Edited By Kuldeep, Updated: 16 Jul, 2025 09:43 PM

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी जीत मिली है। इसके तहत कड़छम-वांगतू जलविद्युत परियोजना से राज्य सरकार को 12 फीसदी की बजाय 18 फीसदी रॉयल्टी मिलेगी।
शिमला (कुलदीप): मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी जीत मिली है। इसके तहत कड़छम-वांगतू जलविद्युत परियोजना से राज्य सरकार को 12 फीसदी की बजाय 18 फीसदी रॉयल्टी मिलेगी। इस निर्णय से हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी को बल मिलेगा। यह निर्णय 12 वर्ष पूर्ण कर चुकी उन परियोजनाओं के लिए मील का पत्थर होगा, जिनसे निकट भविष्य में 18 फीसदी रॉयल्टी मिलने का रास्ता प्रशस्त हो सकता है। कड़छम-वांगतू परियोजना 1,045 मैगावाट की है, जिसका संचालन जेएसडब्ल्यू एनर्जी कंपनी के पास है। इससे अब 18 फीसदी रॉयल्टी मिलेगी। यानी सालाना रॉयल्टी के रूप में अब 150 करोड़ रुपए की बजाय 250 करोड़ रुपए की आय होगी।
मौजूदा समय में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार लगातार विद्युत परियोजनाओं में 12, 18, 30 और 40 के फार्मूले के आधार पर रॉयल्टी और प्रोजैक्ट देने की पैरवी कर रही है। सरकार का यह फार्मूला फिट बैठा तो हिमाचल प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बल मिलेगा। इस तरह वाइल्ड फ्लावर हॉल मामले के बाद राज्य सरकार की यह कोर्ट से दूसरी बड़ी सफलता है। इससे पहले वर्ष 2002 से कानूनी विवाद में उलझे होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल केस का फैसला भी कोर्ट से प्रदेश के हक में दिया था। इससे हिमाचल प्रदेश सरकार और होटल समूह के बीच स्वामित्व व प्रबंधन अधिकारों को लेकर लड़ाई चल रही थी। कोर्ट के निर्णय के बाद यह संपत्ति अब फिर से राज्य सरकार के नियंत्रण में आ गई है, जिससे भविष्य में इस हैरिटेज प्रॉपर्टी से सरकार को राजस्व लाभ मिलेगा।
हाईकोर्ट के मई, 2024 के आदेश निरस्त करता है निर्णय
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मई, 2024 में आए आदेश को निरस्त करता है, जिसमें कंपनी को केवल 12 फीसदी रॉयल्टी देने की अनुमति दी गई थी। वर्ष 1999 में राज्य सरकार और कंपनी के बीच हुए समझौते के अनुसार परियोजना के पहले 12 वर्षों तक 12 फीसदी और उसके बाद शेष 28 वर्षों तक 18 फीसदी रॉयल्टी निर्धारित की गई थी। सितम्बर 2011 में परियोजना के संचालन के आरंभ होने के बाद कंपनी ने 12 वर्षों तक 12 फीसदी रॉयल्टी दी, लेकिन सितम्बर, 2023 से अतिरिक्त 6 फीसदी रॉयल्टी देने से इंकार कर दिया। विवाद हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में पहुंचा और कंपनी की जीत हुई, लेकिन राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस मामले में राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, प्राग त्रिपाठी, महाधिवक्ता अनूप कुमार रतन तथा अतिरिक्त महाधिवक्ता बैभव श्रीवास्तव सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए।
पंजाब से शानन प्रोजैक्ट का हिमाचल को हस्तांतरित होना बाकी
मंडी जिला के जोगिंद्रनगर में 110 मैगावाट के शानन पावर प्रोजैक्ट की लीज अवधि 2 मार्च, 2024 को समाप्त होने के बावजूद पंजाब सरकार इसको हिमाचल प्रदेश को हस्तांतरित नहीं कर रही है। इस प्रोजैक्ट का निर्माण ब्रिटिश काल के दौरान वर्ष, 1925 में मंडी के तत्कालीन राजा जोगिंद्र बहादुर और पंजाब के मुख्य अभियंता के बीच 99 वर्षों के लिए लीज समझौता हस्ताक्षरित हुआ था। उस समय से ही इसका प्रशासनिक अधिकार पंजाब के पास है।
किशाऊ व श्री रेणुका जी बांध निर्माण पर अड़ी सरकार
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद हिमाचल प्रदेश को अब तक पंजाब और हरियाणा से बीबीएमबी का बकाया एरियर नहीं चुकाया है। इसको लेकर अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर बनाए जाने वाले राष्ट्रीय महत्व की जल विद्युत परियोजनाओं जैसे किशाऊ और श्री रेणुका जी के निर्माण में तभी आगे बढ़ेगी, जब संबंधित राज्य उच्चतम न्यायालय में हिमाचल प्रदेश को बकाया एरियर देने संबंधी शपथ पत्र देंगे। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बीबीएमबी प्रोजैक्टों में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी को 7.19 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी करने की मांग की है। इसी तरह राज्य सरकार ने एसजेवीएनएल को पहले आबंटित 382 मैगावाट क्षमता के सुन्नी, 210 मैगावाट लुहरी स्टेज-1 और 66 मैगावाट क्षमता की धौलासिद्ध परियोजनाओं को भी हिमाचली हितों की अनदेखी होने के कारण इससे संबंधित समझौते को रद्द कर दिया है।