Edited By Jyoti M, Updated: 06 Sep, 2025 11:30 AM

हिमाचल प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों का सकारात्मक असर दिख रहा है। हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में तेंदुओं और एशियाई काले भालुओं की आबादी में जबरदस्त इजाफा हुआ है। यह हिमाचल के समृद्ध वन्यजीवों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।...
हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों का सकारात्मक असर दिख रहा है। हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में तेंदुओं और एशियाई काले भालुओं की आबादी में जबरदस्त इजाफा हुआ है। यह हिमाचल के समृद्ध वन्यजीवों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। हालांकि, हिम तेंदुओं की संख्या स्थिर बनी हुई है।
वन्यजीव विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019-20 में प्रदेश में तेंदुओं की संख्या 400-450 के बीच थी। यह संख्या साल 2024 में 511 हुई और 2025 की रिपोर्ट में बढ़कर 1,114 हो गई है। इसका मतलब है कि हिमाचल के हर 100 वर्ग किलोमीटर इलाके में औसतन दो तेंदुए मौजूद हैं। इसी तरह, एशियाई काले भालुओं की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। 2019-20 में इनकी आबादी 450-480 के बीच थी, जो 2024 में 529 और 2025 की नवीनतम गिनती में 835 तक पहुंच गई है।
दूसरी ओर, हिमालय के ऊंचे इलाकों में पाए जाने वाले हिम तेंदुए की आबादी में कोई खास बदलाव नहीं आया है। अध्ययनों के अनुसार, हिमाचल में हिम तेंदुओं की संख्या 44 से 51 के बीच है। कुछ अनुमानों में यह संख्या 73 तक बताई गई है। ये प्रजाति मुख्य रूप से लाहौल-स्पीति और किन्नौर के ऊंचे और दुर्गम क्षेत्रों में पाई जाती है। पिछले कुछ सालों से इनकी आबादी में स्थिरता बनी हुई है, जिसे विशेषज्ञ एक अच्छा संकेत मानते हैं।
बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष बना चुनौती
वन्यजीवों की बढ़ती संख्या जहां संरक्षण की सफलता को दर्शाती है, वहीं इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ गया है। यह एक गंभीर चुनौती बन चुका है। हालिया अध्ययनों से पता चला है कि राज्य में दर्ज मानव-वन्यजीव संघर्ष के 30 प्रतिशत से ज्यादा मामले तेंदुओं से जुड़े हैं, जबकि लगभग 19 प्रतिशत भालुओं से संबंधित हैं। तेंदुए अक्सर पालतू जानवरों, खासकर भेड़-बकरियों को अपना शिकार बनाते हैं, जबकि भालू भोजन की तलाश में बाग-बगीचों और गांवों तक पहुंच जाते हैं, जिससे ग्रामीणों में डर पैदा होता है।
संरक्षण और सह-अस्तित्व की रणनीति जरूरी
इस स्थिति को देखते हुए, अब वन्यजीवों के संरक्षण और इंसानों के साथ उनके सह-अस्तित्व की एक संयुक्त रणनीति की जरूरत महसूस की जा रही है। इस रणनीति के तहत ग्रामीण इलाकों में वन्यजीवों के व्यवहार और उनके संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ानी होगी। साथ ही, सुरक्षित कचरा प्रबंधन पर भी ध्यान देना होगा, ताकि वन्यजीव खाने की तलाश में आबादी वाले इलाकों में न आएं। इसके अलावा, वन्यजीवों की आवाजाही वाले क्षेत्रों में निगरानी बढ़ानी होगी और वन्यजीवों द्वारा किए गए नुकसान के लिए मुआवजे की नीति को और ज्यादा प्रभावी बनाना होगा।
हिमाचल प्रदेश के जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाने जाते हैं। तेंदुओं और भालुओं की बढ़ती आबादी राज्य की समृद्ध प्राकृतिक विरासत को दर्शाती है, जबकि हिम तेंदुआ अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है। अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इंसान और वन्यजीवों के बीच एक संतुलित सह-अस्तित्व कायम रखा जाए ताकि दोनों ही सुरक्षित और खुशहाल रह सकें।