Edited By Vijay, Updated: 15 Oct, 2024 02:49 PM
अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव (देव महाकुंभ) के तीसरे दिन ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में देवी-देवताओं के अस्थायी शिवरों में सुबह से ही पूजा-अर्चना व देव वाद्ययंत्रों की देवधुनों की स्वर लहरियों के साथ भक्तिमय माहौल बना हुआ है।
कुल्लू (दिलीप): अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव (देव महाकुंभ) के तीसरे दिन ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में देवी-देवताओं के अस्थायी शिवरों में सुबह से ही पूजा-अर्चना व देव वाद्ययंत्रों की देवधुनों की स्वर लहरियों के साथ भक्तिमय माहौल बना हुआ है। देवी-देवताओं के पुजारी बजंतरियों ने देव वाद्ययंत्रों के साथ विधिवत पूजा-अर्चना कर भोग-प्रसाद चढ़ाया और आशीर्वाद लिया। इस दौरान भगवान रघुनाथ और अन्य देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। भगवान रघुनाथ के अस्थायी शिविर में भगवान रघुनाथ, माता सीता, शालिग्राम, नरसिंह, हनुमान जी का विधिवत स्नान, हार हरसिंगार के साथ विधिवत पूजा-अर्चना की गई। भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने मंत्र उच्चारण के साथ पूजा-अर्चना की। दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष एवं सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर ने भी दशहरा मैदान में देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में हाजिरी भरी।
दशहरा उत्सव समिति ने की हैं सभी तरह की व्यवस्थाएं : सुंदर ठाकुर
सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में इस बार कई देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा गया है। देवी-देवताओं के लिए दशहरा उत्सव समिति द्वारा सभी तरह की व्यवस्थाएं की गईं हैं। इस बार देवी-देवताओं के लिए 25 आधुनिक फायरप्रूफ टैंट दिए गए हैं और आने वाले समय में सभी देवी-देवताओं को आधुनिक फायर प्रूफ टैंट दिए जाएंगे। उन्होंने ये भी कहा कि दशहरा उत्सव में देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में कारकूनों, हरियानों व बजंतरियों को उचित सुविधा मिले, इसके लिए प्रयास किया गया है। वहीं विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया ने भी देवी-देवताओं के अस्थायी शिविरों में जाकर पूजा-अर्चना की और आशीर्वाद लिया। उन्होंने कहा कि कल्लू का दशहरा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देव संस्कृति व लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। भगवान रघुनाथ जी के सम्मान में मनाया जाने वाले इस दशहरा उत्सव में जिलाभर के देवी-देवता शिरकत करते हैं।
1660 ई. से दशहरा उत्सव से जुड़ा है देवता श्रृंगा ऋषि महाराज का इतिहास
देवता श्रृंगा ऋषि महाराज के पुजारी सुरेश बिष्ट ने कहा कि देवता श्रृंगा ऋषि का इतिहास 1660 ई से दशहरा उत्सव से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि राजा जगत सिंह के समय में देवता श्रृंगा ऋषि को दशहरा मैदान में जगह दी गई थी, जहां पर उनको बैठने की व्यवस्था की है। देवता श्रृंगा ऋषि महाराज के अस्थायी शिविर में तीन समय पूजा-अर्चना की जाती है। उन्होंने कहा कि देवता सिंह राशि पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं, ऐसे में देवता श्रृंगा ऋषि से जो भी मन्नत मांगते हैं वह जरूर पूरी होती है। उन्होंने कहा कि देवता श्रृंगा ऋषि महाराज की मान्यता बहुत ज्यादा है और इसलिए देवता के पास हजारों की संख्या में श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।
हिमाचल की खबरें Twitter पर पढ़ने के लिए हमें Join करें Click Here
अपने शहर की और खबरें जानने के लिए Like करें हमारा Facebook Page Click Here