शैव, वैष्णव और लोक देव के संगम को दर्शाती है मंडी की शिवरात्रि

Edited By Vijay, Updated: 13 Mar, 2024 10:54 PM

mandi shivratri festival

शैव, वैष्णव और लोक देवता के संगम का प्रतीक है मंडी का शिवरात्रि महोत्सव। शैव भगवान शिव, वैष्णव भगवान कृष्ण और लोक देवता विष्णु स्वरूप व बारिश के देव कमरूनाग मंडी शिवरात्रि की संस्कृति के गवाह हैं। राजाओं के दौर में शिवरात्रि के दौरान मंडी रियासत के...

मंडी (रीता): शैव, वैष्णव और लोक देवता के संगम का प्रतीक है मंडी का शिवरात्रि महोत्सव। शैव भगवान शिव, वैष्णव भगवान कृष्ण और लोक देवता विष्णु स्वरूप व बारिश के देव कमरूनाग मंडी शिवरात्रि की संस्कृति के गवाह हैं। राजाओं के दौर में शिवरात्रि के दौरान मंडी रियासत के सभी ग्रामीण अपने देवी-देवताओं के साथ राजा से मिलने आते थे। इस दौरान वर्ष भर का लेखा-जोखा भी होता था और शिवरात्रि का उत्सव भी मनाया जाता था। राजदेवता माधाेराय भगवान विष्णु का ही रूप हैं। 17वीं सदी के दौरान मंडी रियासत के राजा सूरज सेन के जब सभी पुत्रों की मौत हो गई थी तो उन्होंने अपना राजपाठ भगवान श्री कृष्ण के रूप में राजदेवता माधोराय के नाम कर दिया और खुद इसके सेवक बन गए। 
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जानिए देव कमरूनाग की मान्यता
देव कमरूनाग के इतिहास की अगर बात करें तो इनका वर्णन महाभारत में राजा रत्न यक्ष के रूप में मिलता है। रत्न यक्ष भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। यह काफी बलशाली थे और विष्णु के अनन्य भक्त थे। जब महाभारत का युद्ध हुआ तो इन्हें किसी ने भी युद्ध के लिए आमंत्रित नहीं किया, ऐसे में रत्न यक्ष ने निर्णय लिया कि वह स्वयं युद्ध में जाएंगे और जो हार रहा होगा, उसका साथ देंगे लेकिन यह युद्ध क्षेत्र तक पहुंचें उससे पहले ही भगवान विष्णु ने गुरु दक्षिणा के रूप में उनका शीश मांग लिया। रत्न यक्ष ने अपना शीश देकर युद्ध देखने की इच्छा जताई और इनके शीश को एक डंडे पर टांग दिया गया लेकिन इनका शीश भी इतना शक्तिशाली था कि वह जिस तरफ घूमता उस पक्ष का पलड़ा भारी हो जाता, ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने इनके शीश को पत्थर से बांधकर पांडवों की तरफ कर दिया। पांडवों ने भी रत्न यक्ष को पूजा और जीत मिलने पर राज्याभिषेक इन्हीं के हाथों करवाने की बात कही। पांडवों की जीत हुई और फिर रत्न यक्ष को उन्होंने अपना अधिष्ठाता माना और मंडी जनपद की एक पहाड़ी पर इनकी स्थापना की तथा नाम कमरूनाग दिया गया।
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देव कमरूनाग को माना गया है बारिश का देवता
दंत कथाओं के अनुसार देव कमरूनाग की स्थापना के बाद इंद्र देवता रुष्ट हो गए और उन्होंने इस इलाके में बारिश करना बंद कर दिया। ऐसे में देव कमरूनाग इंद्र देवता के पास गए और बादलों को ही चुरा लाए। इसी कारण इन्हें यानी देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी कहा गया है। यदि कभी बारिश न हो और सूखा पड़ जाए तो इलाके के लोग इनके दरबार में जाकर बारिश की गुहार लगाते हैं और देव कमरूनाग बारिश की बौछारें कर देते हैं। देव कमरूनाग के प्रति न सिर्फ मंडी जिला या प्रदेश बल्कि उत्तरी भारत के लोगों के अलावा विदेशियों की भी अटूट आस्था है। जून महीने में इनके मूल स्थान पर मेला होता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं।

शिवरात्रि महोत्सव में बड़ा देव कमरूनाग का है प्रमुख स्थान
छोटी काशी में शिवरात्रि महोत्सव में बड़ा देव कमरूनाग का प्रमुख स्थान है। कमरूनाग को मंडी जनपद का आराध्य देव माना गया है। बड़ा देव शिवरात्रि महोत्सव के लिए आते हैं तो प्रशासनिक अधिकारी इनका पुलघराट के पास विशेष आदर-सत्कार करते हैं और इनके आगमन के बाद ही शिवरात्रि महोत्सव का आगाज होता है। यह परंपरा पिछले कई दशकों से चली आ रही है। देव कमरूनाग के चिन्ह सूरज पखे को शिवरात्रि के दौरान वर्ष में एक बार ही सिर्फ शिवरात्रि पर्व के मौके पर मंडी लाया जाता है तथा भक्तों को इनके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसी के साथ ही लोग अपनी मनोकामना को लेकर और पूर्ण होने पर देवता को अपने-अपने घर पर बुलाते हैं।
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