Edited By Vijay, Updated: 11 Oct, 2024 10:39 AM
देश व विदेशों में अपनी शहनाई की मधुर धुनों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले सूरजमणी की शहनाई खामोश हो गई है। जिला मंडी के चच्योट निवासी हिमाचल के बिस्मीला खां के नाम से मशहूर शहनाई वादक सूरजमणी ने एम्स अस्पताल बिलासपुर में बीती रात 2 बजकर 20 मिनट...
गोहर (ख्यालीराम): देश व विदेशों में अपनी शहनाई की मधुर धुनों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले सूरजमणी की शहनाई खामोश हो गई है। जिला मंडी के चच्योट निवासी हिमाचल के बिस्मीला खां के नाम से मशहूर शहनाई वादक सूरजमणी ने एम्स अस्पताल बिलासपुर में बीती रात 2 बजकर 20 मिनट पर अंतिम सांस ली। शहनाई वादक के देहांत से उनके चाहने वालों को बड़ा झटका लगा है। बताया जा रहा है कि बीते मंगलवार के दिन सुप्रसिद्ध शहनाई वादक सूरजमणी चंडीगढ़ के एक समारोह में प्रस्तुति देने के बाद वापस घर लौट रहे थे। बस से उतरने के बाद मंडी बस स्टैंड पर उनको सुबह अटैक पड़ा। किसी भले मानस ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया है। वह 4 दिनों तक जिला के एक निजी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे। उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार न होने पर डाॅक्टरों ने उन्हें एम्स अस्पताल बिलासपुर को रैफर कर दिया था। उपचार के दौरान देर रात वैंटीलेटर पर ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
9 वर्ष की आयु में शुरू किया था शहनाई बजाना
बता दें कि 63 वर्षीय वर्षीय सूरजमणी ने मात्र 9 वर्ष की आयु में शहनाई बजाना शुरू कर दिया था। शहनाई वादन की कला उन्होंने अपने ताया से सीखी। आज प्रदेश का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा, जहां सूजरमणी की शहनाई की धुन न गूंजी हो। प्रदेश में जितने भी बड़े महोत्सव होते हैं वहां सूरजमणी को विशेष तौर पर शहनाई वादन के लिए बुलाया जाता था। उनकी शहनाई के बाद ही उस महोत्सव के आगामी कार्य शुरू होते आए थे। सूरजमणी अब तक हिमाचल प्रदेश के साढ़े 4 हजार से भी अधिक पहाड़ी गानों में शहनाई वादन कर चुके हैं। यहां तक की फिल्म अभिनेता सन्नी देयोल भी सूरजमणी की शहनाई के कायल हैं। सूरजमणी ने शहनाई वादन के दम पर अपना नाम तो कमा लिया लेकिन उन्हें अपनी इस विरासत को सहेजने वाला कोई नहीं मिला। सूरजमणी का कहना था कि अब इस काम में मान-सम्मान घटता जा रहा है, जिसके कारण युवा इस ओर नहीं आ रहे हैं।
अधूरा रह गया एकैडमी खोलने का सपना
विख्यात शहनाई वादक सूरजमणी का सपना था कि यदि सरकार कोई म्यूजिक एकैडमी खोले तो वह सभी को शहनाई वादन की कला सिखाने के लिए तैयार रहेंगे, लेकिन अब उनका यह सपना सिर्फ सपना बन कर रह गया। हालांकि, जिला में और भी कई लोग हैं जो शहनाई बजाते हैं, लेकिन छोटे से प्रदेश में शहनाई वादन में सूरजमणी ने जो मुकाम हासिल किया था, वह काबिल-ए-तारीफ रहा है। शहनाई वादक स्वर्गीय सूरजमणी ने अपने देश में तो कई सैंकड़ों कार्यक्रम पेश किए हैं, बल्कि वह अमेरिका, दुबई, जर्मनी, कुवैत जैसे देशों में भी अपनी कला का जादू बिखेर चुके हैं। लोक संपर्क विभाग ने उन्हें प्रथम श्रेणी कलाकार का दर्जा दिया था।
मिल चुके हैं बिस्समिला खां सहित कई पुरस्कार
हिमाचल बिस्समिला खां समेत कई पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। प्रदेश में मनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव मंडी की शिवरात्रि, कुल्लू दशहरा, चंबा मिंजर, रामपुर लवी मेले के मंचों ने अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है। 9 साल की आयु में अपने पूर्वजों से शहनाई वादन के गुर सीखने वाले इस कलाकार ने शहनाई वादन का काम मंडी के देवी-देवताओं के साथ शुरू किया था। स्कूल से मात्र 3 कक्षा तक पढ़े सूरजमणी की कला का जादू इस कदर बोला कि जिला, राज्य और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मेलों में अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला।
मां और ताया से ली थी शहनाई वादन की शिक्षा
सूरजमणी की माता मर्ची देवी अच्छी गायक थीं जो हिमाचली गीतों के साथ शास्त्रीय संगीत की जानकर मानी जाती थीं और बेहतरीन ढोलक बजाती थीं। इनके ताया गुजू राम संगीत कला के बहुत बड़े जानकार थे। जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। माता और ताया से उन्हें शहनाई वादन के सुरों की बहुत अधिक शिक्षा मिली थी।
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