Himachal: प्राकृतिक आपदा के बीच हिमाचल सरकार के पास कर्ज लेने का सीमित विकल्प

Edited By Kuldeep, Updated: 11 Jul, 2025 05:39 PM

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मानसून की वर्षा के कारण आई प्राकृतिक आपदा ने हिमाचल प्रदेश सरकार की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। कठिन वित्तीय हालात के बीच सबसे बड़ी मुश्किल कर्ज लेने को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से कैपिंग करना है।

शिमला (कुलदीप शर्मा): मानसून की वर्षा के कारण आई प्राकृतिक आपदा ने हिमाचल प्रदेश सरकार की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। कठिन वित्तीय हालात के बीच सबसे बड़ी मुश्किल कर्ज लेने को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से कैपिंग करना है। मौजूदा वित्तीय वर्ष, 2025-26 के बीच सरकार को दिसम्बर माह तक 7,000 करोड़ रुपए कर्ज लेने की छूट है, जिसमें से करीब 4,200 करोड़ रुपए कर्ज इस माह (जुलाई) तक लिया जा चुका है। यानी अब सरकार को 3,800 करोड़ रुपए कर्ज में अपना गुजारा करना होगा। इसमें सरकार की प्रति माह प्रतिबद्ध देनदानियों के लिए करीब 2,800 करोड़ रुपए की आवश्यकता रहती है। इसमें वेतन के लिए 2,000 करोड़ रुपए, पैंशन के लिए 800 करोड़ रुपए, पहले लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी के लिए 500 करोड़ रुपए और कुल कर्ज का मूलधन चुकाने के लिए 300 करोड़ रुपए की आवश्यकता है।

इसके अलावा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने बजट भाषण में कर्मचारियों को 15 मई, 2025 से 3 फीसदी डी.ए. देने की घोषणा भी की है, लेकिन वर्तमान हालात में इसकी अदायगी करने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने में परेशानी आ सकती है। इसका एक प्रमुख कारण प्राकृतिक आपदा के कारण प्रभावित हुए लोगों के राहत एवं पुनर्वास कार्य करने की दिशा में आगे बढ़ना है, जिसके लिए मुख्यमंत्री ने विशेष राहत पैकेज देने की बात कही है। इस राहत पैकेज पर अंतिम निर्णय मंत्रिमंडल की बैठक में लिए जाने की संभावना है।

16वें वित्तायोग की सिफारिशों पर टिकी सरकार की नजर
मौजूदा वित्तीय हालात से राज्य सरकार को बाहर निकलने में उसी स्थिति में राहत मिल सकती है, जब 16वें वित्तायोग की सिफारिशें प्रदेश की उम्मीदों के अनुरूप हों। इन सिफारिशों पर 1 अप्रैल, 2026 से अमल होना है। इस स्थिति में वर्तमान सरकार को जैसे-तैसे 31 मार्च, 2026 तक वित्तीय संसाधन जुटाने होंगे। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू इसके लिए 16वें वित्तायोग के अध्यक्ष डा. अरविंद परगढ़िया से मुलाकात करके राज्य सरकार का पक्ष रख चुके हैं। इसमें प्रमुखता से राज्य को मिलने वाली राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) राशि को बढ़ाने की गुहार लगाई गई है। इससे पहले 15वें वित्तायोग की तरफ से राज्य को मिलने वाली आर.डी.जी. में लगातार गिरावट आई है। प्रदेश को वित्तीय वर्ष, 2020-21 के दौरान 11,431 करोड़ रुपए ग्रांट मिली, जो मौजूदा वित्तीय वर्ष, 2025-26 में घटकर 3,257 करोड़ रुपए रह गई है। इससे भी प्रदेश की आर्थिकी पर चोट पहुंची है। प्रदेश पर कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ रहा है, जो इस समय करीब 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।

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