Edited By Kuldeep, Updated: 15 Nov, 2024 10:04 PM
हिमाचल प्रदेश में 6 मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) मामले पर अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई हैं। हाईकोर्ट की तरफ से सीपीएस की नियुक्तियां रद्द करने के खिलाफ राज्य सरकार की तरफ से चुनौती दे दी गई है, जिसके लिए ऑनलाइन याचिका को दाखिल किया गया है।
शिमला (ब्यूरो): हिमाचल प्रदेश में 6 मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) मामले पर अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई हैं। हाईकोर्ट की तरफ से सीपीएस की नियुक्तियां रद्द करने के खिलाफ राज्य सरकार की तरफ से चुनौती दे दी गई है, जिसके लिए ऑनलाइन याचिका को दाखिल किया गया है। शुक्रवार को अवकाश होने के कारण अब इस मामले की सुनवाई की तिथि 16 नवम्बर को निर्धारित हो सकती है। यानी शीर्ष अदालत अब प्रदेश में सत्तारुढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा की दलीलों को सुनने के बाद अपना निर्णय देगी। इस बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में शनिवार को मंत्रिमंडल की महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है, जिसमें सीपीएस विषय पर भी अनौपचारिक चर्चा होने की संभावना है।
बैठक में कई अन्य महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए जा सकते हैं, जिसमें विभिन्न विभागों में खाली पड़े पदों को भरने तथा मंत्रिमंडलीय उपसमितियों की सिफारिशों के आधार पर कोई निर्णय हो सकता है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 6 सीपीएस की नियुक्तियां निरस्त करने के साथ इससे संबंधित सीपीएस व पीएस एक्ट, 2006 को भी निरस्त कर दिया है। इसके तुरंत बाद सभी 6 सीपीएस को पद से हटा दिया गया तथा उनको मिलने वाली सुविधाएं जैसे कार्यालय, स्टाफ व कोठी इत्यादि को भी वापस लिया गया। इस बीच सरकार की तरफ से एसएलपी तथा भाजपा की तरफ से कैविएट दायर करने के बाद तिथि निर्धारित होने पर सुनवाई होगी।
विधानसभा की सदस्यता पर भी संशय बरकरार
सीपीएस पद से हटाए गए 6 सदस्यों की सदस्यता को लेकर संशय बरकरार है। प्रदेश में विपक्षी भाजपा अब चाहेगी कि सीपीएस को हटाए जाने के बाद उनकी सदस्यता भी जाए। यदि उनकी सदस्यता जाती है, तो प्रदेश में फिर से 6 उपचुनाव हो सकते हैं। हालांकि 6 विधायकों की सदस्यता जाने की स्थिति में प्रदेश सरकार पर किसी तरह का संकट नहीं होगा, क्योंकि उस स्थिति में कांग्रेस के विधायकों की सदस्य संख्या 40 से घटकर 34 रह जाएगी जो विपक्षी भाजपा सदस्य संख्या 28 से कहीं अधिक है। यानी 6 उपचुनाव होने की स्थिति में प्रदेश में सत्तारुढ़ कांग्रेस को 68 विधानसभा वाले सदन में 1 सीट का जीतना अनिवार्य है, जिससे उसकी सदस्य संख्या 35 होने पर साधारण बहुमत प्राप्त हो जाएगा।
कोर्ट के निर्णय पर पहले भी हटाए जा चुके हैं सीपीएस व पीएस
हिमाचल प्रदेश में कोर्ट के निर्णय पर पहले भी सीपीएस व पीएस हटाए जा चुके हैं। सिटीजन राइट प्रोटैक्शन फोरम के अध्यक्ष के तौर पर देशबंधू सूद ने वर्ष, 2006 में इस तरह का मामला दायर किया था। उस समय तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार में 4 मुख्य संसदीय सचिव व 12 संसदीय सचिवों को पद से हटाया गया था।
भाजपा के 9 विधायकों पर भी अभी आना है फैसला
भाजपा के 9 विधायकों विपिन सिंह परमार, सतपाल सिंह सत्ती, डा. हंसराज, विनोद कुमार, सुरेंद्र शौरी, त्रिलोक जम्वाल, इंद्र सिंह गांधी, लोकेंद्र कुमार और दीपराज कपूर पर बजट सत्र के दौरान सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाने का आरोप है। इन विधायकों पर आरोप है कि उन्होंने अध्यक्ष के आसन और सदन के भीतर कागजात फैंके, जो अनुशासनहीनता के दायरे में आता है। विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया को अभी इस पर अपना निर्णय सुनाना है। इस बारे विधानसभा अध्यक्ष यह पहले ही संकेत दे चुके हैं कि जब सदन में इससे संबंधित विषय आएगा, तो वह अपना निर्णय सुना सकते हैं।
कांग्रेस सरकार पर कोई संकट नहीं : नरेश चौहान
मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार मीडिया नरेश चौहान ने कहा कि कांग्रेस सरकार पर कोई संकट नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा प्रदेश सरकार को अस्थिर करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रही है लेकिन पहले की तरह उसकी तमाम कोशिशें नाकाम साबित होंगी।
बलबीर वर्मा ने भाजपा की तरफ से दायर की कैविएट : कश्यप
पूर्व भाजपा अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने कहा कि सीपीएस मामले में विधायक बलबीर वर्मा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर कर दी गई है। उन्होंने दावा किया कि अब सीपीएस पद से हटाए गए 6 विधायक अब पूर्व विधायक बनकर रह जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि सीपीएस पर खर्च किए गए धन को वापस सरकारी कोष में जमा करवाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सीपीएस ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का पद है, जिसके आधार पर सबको विधायक पद छोड़ देना चाहिए।