Edited By Kuldeep, Updated: 21 Jan, 2025 03:43 PM
हिमाचल के मछली पालन से जुड़े किसानों को अब पंगेसियस और रूपचंदा प्रजाति की मछली का बीज लाने के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा।
बिलासपुर (बंशीधर) : हिमाचल के मछली पालन से जुड़े किसानों को अब पंगेसियस और रूपचंदा प्रजाति की मछली का बीज लाने के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। इससे जहां मछली पालन से जुड़े किसानों के समय की बचत होगी। वहीं, आर्थिक लाभ भी होगा। जानकारी के अनुसार मत्स्य पालन विभाग ने दोनों प्रजातियों का ट्रायल नालागढ़ स्थित फिश फार्म में किया था। ट्रायल सफल रहा है।
जिस पर अब विभाग ने दोनों वैरायटी का ब्रूड स्टॉक तैयार करने का निर्णय लिया है तथा आगामी नवम्बर महीने में इसका प्रजनन करवाया जाएगा और उसके बाद तैयार मछली के बीज को किसानों को उनकी मांग के अनुसार उपलब्ध करवाया जाएगा। जानकारी के अनुसार मत्स्य पालन विभाग ने नालागढ़ स्थित फिश फार्म में दोनों प्रजातियों का मछली बीज डाला था। दोनों प्रजातियों के लिए तापमान 25 से 32 डिग्री सैल्सियस तक होना जरूरी है। लेकिन प्रदेश में सर्दी के मौसम में तापमान काफी कम हो जाता है। ऐसे में संबंधित मछली के मरने की संभावना जयादा रहती है। इसके चलते विभाग नवम्बर महीने ही संंबंधित मछली को बेच देता है।
जानकारी के अनुसार विभाग ने नालागढ़ फिश फार्म में सर्दी के मौसम में जरूरी तापमान बनाए रखने के लिए थर्मल हीटर लगाए। जिस कारण दोनों प्रजातियों का ब्रूड स्टॉक तैयार करने की सहूलियत मिली। विभाग ने इस फार्म में 2 हजार ब्रेड स्टॉक तैयार किया है। जानकारी के अनुसार दोनों प्रजातियां पश्चिमी बंगाल, छत्तीसबढ़ और झारखंड राज्यों में ज्यादा पाई जाती है। विभाग ने ट्रायल के तौर पर बेस्ट बंगाल से रूपचंदा वैरायटी का 12000 मछली का बीज आयत कर डाला था जबकि पंगेसियस 14 हजार बीज डाला गया था। दोनाें वेरायटी वायोफ्लॉक और आरएएस कल्चर में तैयार की जा रही है। रूपचंदा मछली की मार्केट वैल्यू भी कार्प की तुलना में कहीं अधिक है। जहां कार्प प्रजाति की रोहु, कतला व मृगल और कॉमन कार्प की मार्केट वैल्यू 150 से 200 रुपए प्रतिकिलोग्राम है तो वहीं, रूपचंदा की मार्केट वैल्यू 250 से लेकर 300 रूपए प्रतिकिलोग्राम की दर से निर्धारित है। कार्प प्रजाति की मछलियों के बीज को ग्रोथ करने में अमूमन 12 से 14 महीने लग जाते हैं लेकिन रूपचंदा 7-8 माह में ही ग्रोथ कर लेती है।
मत्स्य पालन विभाग के निदेशक विवेक चंदेल ने प्रदेश में पहली बार रूपचंदा और पंगेसियस मछली का ट्रायल सफल रहा है। जिस कारण अब इसका बीज नालागढ़ में ही तैयार करने की योजना है। मछली रिसर्कुलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम (आरएएस) के तहत तैयार की जाएगी। जिससे कम पानी में ज्यादा उत्पादन होगा।