Una: SDM ट्रिब्यूनल बंगाणा का आदेश, बुजुर्ग मां-बाप के भरण पोषण के लिए बेटे को हर माह देने होंगे इतने रुपए

Edited By Jyoti M, Updated: 08 Dec, 2024 04:04 PM

una order given to provide maintenance to elderly parents

बंगाणा उपमंडल के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ट्रिब्यूनल ने एक ऐतिहासिक निर्णय में हिमाचल प्रदेश माता-पिता और आश्रितों का भरण-पोषण अधिनियम 2001 के तहत बुजुर्ग माता-पिता को भरण-पोषण प्रदान करने का आदेश दिया है।

बड़ूही, (अनिल)। बंगाणा उपमंडल के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ट्रिब्यूनल ने एक ऐतिहासिक निर्णय में हिमाचल प्रदेश माता-पिता और आश्रितों का भरण-पोषण अधिनियम 2001 के तहत बुजुर्ग माता-पिता को भरण-पोषण प्रदान करने का आदेश दिया है। ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में आदेश दिया कि उनके बेटे को अपने माता-पिता को हर महीने 4000 रुपये का भरण-पोषण प्रदान करना होगा। अधिनियम में प्रावधानों के अनुरूप सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ट्रिब्यूनल बंगाणा द्वारा यह फैसला सुनाया गया।

यह आदेश उन बुजुर्ग माता-पिता की याचिका पर दिया गया, जो आर्थिक रूप से अपने बेटे पर निर्भर थे और अपने दैनिक खर्च उठाने में असमर्थ थे। यह फैसला न केवल वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणादायक संदेश है। हिमाचल प्रदेश माता-पिता और आश्रितों का भरण-पोषण अधिनियम, 2001 के प्रमुख प्रावधान वरिष्ठ नागरिकों का अधिकार: माता-पिता, दादा-दादी और अन्य आश्रित अपने बच्चों या कानूनी उत्तरदायियों से भरण-पोषण पाने का अधिकार रखते हैं। यह प्रावधान उनके गरिमापूर्ण जीवन को सुनिश्चित करता है।

भरण-पोषण की परिभाषा: भरण-पोषण में भोजन, कपड़ा, चिकित्सा और रहने की आवश्यक सुविधाएं शामिल हैं, जो सम्मानजनक जीवन के लिए आवश्यक हैं। उत्तरदायित्व का निर्धारण: पुत्र, पुत्री या अन्य कानूनी उत्तरदायियों पर यह जिम्मेदारी है कि वे अपने माता-पिता और आश्रितों की भरण-पोषण आवश्यकताओं को पूरा करें। ऐसा न करने पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है।

सरल और त्वरित न्याय: वरिष्ठ नागरिकों के मामलों का निपटारा सरल और त्वरित प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। दंडात्मक प्रावधान: यदि कोई व्यक्ति भरण-पोषण देने से इनकार करता है, तो अधिनियम के तहत उसे दंडित किया जा सकता है। सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ट्रिब्यूनल बंगाणा द्वारा लिया गया निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करना केवल कानूनी दायित्व नहीं, बल्कि हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है। यह निर्णय भविष्य में अन्य मामलों में मिसाल के तौर पर कार्य करेगा और वरिष्ठ नागरिकों के सम्मानपूर्ण जीवन को सुनिश्चित करेगा।

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