध समुदाय के लोग एक साथ अपनी-अपनी पूजा पद्धति से पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें स्थापित की गई मूर्ति को हिंदू जहां शिव के रूप में पूजते हैं, वहीं बौद्ध धर्म के लोग इसे अवलोकतेश्वर के रूप में मानते हैं। दोनों धर्मों के लोगों की पूजा लामा ही करते हैं। यहां एक ही छत के नीचे शिव और बुद्ध के लिए समर्पित दीये जलाए जाते हैं। लाहौल घाटी में हिंदू व बुद्धिष्ट दोनों ही धर्मों के लोग रहते हैं और सबका आपस में भाईचारे का रिश्ता है। कुल्लू से सुरेश शर्मा ने कहा कि उन्होंने इस चमत्कारी और द्विधर्म मंदिर के बारे में बहुत ख्याति सुनी थी। लिहाजा हिमालय की गोद में स्थापित इस दिलचस्प और प्राचीन धार्मिक स्थल को देखने के लिए वह भी मंदिर जा पहुंचे। उन्होंने कहा कि यहां आकर उन्हें निश्चित तौर पर आत्मिक शांति की अनुभूति हुई है। 

मंदिर के इतिहास में छुपे हैं कई रहस्य : छेरिंग दोरजे
मंदिर में एक बौद्ध लामा कई सालों से बतौर पुजारी तैनात हैं। मंदिर के गूर चुहडू राम ने कहा कि पाप-पुण्य की इस परंपरा का सदियों से निर्वहन होता आ रहा है। उन्होंने कहा कि स्तंभों के बीच फंसने वाला भविष्य में सद्मार्ग पर चलने का प्रण करके मंदिर से रुखसत होता है। इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने वनवास के दौरान किया था। उधर, वयोवृद्ध इतिहासकार छेरिंग दोरजे ने कहा कि मंदिर का इतिहास अपने आप में कई रहस्यों को छुपाए हुए है, जिसमें से अभी तक पर्दा उठना बाकी है। उदयपुर से करीब 12 कि.मी. दूर पहाड़ी के छोर पर स्थित इस मंदिर के प्रांगण में पिछले वर्ष ही कुंभ मेले का आयोजन हुआ जिसे देखने के लिए देशभर से हजारों लोग यहां पहुंचे थे। जैसे-जैसे इस मंदिर की महिमा फैलती जा रही है, यहां देशी व विदेशी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती जा रही है।

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