Chamba: महादेव का आदेश तो ही जाएं मणिमहेश, मिट जाएंगे सभी क्लेश

Edited By Vijay, Updated: 29 Aug, 2024 12:53 PM

manimahesh yatra

देवों के देव महादेव के दर्शन करना मनुष्य मात्र के लिए आसान नहीं है। समुद्र तल से लगभग 13000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कैलाश तक पहुंचने के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है।

चम्बा (काकू चौहान): देवों के देव महादेव के दर्शन करना मनुष्य मात्र के लिए आसान नहीं है। समुद्र तल से लगभग 13000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कैलाश तक पहुंचने के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है। यात्रा के लिए भी महादेव का आदेश भी अनिवार्य है। बिना आदेश यात्रा अधूरी रह सकती है। आदेश होने पर हर मुश्किल को पार करते हुए मणिमहेश पहुंच जाएंगे। जन्माष्टमी पर्व के छोटे स्नान के उपलक्ष्य पर इस बार मणिमहेश में यात्रियों की अथाह भीड़ उमड़ी हुई थी। आलम यह था कि रास्ते जाम हो चुके थे। विभिन्न पड़ावों पर लगे लंगरों में लंबी कतारें लग रही थी। रात के अंधेरे में लोगों को सिर ढकने के लिए आश्रय तक नहीं मिल पा रहा था। जो भी टैंट लगे हुए थे वहां तिल धरने की जगह नहीं बची हुई थी। निजी दुकानें भी फुल हो चुकी थी। कई पत्थरीले रास्तों में ही पत्थरों पर ही प्रभात होने के लिए छपकी ले रहे थे। सभी का मकसद डल झील पहुंचना था और उसके लिए वे हर परीक्षा से गुजरने को तत्पर थे।
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सांकेतिक रूप से मिलता है शिव का आदेश
चम्बा के कवि व समाजसेवी भूपिंद्र जसरोटिया बताते हैं कि मणिमहेश की यात्रा सुगम नहीं है। यहां भोले के हुकुम से ही जाया जाता है। जो भी कैलाश पहुंचते हैं वह शिव द्वारा आदेशित होते हैं। आदेश न होने पर हजारों लोग बीच रास्ते से भी वापस हो जाते हैं। 8 घंटे की सीधी चढ़ाई चढ़ सकें तो ही घर से कदम उठाएं। तनिक चिंतन कर लें शरीर में कितनी क्षमता है। क्या हम इतना सफर एकदम चढ़ाई का चल सकते हैं? छोटी-छोटी बाधाएं आएं तो प्रशासन को कोसना बंद करें। भक्त बनने के लिए कष्ट सहने ही पड़ते हैं।

पैरों में पड़ गए थे छाले, फिर भी सौरभ सेठी ने पूरी की यात्रा
पंजाब के जालंधर के सौरभ सेठी पहली बार मणिमहेश यात्रा पर निकले थे। हड़सर से जोत का गोठ तक सुगमता से उन्होंने यात्रा पूरी कर ली लेकिन आगे की यात्रा कठिन होती जा रही थी। किसी तरह दुनाली पहुंच गए। यहां से मणिमहेश के लिए 2 रास्ते हैं। कम दूरी वाला रास्ता पुल पर जाम होने के कारण लगभग बंद था। इसलिए वैकल्पिक मार्ग से आगे बढ़ने का निर्णय लिया लेकिन खड़ी चढ़ाई में उनकी सांसें फूलने लगी। श्रद्धा के चलते वह निरंतर आगे बढ़ते रहे। धनछो पहुंचने तक उनका शरीर जवाब दे चुका था। पैरों में छाले पड़ गए थे। यहां चिकित्सीय परामर्श के बाद फिर से आगे चलने की ठान ली। इस तरह करीब 15 घंटे में आस्था के बल पर वह महादेव के आदेश पर डल झील पहुंचे।
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पुल बंद होने पर शिला पर सुला दिए बच्चे
मणिमहेश यात्रा से लौट रहे एक दंपति को जब कहीं रुकने के लिए जगह नहीं मिली तो उन्होंने अपने बच्चों को बड़ी शिला पर लिटा दिया। अचानक बारिश होने लगी। साथ में एक दुकान थी। व्यक्ति ने दुकानदार से बच्चों को दुकान में बिठाने का आग्रह किया लेकिन 12 बज चुके थे और दुकानदार ने दुकान बंद करने की बात कही। हमारे आग्रह पर दुकानदार ने बच्चों को सामान की बोरियों पर लिटा दिया और दुकानदार दुकान खुली छोड़कर खुद साेने निकल गया। इस तरह बच्चों और दंपति ने यहां रात गुजारी।

धनछो से वापस लौट गई महिला
मणिमहेश यात्रा से लौटते समय धनछो में एक महिला श्रद्धालु से रास्ते के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह यात्रा से वापस लौट रही है। फिसलन होने के कारण आगे नहीं जा पा रही। वह अकेली थी। जब उनसे पूछा कि इतनी रात अकेले वापस कैसे जाएंगी तो बताया कि उनके परिजन उन्हें राह में मिल जाएंगे। इस तरह उनकी यात्रा अधूरी ही रह गई।
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