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Himachal: हाईकोर्ट ने सरकार को दिए यह आदेश, जजों की सुविधा से जुड़ा मामला

Edited By Kuldeep, Updated: 16 May, 2025 09:15 PM

shimla government high court order

प्रदेश हाईकोर्ट ने जजों को शिमला में आवासीय सुविधा मुहैया करवाने से जुड़े मामले में सरकार को आदेश दिए हैं कि वह बंगला नंबर 3 की चाबियां 28 मई तक हाईकोर्ट को सौंप दे।

शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने जजों को शिमला में आवासीय सुविधा मुहैया करवाने से जुड़े मामले में सरकार को आदेश दिए हैं कि वह बंगला नंबर 3 की चाबियां 28 मई तक हाईकोर्ट को सौंप दे। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधवालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि मकान नंबर 3 टाइप-6 हार्विंगटन शिमला प्रवीण चंद गुप्ता अतिरिक्त निदेशक पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी व मुख्य अभियंता हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शिमला के कब्जे में था। यह आबंटन रद्द कर उसे खाली करने के आदेश दे दिए गए हैं।

24 अप्रैल 2025 को कोर्ट के संज्ञान में लाया गया था कि हार्विंगटन एस्टेट में 6 बंगले विशेष रूप से हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के लिए बनाए गए थे। यह भी बताया गया था कि बंगला नंबर 3 पीसी गुप्ता, अतिरिक्त निदेशक (पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी)/मुख्य अभियंता, हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कब्जे में है और पहले रचना गुप्ता को यह आवास आबंटित किया गया था, जो हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (एचपीपीएससी) की सदस्य थीं और राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त पत्रकार, हिमाचल प्रदेश हैं। कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि उच्च न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1957 की धारा 28-ए के मद्देनजर न्यायाधीश के रूप में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति को किराए के भुगतान के बिना अपने कार्यकाल के दौरान एक आवास का हकदार बनाया गया है।

कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार हाईकोर्ट को अपेक्षित संख्या में आवास उपलब्ध करवाने के लिए वैधानिक कर्त्तव्य के तहत है, जिसकी स्पष्ट रूप से कमी है। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि एक ही एस्टेट में घर पर किसी ऐसे व्यक्ति का कब्जा होना, जो न्यायिक पक्ष से नहीं है, न केवल सुरक्षा संबंधी समस्याएं पैदा करता है, बल्कि सभी प्रकार के लोगों को उक्त एस्टेट में आने के लिए प्रेरित करता है, जो न्यायाधीशों के संवैधानिक पद को ध्यान में रखते हुए वाजिब नहीं है। कोर्ट ने इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरकार को स्टेटस रिपोर्ट दायर कर यह बताने को कहा था कि उक्त आवास को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को कब सौंपा जाएगा।

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