100 से अधिक डिग्रियों के फर्जी होने के दिए थे साक्ष्य, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली में डिग्रियां बेचने के आरोप

Edited By Kuldeep, Updated: 27 Feb, 2023 05:36 PM

shimla degree fake proof

शिमला के ए.पी.जी. विश्वविद्यालय में फर्जी डिग्री मामले में 100 से अधिक डिग्रियों के फर्जी होने के साक्ष्य दिए गए थे लेकिन बावजूद इसके क्राइम इन्वैस्टीगेशन डिपार्टमैंट (सी.आई.डी.) ने इस केस की जांच प्राथमिकता के आधार पर नहीं की। वि.वि. प्रबंधन ने...

शिमला (रमेश सिंगटा): शिमला के ए.पी.जी. विश्वविद्यालय में फर्जी डिग्री मामले में 100 से अधिक डिग्रियों के फर्जी होने के साक्ष्य दिए गए थे लेकिन बावजूद इसके क्राइम इन्वैस्टीगेशन डिपार्टमैंट (सी.आई.डी.) ने इस केस की जांच प्राथमिकता के आधार पर नहीं की। वि.वि. प्रबंधन ने रिकॉर्ड जलाए जाने की भी बात कही थी, पर एक विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष ने मूल रिकॉर्ड को अपने पास सुरक्षित रखा था। न्याय पाने के लिए एक छात्र ने तो कोर्ट में बाकायदा जनहित याचिका दायर की थी। सूत्रों के अनुसार जो साक्ष्य एच.ओ.डी. और छात्र ने सौंपे थे, उनके अनुसार फर्जी डिग्रियां उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली में बांटी गईं। उधर, सी.आई.डी. की नई प्रमुख ए.डी.जी.पी. सतवंत अटवाल ने सभी लंबित मामलों की जांच में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। जब से उन्होंने कार्यभार संभाला है तब से लेकर ही सभी मामलों की खुद जानकारी प्राप्त की। इसके आधार पर संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं।

जांच के दायरे में रही 1900 डिग्रियां
1900 से अधिक ड्ििरग्रयों की जांच की गई है लेकिन सूत्रों के अनुसार जांच में कई तरह की अनियमितताएं सामने आई हैं। सी.आई.डी. ने वर्ष 2020 में शिकायत के आधार पर बाकायदा एफ.आई.आर. दर्ज की थी। क्राइम इन्वैस्टीगेशन डिपार्टमैंट (सी.आई.डी.) की क्राइम ब्रांच ने तीन दिन तक लगातार दबिश दी थी। जांच टीम के अधिकारियों, कर्मचारियों ने कई विभागों के दाखिलों, परीक्षाओं व डिग्रियों का 2013-14 से लेकर 2020 तक का रिकॉर्ड खंगाला था। टीम ने कई कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क कब्जे में ली थीं। इनका फोरैंसिक साइंस प्रयोगशाला में परीक्षण करवाया गया।

एक साथ आई थीं शिकायतें
पूर्व भाजपा सरकार के कार्यकाल में सोलन के मानव भारती और शिमला के ए.पी.जी. विश्वविद्यालय की एक साथ शिकायतें आई थीं। यू.जी.सी. के माध्यम ये इन्हें जांच के लिए राज्य सरकार के पास भेजा गया। तब राज्य सरकार ने निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग से भी जांच करवाई लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन ने रिकॉर्ड देने में आनाकानी की थी। बाद में राज्य सरकार ने सी.आई.डी. जांच के आदेश दिए थे। यह मामला राज्य विधानसभा में भी प्रमुखता से उठा था। जांच में मानव भारती वि.वि. में बड़े पैमाने पर फर्जी डिग्रियां पाई गई थीं लेकिन ए.पी.जी. वि.वि. की जांच की रफ्तार धीमी हो गई थी।

दाखिलों में भी पाई थी गड़बड़ी
ए.पी.जी. के लॉ डिपार्टमैंट (विधि विभाग) में दाखिलों में गड़बड़झाला हुआ था। निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग ने यह गड़बड़ी पकड़ी थी। आरोपों के अनुसार कई विदेशी विद्यार्थियों के दाखिलों और डिग्री आबंटित करने में कायदे-कानून को ताक पर रखा गया। एक विदेशी छात्र को दो साल की डिग्री डेढ़ साल में दी गई।

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