यहां हैं स्वर्ग की अढ़ाई सीढ़ियां, पुष्कर के बाद यहीं है ब्रह्मा जी का दूसरा मंदिर (Video)

Edited By Ekta, Updated: 29 Jul, 2018 05:23 PM

हिमाचल को देवभूमि का नाम इसलिए मिला है क्योंकि यहां स्थान-स्थान पर अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। अनेक तीर्थ स्थल इसमें मौजूद हैं जहां असंख्य श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं। हिमाचल-पंजाब बार्डर पर सतलुज दरिया के किनारे प्राचीन ब्रह्मा जी के मंदिर...

ऊना (सुरेन्द्र): हिमाचल को देवभूमि का नाम इसलिए मिला है क्योंकि यहां स्थान-स्थान पर अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। अनेक तीर्थ स्थल इसमें मौजूद हैं जहां असंख्य श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं। हिमाचल-पंजाब बार्डर पर सतलुज दरिया के किनारे प्राचीन ब्रह्मा जी के मंदिर ब्रह्मोती को मिनी हरिद्वार के रूप में मान्यता प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मोती में पांडवों द्वारा निर्मित स्वर्ग की अढाई सीढ़ियां हैं। जिला ऊना के कुटलैहड़ क्षेत्र के तहत सतलुज नदी के किनारे पर स्थित गांव हंडोला के तहत इस तीर्थ स्थल के घाट क्षेत्र में सतीकुंड और ब्रह्मकुुंड हैं। मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मोती गंगा का निवास होने के कारण यहां का पवित्र जल कभी खराब नहीं होता है। ऐसी मान्यता है कि इस तीर्थ का पवित्र स्थान में किया गया जप, तप, व्रत, दान, पुण्य एवं स्नान अक्षय फल देने वाला माना जाता है। 
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ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मोती में ब्रह्मा जी के पुत्र विशिष्ट मुनी जी ने हजारों वर्ष तप किया। तपस्या के पश्चात 100 पुत्रों की उत्पत्ति हुई। राजऋषि विश्वमित्र जी, वशिष्ट मुनी जी के प्रति ब्रह्म ऋषि की उपाधि के कारण द्वेष भावना रखते थे। इसी द्वेष भावना के कारण विश्वमित्र जी ने वशिष्ट मुनी जी के 100 पुत्रों का बध इसी स्थान पर किया। कहा जाता है कि विश्वमित्र जी को ब्रह्म हत्या का दोष लगा और ब्रह्म दंड भी मिला। ब्रह्म दोष निवारण के लिए विश्वमित्र जी ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने साक्षात दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। विश्वमित्र जी ने कहा कि उन्हें ऐसा वर देने की कृपा करें जिससे ब्रह्म हत्या तत्काल नष्ट हो जाए। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें यहां यज्ञ अनुष्ठान करवाने का आह्वान किया। 


ब्रह्मा जी ने खुद देवताओं सहित यज्ञ करने और अपने पौत्रों को उद्धार करने व खुद आहुतियां डालने की बात कही। जब यज्ञ आरंभ हुआ तब जाकर ब्रह्मा जी ने भगवान शिव सहित देवी-देवताओं के साथ यहां आहुतियां डालकर अपने पौत्रों का उद्धार किया। ऐसा कहा जाता है कि यहां यज्ञ और आहुतियां डालने के कारण इस तीर्थ स्थान का नाम ब्रह्मोती से विख्यात हुआ। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव भी शिवलिंग के रूप में यहीं प्रतिष्ठित हो गए। इसके बाद इसे छोटे हरिद्वार के तौर पर जाना जाता है। माना जाता है कि पांडवों ने यहां अढाई स्वर्ग की सीढ़ियां निर्मित की थी। ऐसा कहा जाता है कि शास्त्रों के मुताबिक ब्रह्माव्रत क्षेत्र में 4 द्वार हैं। इसके पश्चिमी द्वार पर ब्रह्मावती यानी ब्रह्मोती स्थित है। कथाओं के मुताबिक इस दिव्य तीर्थ स्थान में ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण कर धर्म, सदाचार, ज्ञान, तप, वैराग्य, भगवत भगवती की प्रेरणा दी। 


बैसाखी पर्व से लेकर कई अन्य त्यौहारों पर असंख्य लोग इस तीर्थ स्थल में माथा टेकने और स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। यहां स्नान के लिए अलग-अलग घाट भी निर्मित हैं। मंदिर के निकट ही सतलुज दरिया है। पुष्कर के बाद ब्रह्मा जी का यह दूसरा मंदिर है। यहां अनेक लोग जप व तप करने के लिए पहुंचते हैं। वर्ष 2009 में इस प्राचीन मंदिर के नवीकरण व सौंदर्यकरण का कार्य आरंभ किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल, सांसद अनुराग ठाकुर व विधायक वीरेन्द्र कंवर ने इस तीर्थ स्थल के सौंदर्यकरण का विधिवत काम आरंभ करवाया था। इस प्राचीन स्थल के निकट बहते सतलुज दरिया में कई हादसे भी हो चुके हैं। इसका कारण यह है कि कुछ लोग स्नानगृह में स्नान करने की बजाय दरिया के बीच अठखेलियां करने चले जाते हैं जिस वजह से अब तक अनेक लोग मौत का भी शिकार हो चुके हैं। इसके लिए प्रशासन ने यहां चेतावनी बोर्ड भी स्थापित किए हैं।  
 

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