Edited By Kuldeep, Updated: 04 Jan, 2025 10:26 PM
प्रदेश सरकार ने खैर व 3 प्रजातियों के पेड़ों को छोड़कर शेष पेड़ों के कटान पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि घरेलू व कृषि उपयोग के लिए 3 प्रजातियों के 3 पेड़ एक वर्ष के भीतर काटे जा सकते हैं।
शिमला (भूपिन्द्र): प्रदेश सरकार ने खैर व 3 प्रजातियों के पेड़ों को छोड़कर शेष पेड़ों के कटान पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि घरेलू व कृषि उपयोग के लिए 3 प्रजातियों के 3 पेड़ एक वर्ष के भीतर काटे जा सकते हैं। इन 3 प्रजातियों में सफेदा, पाॅपुलर और बांस शामिल हैं। खैर का कटान पहले की तरह 10 वर्ष की अवधि के बाद ही किया जाएगा। पेड़ों के कटान को लेकर प्रदेश सरकार की तरफ से वन विभाग ने नए आदेश जारी किए हैं। इन आदेशों के तहत अब तीन किस्म के पेड़ ही वन विभाग की अनुमति के बिना काटे जा सकते हैं। पहले 13 प्रजाति के पेड़ों को बिना अनुमति काटे जाने की अनुमति दी गई थी। खैर का कटान पहले की तरह 10 वर्ष की अवधि के बाद ही किया जाएगा। कोई भी व्यक्ति वर्ष में 3 से अधिक पेड़ नहीं काट पाएगा। नए आदेशों के तहत राज्य में अब सफेदा, पाॅपुलर व बांस प्रजाति के पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई है।
यदि किसी स्थिति में एक वर्ष में 200 पेड़ काटने अनिवार्य हो तो इसके लिए वन मंडल अधिकारी की अनुमति लेनी होगी। 1 वर्ष में 300 तक पेड़ काटने के लिए मुख्य अरण्यपाल व अरण्यपाल वन, 400 पेड़ काटने के लिए प्रधान मुख्य अरण्यपाल तथा 400 से अधिक पेड़ काटने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार की अनुमति लेनी होगी। अन्य प्रजातियों के पेड़ों को बेचने व कटान की अनुमति प्रधान मुख्य अरण्यपाल द्वारा प्रदान की जाएगी, जिसके लिए सीमा एवं वृक्षों को चिन्हित किया जाएगा। घरेलू, कृषि व बेचने के लिए वृक्ष काटने वाले व्यक्ति को इसके बदले 3 पेड़ों का रोपण करना होगा। यदि फलदार पौधे रोपित किए जाते हैं तो उसके लिए बागवानी विभाग की तरफ से तय मापदंड का पालन काना होगा। अतिरिक्त मुख्य सचिव वन केके पंत की तरफ से जारी अधिसूचना की प्रति सभी प्रशासनिक सचिवों, सभी विभागाध्यक्षों, सभी डीसी, प्रधान मुख्य अरण्यपाल, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ तथा अन्य संबंधित अधिकारियों को जारी की गई है।
फ्यूल वुड के नाम से प्रदेश से बाहर बेची जा रही थी लकड़ी
राज्य में पहले बिना अनुमति के 13 प्रजाति के पेड़ों को काटने की अनुमति थी। इसका प्रदेश के कुछ लोग नाजायज लाभ उठा रहे थे तथा फ्यूल वुड के नाम से लकड़ी को प्रदेश से बाहर पड़ोसी राज्य पंजाब व अन्य स्थानों पर बेच रहे थे। इसके तहत बान, तुनी, टिंबर, पाजा आदि प्रजाति के पेड़ों को काटकर पंजाब को बेच रहे थे। इस कारण यह प्रजाति हिमाचल से लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई थी। जब सरकार के संज्ञान में यह बात आई तो सरकार ने यह निर्देश जारी किए।