Edited By Vijay, Updated: 22 Aug, 2025 05:53 PM

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन शुक्रवार को उस समय राजनीतिक सरगर्मी का गवाह बना जब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के समर्थकों ने जाेरदार नारेबाजी कर डाली। काफी देर तक यह...
शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन शुक्रवार को उस समय राजनीतिक सरगर्मी का गवाह बना जब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह के समर्थकों ने जाेरदार नारेबाजी कर डाली। काफी देर तक यह हाई वोल्टेज ड्रामा चलता रहा। यह घटनाक्रम उस समय शुरू हुआ जब 'वोट चोर, गद्दी छोड़' अभियान के समर्थन में पार्टी कार्यकर्ता और नेता बड़ी संख्या में राजीव भवन पहुंचे थे। इस दौरान मंच पर मुख्यमंत्री सुक्खू, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी रजनी पाटिल, सह प्रभारी चेतन चौहान और अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
जैसे ही कार्यक्रम शुरू हुआ और मुख्यमंत्री सुक्खू के मंच पर बैठे ताे उसके कुछ समय बाद ही उनके समर्थकों ने उनके पक्ष में नारेबाजी शुरू कर दी। वहीं, इसके कुछ ही देर बाद जैसे ही मंत्री विक्रमादित्य सिंह राजीव भवन पहुंचे ताे उनके समर्थकों ने भी जवाबी नारे लगाते हुए शक्ति प्रदर्शन शुरू कर दिया।
नारेबाजी का यह दौर करीब 10 मिनट तक चला और स्थिति यह हो गई कि मंच पर बैठा पार्टी नेतृत्व कार्यकर्ताओं से बार-बार शांति बनाए रखने की अपील करता रहा, लेकिन कार्यकर्ता नारेबाजी में डटे रहे। मुख्यमंत्री सुक्खू और चेतन चौहान दोनों मंच से बार-बार माइक पर कार्यकर्ताओं को शांत कराने की कोशिश करते रहे, मगर नारेबाजी की आवाजें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं। पार्टी कार्यालय के एक कोने में सुक्खू समर्थक डटे हुए थे, वहीं दूसरी ओर विक्रमादित्य सिंह के समर्थक उनके पक्ष में पूरे जोश में नारे लगा रहे थे।
इस पूरे घटनाक्रम की अहम बात यह रही कि यह सब प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के सामने हुआ। न केवल प्रदेश प्रभारी रजनी पाटिल मौजूद थीं, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह भी पूरे समय मंच पर बैठी रहीं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी के भीतर यह शक्ति प्रदर्शन आने वाले समय में कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है, खासकर अगले चुनावों की तैयारी के मद्देनजर।
फिलहाल, इस घटनाक्रम ने पार्टी नेतृत्व को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि जनता के सामने एकजुटता की झलक दिखाने की कोशिशें बार-बार इस तरह की गुटबाजी में दब रही हैं। आने वाले दिनों में पार्टी इस परिस्थिति से कैसे निपटेगी, यह देखना बाकी है, लेकिन इतना साफ है कि हिमाचल कांग्रेस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा।