हिमाचल के इस युवा वैज्ञानिक के पेटैंट को अमरीका में मिली मान्यता

Edited By Vijay, Updated: 16 Dec, 2020 06:36 PM

patent of young scientist get recognition in america

बिलासपुर जिला के घुमारवीं क्षेत्र के पनौल गांव के युवा वैज्ञानिक डॉ. यश ठाकुर के कैपेसिटर संबंधित पेटैंट को यूनाइटेड स्टेट्स पेटैंट और ट्रेडमार्क कार्यालय ने मान्यता प्रदान की है। डॉ. यश ठाकुर ने डाई इलैक्ट्रिक पॉलीमर में नैनो पार्टिकल्स के माध्यम...

सुंदरनगर (सोनी): बिलासपुर जिला के घुमारवीं क्षेत्र के पनौल गांव के युवा वैज्ञानिक डॉ. यश ठाकुर के कैपेसिटर संबंधित पेटैंट को यूनाइटेड स्टेट्स पेटैंट और ट्रेडमार्क कार्यालय ने मान्यता प्रदान की है। डॉ. यश ठाकुर ने डाई इलैक्ट्रिक पॉलीमर में नैनो पार्टिकल्स के माध्यम से ऐसी तकनीक को विकसित किया है, जो 150 डिग्री सैंटीग्रेड से अधिक तापमान में कैपेसिटर को बिना कूलिंग सिस्टम के संचालित करने में प्रभावशाली है। उनके द्वारा खोज किए गए उपकरण से विद्युत प्रवाह द्वारा ऊर्जा के ऊष्मा रूप में होने वाली हानि रुकेगी तथा उससे विद्युत का पूर्ण रूप से दोहन भी संभव हो सकेगा।

बता दें कि पीएचडी की रिसर्च के दौरान डॉ. यश ठाकुर के इसी रिसर्च प्रपोजल को विश्वभर के उत्कृष्ट 3 रिसर्च प्रपोजल में से चयनित किया गया था और इस नवाचार के लिए उनको अमरीका की आईईई, डीईआईएस फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया था। शोध कार्य के दौरान रिसर्च प्रपोजल में उत्कृष्ट स्थान हासिल करने पर हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने भी डा. यश ठाकुर को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया था।

डॉ. यश ठाकुर के पिता बलवंत सिंह ठाकुर सुंदरनगर के सलापड़ कालोनी स्थित राजकीय बीएसएल सीनियर सैकेंडरी स्कूल में प्रवक्ता व माता नमिता सिंह स्नातक अध्यापक हैं। डॉ. यश ठाकुर की प्रारंभिक शिक्षा बरमाणा के डीएवी स्कूल से हुई है, इंजीनियरिंग की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से करने के पश्चात उनका चयन अमरीका की पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में उच्चतर अध्ययन के लिए हुआ। उनको इसी यूनिवर्सिटी से 5000 डॉलर की स्कॉलरशिप भी मिली।

वर्तमान में डॉ. यश ठाकुर अमरीका में ही कम्प्यूटर प्रोसैसर की अग्रणी कंपनी इंटैल के साथ जुड़कर कार्य कर रहे हैं। डॉ. यश ठाकुर का कहना है कि आज के युग में विद्युत की मांग बढ़ रही है और हमें ऐसे उपकरणों की जरूरत है जो उच्च तापमान में विद्युत ऊर्जा को संरक्षित कर सकें। वह अपनी इस उपलब्धि में माता-पिता व शिक्षकों से मिली प्रेरणा को महत्वपूर्ण मानते हैं।

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