Edited By Kuldeep, Updated: 27 Nov, 2024 06:23 PM
बंगला देश की सीमाएं बंद न होतीं तो हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के आलू उत्पादक किसान और मालामाल हो गए होते। किसानों के लिए आलू गोल्ड बन गया है।
जिले के किसानों के लिए गोल्ड बना ऊना का आलू, उच्च दामों से मालामाल हुए किसान
ऊना (सुरेन्द्र शर्मा): बंगला देश की सीमाएं बंद न होतीं तो हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के आलू उत्पादक किसान और मालामाल हो गए होते। किसानों के लिए आलू गोल्ड बन गया है। इस गोल्ड के एक्सपोर्ट पर बंगला देश की रोक ने मूल्यों को नियंत्रित किया है, अन्यथा इस बार आलू के रेट के तमाम रिकार्ड टूट गए होते। इस पहाड़ी राज्य हिमाचल में सबसे छोटे जिले ऊना ने आलू के रूप में नई ख्याति प्राप्त की है। यहां की यह कैश क्रॉप किसानों के लिए किसी गोल्ड से कम नहीं है। 2 महीनों यानी 60 दिनों की यह शार्ट टर्म क्रॉप किसानों की आय का सबसे बड़ा साधन बन गई है। ऊना का आलू देश भर में सुपरहिट हुआ है। यहां देश भर से व्यापारी पहुंच रहे हैं और खेतों से ही भुगतान कर आलू को खरीदकर देश ही नहीं बल्कि बंगला देश तक पहुंचा रहे हैं। पिछले 3 दिनों से बंगला देश की ब्रेक ने किसानों की जहाज के रूप में बढ़ रही आय पर कुछ ब्रेक लगाई है।
65,000 कनाल भूमि पर आलू का उत्पादन
जिला ऊना में करीब 2,500 हैक्टेयर यानी 65,000 कनाल भूमि पर आलू का उत्पादन होता है। यह करीब 60 दिनों की फसल का क्रम है। इसके लिए स्वां नदी के आसपास का वातावरण बेहद उपयुक्त है। आसानी से सिंचाई जल मिलने और किसानों को बेहतर तकनीक हासिल होने के चलते आलू ने नया रिकार्ड स्थापित किया है। जिला ऊना में आलू की कच्ची फसल ने सबसे बड़ा योगदान किसानों की आय बढ़ाने में दिया है। मक्की और गेहूं के बीच में जो 2 माह का करीब गैप होता है, उसी में आलू लगाया जाता है। सितम्बर के प्रथम सप्ताह में आलू की बिजाई होती है और अक्तूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवम्बर के माह में इसे बेचा जाता है। जिला ऊना में वर्ष में 2 बार आलू की बिजाई होती है। एक खरीफ और दूसरी रबी की फसल है।
स्वां नदी का बड़ा रोल
आलू के उत्पादन में मौसम के साथ-साथ ऊना जिले की सबसे बड़ी रिवर के रूप में विख्यात स्वां नदी का भी बड़ा रोल है। कभी रिवर ऑफ सॉरो यानी दुख की नदी कहलाने वाली विस्तृत स्वां नदी अब किसानों के लिए सुख की नदी बन गई है। जब से इस नदी और इसकी सहायक खड्डों का करीब 1,300 करोड़ रुपए की लागत से चैनेलाइजेशन हुआ है, उसके बाद से यहां की जमीनों में तो इजाफा हुआ है, लेकिन सबसे अधिक फायदा अन्न उत्पादन के क्षेत्र में हुआ है। ऑफ सीजन वैजीटेवल के साथ-साथ अब आलू ने जिला की आर्थिकी को ही बदल डाला है।
3600 रुपए प्रति क्विंटल बिका
ऊना में निकला आलू सबसे पहले 3,600 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खेतों में ही बिका। धीरे-धीरे उपज अधिक निकलने लगी तो इसका मूल्य आज भी 2,400 रुपए क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है। यह मिट्टी युक्त आलू होता है जो इसी हालत में गंतव्य स्थल तक पहुंचता है। ऊना का यह आलू राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सबसे बड़ी आजादपुर मंडी, लखनऊ और कोलकाता पहुंचता है। यहां से गाड़ियां बंगला देश बॉर्डर पर पहुंचती हैं और यहीं से इसे बदलकर दूसरी गाड़ियों के जरिए एक्सपोर्ट किया जाता है। हालांकि पिछले सप्ताह से बंगला देश ने इस आलू के लिए बॉर्डर बंद कर दिए हैं। न केवल घरेलू मांग को यह कच्ची फसल पूरा कर रही है बल्कि चिप्स बनाने वाली बड़ी कंपनियां भी यहां से आलू की खरीद कर रही हैं। घरेलू तौर पर पुखराज की किस्म तो चिप्स के लिए एफ.सी.-3 की किस्म यहां उत्पन्न की जा रही है। चिप्स कंपनियां खुद बीज देकर किसानों को उच्च मूल्य दे रही हैं।
बंगलादेश बार्डर बंद न होता तो अधिक मुल्य मिलता
ऊना के प्रमुख किसानों में से एक लालसिंगी के यूसुफ, बसाल के नरेश शर्मा व पंकज शर्मा, टक्का के बृजमोहन सहित कई किसानों ने माना कि इस बार आलू के अच्छे दाम मिल रहे हैं। उत्पादन भी बेहतर हुआ है। बंगला देश के बॉर्डर यदि बंद न होते तो मूल्य और भी अधिक मिल सकता था, क्योंकि काफी अधिक बड़े व्यापारी यहां खरीददारी के लिए पहुंचे थे। उन्हें भी निराशा हुई है और किसानों को भी अधिक मूल्य से वंचित होना पड़ा है। हालांकि घरेलू जरूरतें भी किसानों को काफी लाभदायक सिद्ध हो रही हैं। वहीं हरोली के किसान सतीश ठाकुर छोटू कहते हैं कि उन्होंने चिप्स कंपनियों के लिए आलू लगाया था और इस बार यह बम्पर फसल हुई है। दाम भी शानदार मिल रहे हैं।