Edited By Vijay, Updated: 22 Feb, 2025 06:36 PM
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मंडी जनपद के आराध्य देव मगरू महादेव अंतर्राष्ट्रीय महाशिवरात्रि महोत्सव की शोभा बढ़ाने के लिए अपनी मूल कोठी छतरी से प्रवास पर निकल गए हैं।
थुनाग/गोहर (ख्यालीराम): मंडी जनपद के आराध्य देव मगरू महादेव अंतर्राष्ट्रीय महाशिवरात्रि महोत्सव की शोभा बढ़ाने के लिए अपनी मूल कोठी छतरी से प्रवास पर निकल गए हैं। देवलू 5 दिन की पैदल यात्रा कर मेला परिसर मंडी पहुंचेंगे। देव मगरू महादेव भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं तथा शिवरात्रि के आयोजित मेले इनके ही नाम पर मनाए जाने की परंपरा रही है।
कारदार सुरेन्द्र कुमार राणा ने बताया कि मेला स्थल तक पहुंचने के लिए 110 किलोमीटर की लंबी पैदल यात्रा तय कर देव मगरू महादेव अपने देवलुओं और कारकूनों के साथ 26 फरवरी को शिवरात्रि महोत्सव में छोटी काशी पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि देवता रथ में नहीं जा रहा है। देवता का मूलीमुख फर्शी पर सुशोभित होकर बल्ह के बैहना तक जा रहा है, जहां देवता अपने रथ का रूप धारण कर मंडी रवाना होंगे।
कहा कि मगरू महादेव राज दरबार के प्रमुख देवता में शुमार हैं। मंडी और कुल्लू जिला की सीमा पर छतरी में स्थित देव मगरू महादेव का मंडी जनपद में विशेष स्थान है। जंजैहली से होते हुए मगरू महादेव का अलग-अलग स्थानों पर भव्य स्वागत किया जाता है। देव यात्रा के दौरान पहले दिन बायला, कुरानी, सेगली से बैहना में रात की मेहमान नवाजी में शामिल होंगे।
जानकारी के अनुसार रियासतकाल में मगरू महादेव का रुतबा माधोराय के समान था। शिवरात्रि पर राज देवता माधोराय के साथ मगरू महादेव का चित्र भी साथ चस्पां होता था। शहर में पहुंचते ही राज परिवार के सदस्य मगरू महादेव का भव्य स्वागत किया जाता था। राजबेहड़े में देवता का रात्रि ठहराव होता था। इस दौरान दुर्लभ जड़ी-बूटियों का हवन किया जाता था। शिवरात्रि पर्व को निभाने के लिए देव मगरू महादेव भी प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं।
देव कारदार सुरेन्द्र राणा ने बताया कि पूर्व में राजशाही समाप्त होने के बाद मगरू महादेव ने 50 साल तक शिवरात्रि महोत्सव में शिरकत नहीं की थी। प्रशासन व सर्व देवता समिति के आग्रह पर देव मगरू महादेव शिवरात्रि में शिरकत करने पहुंचे थे। इससे उनके प्रति आस्था रखने वाले हजारों लोगों को उनके दर्शन नजदीक से करने का मौका मिला था। देव मगरू महादेव को भगवान शिव का अवतार रूप माना जाता है। वह एकमात्र ऐसे इकलौते देवता हैं जो देव चपलान्दू के बाद 110 किलोमीटर से अधिक की दूरी पैदल तय कर छोटी काशी में पहुंचते हैं। देवता का आज भी शिवरात्रि में पहले वाला रुतबा कायम है।
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