हिमाचल की पहली व्हीलचेयर यूजर एमबीबीएस छात्रा बनी निकिता चौधरी

Edited By Vijay, Updated: 14 Dec, 2022 10:12 PM

first wheelchair user mbbs student of himachal

कांगड़ा जिले की अत्यंत मेधावी दिव्यांग छात्रा निकिता चौधरी हिमाचल प्रदेश में एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाली पहली व्हीलचेयर यूजर बन गई है। हाईकोर्ट के आदेश पर आखिरकार बुधवार को डाॅ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में दाखिला दे दिया गया।

शिमला (ब्यूरो): कांगड़ा जिले की अत्यंत मेधावी दिव्यांग छात्रा निकिता चौधरी हिमाचल प्रदेश में एमबीबीएस में प्रवेश लेने वाली पहली व्हीलचेयर यूजर बन गई है। हाईकोर्ट के आदेश पर आखिरकार बुधवार को डाॅ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में दाखिला दे दिया गया। इसी मेडिकल कॉलेज ने पहले अपने नियमों का हवाला देते हुए उसे प्रवेश देने से इंकार कर दिया था। न्याय के लिए उसकी फरियाद को पिछली सरकार में अनसुना कर दिया गया था। उमंग फाऊंडेशन ने उसके साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और संघर्ष में उसका पूरा साथ दिया। फाऊंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि 12 नवम्बर को हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति सबीना और न्यायमूॢत सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने सरकार को आदेश दिए थे कि निकिता चौधरी को टांडा मेडिकल कॉलेज में तुरंत दाखिला दिया जाए। इसके बाद चिकित्सा शिक्षा निदेशक प्रो. रजनीश पठानिया की अध्यक्षता में प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्य की एक उच्च स्तरीय बैठक में हाईकोर्ट के आदेश के अनुपालन का निर्णय किया गया। 

गौरतलब है कि टांडा मेडिकल कॉलेज में दिव्यांग निकिता चौधरी को प्रवेश देने से इंकार करने के बाद एमबीबीएस की उसे आबंटित सीट हिमाचल के जनरल कोटे की शाम्भवी को दे दी थी। निकिता को सीट देने के लिए सीट आबंटन में काफी फेरबदल करना पड़ा। अब शाम्भवी को टांडा से लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज मंडी में उसके मूल आबंटित मेडिकल कॉलेज में भेजा गया है। इसी तरह मंडी से चक्षिता सिंह को हमीरपुर के डाॅक्टर राधाकृष्णन मेडिकल कॉलेज में और वहां से अंकिता को चम्बा के जवाहर लाल नेहरू मैडीकल कॉलेज में भेजा गया है।

प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रदेश में दिव्यांगों एवं अन्य कमजोर वर्गों को संवेदनहीन सरकारी तंत्र से न्याय नहीं मिल पाता है। उनके लिए एकमात्र सहारा हाईकोर्ट ही बचा है। अत्यंत सामान्य परिवार की निकिता चौधरी ने भी मुख्यमंत्री से लेकर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सचिव, निदेशक और स्वास्थ्य विभाग तथा चिकित्सा शिक्षा के उच्च अधिकारियों तक को पत्र भेजे लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई है।

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